वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा
लॉकडाउन में जब यूपी सरकार ने प्रवासी मजदूरों की पैदल एंट्री रोकी तो मकसद था कि मजदूर असुरक्षित तरीके से, पैदल घर पहुंचने की कोशिश न करें, ताकि उन्हें हादसों से बचाया जा सके. क्योंकि ये फैसला औरेया हादसे के बाद किया गया था, जिसमें 32 मजदूरों की जान गई थी. इस फैसले के साथ स्वाभाविक उम्मीद थी कि अब मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए सरकार कमर कस लेगी, उन्हें बस देगी, उन्हें साधन देगी ताकि लाख मुसीबतें उठाकर अपने सूबे की सीमा तक पहुंचे मजदूरों और परेशानी न हो. लेकिन क्या ऐसा हुआ? नहीं.
इस ग्राउंड रिपोर्ट में हम आपको बता रहें कि किस तरह से अपने प्रदेश की सरहद तक पहुंचते-पहुंचते मजदूरों के पांवों के छालों पर यहां भी मरहम नहीं लगा, यहां भी उनकी राह में कांटे ही कांटे हैं. गाजियाबाद के कविनगर में जब हजारों मजदूरों के हुजूम की तस्वीरें हमने देखी तो हम वहां पहुंचे. वहां जो कहानी सामने आई वो चौंकाने वाली थी.
आपने रामलीला ग्राउंड में सरकारी अमले की बदइंतजामी की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ने की तस्वीरें देखीं. लेकिन इन तस्वीरों के पीछे की कहानी ये है कि हमें कविनगर के रामलीला मैदान में ऐसे मजदूर मिले जो दो-दो बार रजिस्ट्रेशन करा चुके थे, लेकिन फिर भी उन्हें बस नहीं मिली थी.
हमें ऐसे मजदूर मिले जिन्हें बस में बैठने के बाद उतार दिया गया. हमें ऐसी मां मिली जो अपने तीन बच्चों के साथ बिना खाना, बिना राशन के बस का इंतजार कर रही थी. जिन लोगों को बस नहीं मिल पाई उन्हें ग्राउंड के पास ही एक हॉल में ठहरने को कहा गया. हमने हॉल के अंदर का भी जायजा लिया लेकिन वहां की हालत इतनी दयनीय थी कि क्या कहें. हॉल के अंदर एक दूसरे से चिपके लोग सोने को मजबूर मिले. वहां गंदगी के बीच बैठे लोग मिले. इस सरकारी फैसिलिटी में न तो सोशल डिस्टेंसिंग का कोई ख्याल रखा जा रहा था और न ही बेसिक साफ-सफाई का.
मजदूरों ने बताया कि जाने वाले हजारों हैं, लेकिन बसें बहुत कम. लिहाजा दो महीने से ज्यादा अपने गांव पहुंचने की कोशिश कर रहे कई मजदूरों को वहीं रामलीला ग्राउंड में पेड़ों के नीचे रात गुजारनी पड़ी. हमें बदायूं इलाके के कुछ ऐसे लोग भी लोग मिले, जिनसे कह दिया गया था कि उनके इलाके की बस नहीं है,
लिहाजा उनका कुछ नहीं हो सकता. आप भी ग्राउंड जीरो से ये रिपोर्ट देखिए और सोचिए कि जिस प्रदेश में तेरी बस-मेरी बस पर सियासत चल रही है, वहां मजदूर बिना बस कितने बेबस हैं. देखिए कि किस तरह से सरकार ने मजदूरों की पैदल एंट्री पर तो रोक पर टीवी चैनलों पर तालियां बटोर ली गईं और मजबूर मजदूरों को खाली हाथ छोड़ दिया गया.
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