मिलिए मुंबई की पोस्टवुमन से...
मनीषा दानेश्वर सायल, पार्वती कालिदास गोहिल और वीरू माधव जितिया, इन तीन महिलाओं को मुंबई जनरल पोस्ट ऑफिस ने नौकरी दी जो 1984 से खत बांट रही हैं. फिलहाल GPO में 103 पोस्टमैन की तुलना में 10 पोस्टवुमन नौकरी कर रही हैं, बाकी डेली वेज बेसिस पर काम करती हैं
1984 में दानेश्वर, गोहिल और जितिया तीनों को GPO में पोस्टवुमन के पद के लिए इंटरव्यू के लिए मंत्रालय से आए थे फोन. ये उन पहली महिलाओं में से हैं जिन्हें नौकरी के लिए अप्रोच किया गया था. उस वक्त इन महिलाओं को 300 रुपये का वेतन दिया जाता था और आज ये महिलाएं 50 हजार रुपये महिना की तनख्वाह पर काम कर रही हैं. कुछ पोस्टवुमन अपने परिवार में सबसे ज्यादा कमाने वाली सदस्य हैं
पहले इन महिलाओं के परिवार राजी नहीं थे क्योंकि इन्हें चिट्टी बांटने के लिए यात्रा करनी पड़ती थी. लेकिन सरकारी नौकरी को कौन मना करता है?
मेरे पति ने मना किया था, मत जाओ, उस वक्त कोई नौकरी करने के लिए बाहर नहीं जाता था. मैंने घर वालों, रिश्तेदारों को नहीं बताया था कि मैं पोस्टऑफिस में काम करती हूं. लोग क्या कहेंगे? ये तो घूमने का काम है ना. ये तो औरत होकर घूमती हैपार्वती कालिदास गोहिल
मेरी फैमिली में मुझे मां का सहयोग था, पापा बोलते थे ऐसे बाहर नहीं जाना है, हमारे जमाने बाहर निकलने की मनाही थी. लड़कियों को बाहर निकलने नहीं देते थे, तो थोड़ा डर सा लगता था.वीरू माधव जितिया
जब हमने उनसे पूछा कि क्या उन्हें कोई भेदभाव का सामना करना पड़ा तो उन्होंने कहा कि पोस्ट ऑफिस में सभी पोस्टमैन उनके भाई जैसे हैं और वो एक परिवार के तौर पर काम करते हैं.
चिट्ठी देने वाले का औपचारिक नाम पोस्टमैन ही है, लेकिन पार्लियामेंटरी स्टैंडिंग कमिटी ने इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से जेंडर न्यूट्रल करने का आग्रह कर इस पद को 'पोस्ट परसन' में बदलने को कहा है.
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