आंकड़े छिपाओ, तोड़ो-मरोड़ो, अपनी सुविधा के मुताबिक डेटा जनता को बताओ या झुठला दो. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि भारत में 2017-18 में उपभोक्ता खर्च में गिरावट दर्ज की गई यानी कंज्यूमर स्पेंडिंग में गिरावट. ऐसा चार दशक में पहली बार हुआ. NSO की एक कमेटी ने 19 जून 2019 को इस सर्वे की रिपोर्ट को जारी करने की मंजूरी दे दी थी, लेकिन सरकार ने अभी तक इसे जारी नहीं किया है. नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस की ये रिपोर्ट लीक हुई है और खबर बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी है.
'स्टेट इंडिकेटर्स: होम कंज्यूमर एक्सपेंडिचर इन इंडिया' शीर्षक से लीक हुए एनएसओ का सर्वे बताता है कि भारत में खासकर ग्रामीण भारत में डिमांड घट गई है. ये बेहद अहम डेटा था क्योंकि ज्यादातर गांवों में बसने वाले भारत की ग्रामीण स्पेडिंग घटने का मतलब है इकनॉमी के लिए बेहद खराब संकेत.
NSO का डेटा खुलासा करता है कि साल 2017-2018 में नेशनल लेवल पर कन्जयूमर स्पेडिंग में 3.7% और ग्रामीण भारत में 8.8 फीसदी की गिरावट आई.
जाहिर है ये डेटा देश की आर्थिक हालत के बारे में अच्छी तस्वीर नहीं पेश कर रहे थे. लेकिन इस समस्या को पहचानते हुए इस पर एक्शन लेने के बजाय इसे पब्लिक के सामने लाया ही नहीं गया. लेकिन आंकड़े को छिपाने, बदलने, खुद के लिए नफा-नुकसान को देखते हुए बाहर लाने की ये बाजीगिरी सरकार ने पहली बार नहीं दिखाई है. चलिए आपको बताते हैं कौन-कौन सी रिपोर्ट सरकार अपनी मर्जी के मुताबिक देश को बताना नहीं चाहती थी या है.
बेरोजगारी के आंकड़े छिपाए गए
2019 लोकसभा चुनाव से पहले NSSO की एक रिपोर्ट लीक हुई थी, जिसके मुताबिक देश में बेरोजगारी पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा है. लेकिन कहीं नुकसान ना हो जाए इसे देखते हुए सरकार इस रिपोर्ट को हवा-हवाई बताती रही. यही नहीं इस रिपोर्ट को जारी करने करने में देरी की वजह से National Statistical Commission के चेयरपर्सन पीसी मोहनन सहित दो सदस्यों ने इस्तीफा तक दे दिया.
जब चुनाव निपट गया और मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आ गई तो शपथ ग्रहण के तुरंत बाद ये आंकड़े आधिकारिक रूप से जारी किए गए.
आंकड़ों के मुताबिक, देश में जुलाई 2017 से लेकर जून 2018 के दौरान एक साल में बेरोजगारी 6.1 फीसदी बढ़ी. अब कोई ये बताए कि ये बेरोजगारी के आंकड़े जारी करने से किसे चुनाव में नुकसान हो सकता था?
NCRB में किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों में बदलाव
रिपोर्ट और आंकड़ों पर कुंडली जमाकर बैठने की कहानी एक और है. साल 1953 से लगातार पब्लिश की जा रही ‘क्राइम इन इंडिया’ रिपोर्ट एक अहम दस्तावेज है, जो देश में कानून व्यवस्था के हालात को बताती है, लेकिन सरकार ने 2015 के बाद 2019 में ये रिपोर्ट जारी की. अब सवाल यह भी है कि एनसीआरबी ने 2017 का क्राइम डेटा 2019 के आखिर में क्यों जारी किया है? खैर इसमें भी एक नहीं कई झोल हैं.
किसानों के आत्महत्या के डेटा में बदलाव
किसान आत्महत्या पर NCRB की ताजा रिपोर्ट में कई बदलाव किए गए हैं. पहली बार राज्य के आकंड़ों की लिस्ट नहीं दी गई. वहीं सिर्फ 5 राज्यों के आकंड़े फीसदी में जारी किए गए. रिपोर्ट में किसान आत्महत्या के कारणों को नहीं बताया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक NCRB ने 18 महीने पहले ही गृह मंत्रालय को ये रिपोर्ट सौंप दी थी. इसी रिपोर्ट में बताया गया कि 2016 के लिए किसान आत्महत्या के कारणों पर डिटेल में आंकड़े जुटाए गए थे. लेकिन हैरानी की बात है कि जारी हुई इस रिपोर्ट में कारणों को पब्लिश नहीं किया गया. आंकड़े तब जारी किए गए जब लोकसभा चुनाव हो गए और महाराष्ट्र, हरियाणा जैसे राज्यों में भी मतदान हो गया.
लिंचिंग, हेट क्राइम का डेटा भी गायब
यही नहीं NCRB ने अपराध की घटनाओं पर जो रिपोर्ट जारी की है उसमें लिंचिंग, खाप पंचायत के निर्देशों पर हत्या और सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए लोगों की कोई जानकारी नहीं दी गई है. जबकि इन सब घटनाओं से जुड़े आकंड़े जुटाए गए थे और सरकार को सौंपी गई रिपोर्ट में शामिल थे. लेकिन इसके बाद फाइनल रिपोर्ट से ये जानकारी हटा ली गई. आखिर क्यों?
GDP का डेटा सवालों के घेरे में
ये तो कुछ बड़े मामले हैं जिनमें आंकड़ों पर पहरा बिठा दिया गया. लेकिन एक बड़ा डेटा और है, जीडीपी का, जिस पर अक्सर सवाल उठते हैं. देश में मंदी है, बेरोजगारी है, लेकिन समस्या कितनी गंभीर है, कितनी बड़ी, इस पर भी विवाद है.
सरकार ने जीडीपी यानी ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट की गणना के लिए बेस इयर में बदलाव किया. इस पर भी सवाल उठ रहे हैं. सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके अरविंद सुब्रह्मण्यन ने दावा किया कि भारत ने 2011-12 से 2016-17 के बीच जीडीपी ग्रोथ रेट को करीब 2.5 परसेंट ज्यादा आंका है. हालांकि सरकार इसे भी गलत बता रही है.
अब सवाल बस इतना है कि आंकड़े छिपा लेने या बदल देने से क्या देश को फायदा होगा? आंकड़ों की इस बाजीगरी से वोट तो मिल जाएगा, लेकिन डूबती अर्थव्यवस्था, कमजोर कानून व्यवस्था और बेरोजगारी का सॉल्यूशन कहां से ढूंढेगी सरकार?
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