कैमरा: विष्णु वेणुगोपालन
एडियर: आशीष मैक्यून
क्या आपने कभी ऐसे शख्स के बारे में सुना है जिसके पास पांच डिग्री है, PhD कर रहा है, लेकिन फिर भी सफाई कर्मचारी के तौर पर नौकरी कर रहा हो? मुंबई के सुनील यादव ऐसे ही शख्स हैं, फिलहाल नगरपालिका में बतौर सफाईकर्मी काम कर रहे हैं. उनके पिता भी सफाईकर्मी थे, उनके पैरालाइज्ड होने के बाद सुनील यादव को ये काम मिला. इस काम को करना सुनील के लिए आसान नहीं था. पहले दिन के बारे में बताते हुए सुनील कहते हैं,
2005 में, जब मैं एक सफाईकर्मी के तौर पर पहले दिन काम पर गया, तो वो दिन नरक से भी बदतर था. वहां मरी हुई बिल्लियां थीं, चूहे इधर-उधर भाग रहे थे और मुझे उन परिस्थितियों में काम करना पड़ा. मैं अपनी नाक ढंकता रहा, लेकिन मेरे सहकर्मियों ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए. मैंने अपने भाग्य को कोसा और उस दिन किसी तरह काम किया.
सुनील दसवीं में फेल हो गए थे, लेकिन नौकरी मिलने के बाद उन्होंने फिर से पढ़ाई की शुरुआत की. पहले ग्रेजुएशन किया और फिर जर्नलिज्म की पढ़ाई की. सोशल वर्क में डिप्लोमा और मास्टर्स भी कर चुके हैं.
ये पूछने पर कि BMC ने इस पूरी प्रक्रिया में कैसे उनका साथ दिया, सुनील ने बताया कि उन्हें प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली.
अगर आप BMC को देखें, तो वहां बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है. मैंने 1989 में मुंबई महानगर पालिका एक्ट में एक प्रावधान के तहत स्टडी लीव के लिए आवेदन किया था, लेकिन मेरे आवेदन के संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की गई थी. एक साल बाद भी, मुझे स्टडी लीव नहीं मिली.सुनील यादव
उन्होंने बताया कि BMC में लेबर ऑफिसर के लिए एक सुविधा उपलब्ध थी, लेकिन नौकरी के लिए योग्य होने के बावजूद उन्हें वॉक-इन-इंटरव्यू देने की अनुमति नहीं दी गई. सुनील ने कहा कि उनकी जाति की वजह से ऐसा हुआ.
भारत में जातिवाद के बारे में सुनील कहते हैं,
पूरी जाति व्यवस्था इतनी खतरनाक है. तब हमारे समुदाय पर अत्याचार हुआ था, अब हम पर अत्याचार किया जाता है और कल भी हमें प्रताड़ित किया जाएगा.
सुनील फिलहाल टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) से पीएचडी कर रहे हैं. वो अपने समुदाय के लिए एक रोल मॉडल बनकर एक क्रांति लाने की उम्मीद करते हैं.
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