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मणिपुर जब हिंसा की चपेट में था तब आपके नेता Twitter पर क्या कर रहे थे?

Manipur के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के लोग कई सालों से आदिवासी दर्जा की मांग कर रहे हैं.

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यदि तुम्हारे घर के

एक कमरे में आग लगी हो

तो क्या तुम

दूसरे कमरे में सो सकते हो?

यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में

लाशें सड़ रहीं हों

तो क्या तुम

दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो?

यदि हां

तो मुझे तुम से

कुछ नहीं कहना है.

देश कागज पर बना

नक्शा नहीं होता...

ये जो सच कई साल पहले हिन्दी कवि और साहित्यकार सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने कहा था वो अब हमारे सामने है. भारत का एक राज्य जलता रहा, 60 लोगों की हत्या कर दी गई, आगजनी, गोलीबारी, हजारों लोग घर छोड़कर भागने को मजबूर. लेकिन मजाल है कि देश के नेताओं का ट्विटर टाइमलाइन बदल गया हो. मजाल है कि कर्नाटक चुनाव के प्रचार का शोर कम हो गया हो. लोगों की पीड़ा कम करने, शांति की अपील के लिए क्या एक संदेश नहीं भेजा जा सकता था? इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

मणिपुर जब हिंसा की चपेट में था तब आपके नेता क्या कर रहे थे?

चलिए आपको एक आंकड़े दिखाते हैं और बताते हैं कि मणिपुर (Manipur) जब हिंसा की चपेट में था तब आपके नेता क्या कर रहे थे. हमने एक मई 2023 से 9 मई 2023 तक का ट्विटर का डेटा निकाला है. इस दौरान देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के चेहरा राहुल गांधी ने मणिपुर को लेकर कितने ट्वीट किए हैं और कितने ट्वीट कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए इन तीनों ने किए हैं.

हमने तीनों के ट्वीट्स को तीन कैटेग्री में डाला है. 1. मणिपुर 2. कर्नाटक चुनाव 3. अन्य

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अब कुछ लोग कहेंगे ट्वीट से क्या होता है, सरकार काम करे ये जरूरी है. जी हां, मणिपुर में शांति हो ये जरूरी है. लेकिन अगर कर्नाटक चुनाव जरूरी नहीं था तो 100 ट्वीट क्यों हुए? अगर काम जरूरी है तो फिर कर्नाटक में भी तो पिछली सरकार ने काम किया होगा या नहीं किया होगा, वहां कि जनता काम देखकर वोट देती. ट्वीट की क्या जरूरत थी. अब सबसे अहम सवाल, क्या मणिपुर में ये हिंसा एक दिन में भड़क गई? जवाब है नहीं.

दरअसल, मणिपुर के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के लोग कई सालों से आदिवासी दर्जा की मांग कर रहे हैं. इसी सिलसिले में उन्होंने मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. मार्च 2023 में मणिपुर हाई कोर्ट ने मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा था कि 'वो मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने को लेकर विचार करे. बस तब से ही तनाव और बढ़ता गया.

लेकिन इस बढ़ते तनाव को भांपने में सरकार नाकाम रही, तो क्या डबल इंजन सरकार के लिए ये मुद्दा अहम नहीं था?

यहां आपको एक बात और समझनी होगी कि मणिपुर की जनसंख्या लगभग 30-35 लाख है. आबादी के हिसाब से यहां तीन मुख्य समुदाय हैं.. मैतई, नगा और कुकी. मैतई ज्यादातर हिंदू हैं, हालांकि कुछ मुसलमान भी मैतई समुदाय में आते हैं. वहीं नगा और कुकी ज्यादातर ईसाई हैं.

मैतई मणिपुर की आबादी में 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सा रखते हैं. 60 विधायकों वाले मणिपुर विधानसभा में भी 40 विधायक मैतई समुदाय से हैं. बाकी 20 नगा और कुकी जनजाति से आते हैं. मतलब राजनीतिक तौर पर मैतई समुदाय की पकड़ मजबूत है. इसके अलावा मणिपुर दो हिस्सों में भी बंटा नजर आता है. एक वैली और दूसरा पहाड़ी. मणिपुर में 16 जिले हैं. 10 फीसदी हिस्सा वैली का है जहां करीब 53 प्रतिशत मैतेई समुदाय के लोग रहते हैं. वहीं 90 फीसदी पहाड़ी इलाके में 42 प्रतिशत कुकी, नागा के अलावा दूसरी जनजाति रहती है.

विवाद के पीछे की वजह

विवाद पर नजर डालें तो मैतई समुदाय का कहना है कि 1970 के बाद यहां कितने रिफ्यूजी आए हैं, इसकी गणना की जाए और यहां पर एनआरसी लागू किया जाए. मैतई समुदाय को लगता है कि म्यांमार और बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासी वहां बस रहे हैं जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान खतरे में है. साथ ही मैतई समुदाय का कहना है कि जब ये लोग पहाड़ी हिस्से में जमीन नहीं खरीद सकते तो कुकी वैली में क्यों जमीन खरीद सकते हैं.

हालांकि भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को स्पेशल कॉन्स्टिट्यूशनल प्रिविलेज मिला हुआ है.

वहीं दूसरी ओर आदिवासी समुदाय का गुस्सा सिर्फ मैतई समाज को आदिवासियों की तरह दर्जा दिए जाने के अदालत के ऑबजर्वेशन से नहीं बढ़ा है बल्कि कई कारण हैं. हाल ही में राज्य सरकार की तरफ से कराए जा रहे लैंड सर्वे से भी आदिवासी समाज के लोग नाराज थे. आदिवासी समुदाय का आरोप है कि उन्हें जंगलों से निकालने की कोशिश हो रही है. मणिपुर में बीजेपी सरकार पर आरोप है कि उसने फरवरी में चुराचंदपुर जिले में एविक्शन ड्राइव चलाया था. जिससे वहां प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट एरिया में रह रहे लोगों को उनके घरों से बाहर कर दिया गया.

इसके अलावा इन जनजातियों का कहना है कि मैतई समुदाय का राजनीति में भी दबदबा है. मैतई के पास एससी और ओबीसी आरक्षण और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग यानी EWS का आरक्षण मिला हुआ है.

यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन-एन आर्बर के स्कूल ऑफ इंफॉर्मेशन में पीएचडी कर रहे जैसन टॉन्सिंग ने द क्विंट को बताया कि हिंसा "आदिवासियों के साथ सौतेला व्यवहार" असंतोष का परिणाम है.
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अब सवाल उठता है कि जब मैतई और आदिवासी समाज इतने दिनों से एक दूसरे के खिलाफ खड़े हो रहे थे तब वक्त रहते इस मामले का हल क्यों नहीं किया गया? पहाड़ी बनाम वैली के बीच विवाद को धार्मिक रंग कौन दे रहा है? मणिपुर उग्रवाद की वजह से और बॉर्डर स्टेट होने के कारण सेंसिटिव जोन है तो वहां ऐसी हिंसा भड़कने ही क्यों दी गई? क्यों 60 लोगों की जान जाने दी गई? क्या चुनाव इतना अहम है कि देश का एक राज्य जल जाए और नेता चुनावी प्रचार, रोड शो ही करते रहें? इसी लिए तो सर्वेश्वरदयाल सक्सेना ने कहा था..

याद रखो

एक बच्चे की हत्या

एक औरत की मौत

एक आदमी का

गोलियों से चिथड़ा तन

किसी शासन का ही नहीं

सम्पूर्ण राष्ट्र का है पतन

इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

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