वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम/विवेक गुप्ता
बिना ड्राइविंग लाइसेंस के पकड़े गए तो 500 नहीं, 5000 का जुर्माना. बिना हेलमेट के पकड़े गए तो 100 नहीं, 1000 रुपये का चालान और 3 महीने के लिए लाइसेंस डिस्क्वालीफाई.
सड़क सेफ हों, इसलिए जो किया जाए कम है...तो मोटर व्हीकल अमेंडमेंट एक्ट 2019 का स्वागत.... लेकिन सवाल ये है कि क्या सिर्फ जुर्माना बढ़ाने से काम चल जाएगा?
सड़क के ऊपर चांद पर मौजूद क्रेटर जितने बड़े गड्ढों का क्या? अचानक प्रकट होते स्पीड ब्रेकर्स का क्या? अंधेरी सड़कों का क्या? चांद वाले क्रेटर, ज्यादा हो गया? भावनाओं को समझिए. बड़ा सवाल ये है, जुर्माना तो बढ़ा दिया लेकिन उन कमियों का क्या जिन पर सरकार ध्यान नहीं दे रही.
ऐसी ही कुछ कमियों के बारे में बता रहे हैं ‘ट्रैफिक न्यूज सिस्टम इन इंडिया’ के फाउंडर शैलेष सिन्हा
चालान एक बड़ा विषय है हमारे देश में, लेकिन उससे बड़ा विषय है ट्रैफिक एजुकेशन का. हमारे स्कूल सिस्टम में ट्रैफिक एक सब्जेक्ट होना चाहिए. बचपन से समझाया जाना चाहिए कि आपके हाथ में जो वाहन है, वो हथियार भी हो सकता है. हमारे देश में (हर साल) लगभग डेढ़ लाख लोग सड़क हादसों में मरते हैं. कारण ये नहीं है कि लोग किसी को मारना चाहते हैं, कारण ये है कि एजुकेशन सिस्टम नहीं है. गलत इन्फ्रा है, मार्किंग सही नहीं है, स्पीड ब्रेकर गलत हैं.शैलेष सिन्हा
सबसे पहले रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर की बात करते हैं. सड़कों पर गड्ढों के अलावा और भी कई ऐसी कमियां अक्सर देखने मिलती रहती हैं, जिन्हें दूर करना सरकार की जिम्मेदारी है. जैसे स्पीड ब्रेकर की ही बात कर लेते हैं.
इंडियन रोड कांग्रेस यानी IRC के मुताबिक, स्पीड ब्रेकर्स ऐसे होने चाहिए कि वाहन चालकों को उनकी वजह से नुकसान ना पहुंचे. IRC गाइडलाइन्स के हिसाब से जनरल ट्रैफिक के लिए स्पीड ब्रेकर को 17 मीटर की रेडियस दी जानी चाहिए और 3.7 मीटर चौड़ाई के साथ उसकी ऊंचाई 10 सेटींमीटर होनी चाहिए. इसके अलावा स्पीड ब्रेकर से 40 मीटर पहले इसका एक वॉर्निंग बोर्ड भी लगा होना चाहिए.
स्पीड ब्रेकर्स को ऑल्टरनेट ब्लैक एंड व्हाइट बैंड से पेंट किया जाना चाहिए. ये पेंट ऐसा होना चाहिए कि रात में भी आसानी से दिख पाए.
अब बात करते हैं रोड इंटरसेक्शन की, जहां दो या दो से ज्यादा सड़कें मिलती हैं. रोड इंटरसेक्शन के डिजाइन पर और ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए, खासकर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में. ट्रैफिक एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इंटरसेक्शन पर जहां पर्याप्त जगह हो और ट्रैफिक औसत हो वहां राउंड अबाउट यानी गोल चक्कर बनाने पर जोर देना चाहिए. दरअसल गोल चक्कर से गुजरने से पहले वाहनों को अपनी स्पीड कम करनी पड़ती है, यहां सीधी टक्कर की आशंका भी कम होती है. औसत ट्रैफिक वाले गोल चक्करों पर ट्रैफिक सिग्नल की भी जरूरत नहीं पड़ती.
देश के छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में स्ट्रीट लाइट्स की भी कमी दिखती है. ऐसे में रात के वक्त लोग वाहनों को हाई बीम लाइट के साथ चलाते हैं, जिससे सामने से आ रहे वाहन चालक को देखने में दिक्कत होती है. इसलिए सरकार को स्ट्रीट लाइट्स को तेजी से बढ़ाना चाहिए.
अब बात करते हैं, बेसिक ट्रैफिक एजुकेशन की
भारत देश में जहां एक एवरेज आदमी 11 से 12 साल सड़क पर बिताता है, अगर वो 80 साल जिएगा तो उसके पास बेसिक (ट्रैफिक) एजुकेशन होनी चाहिए. हमें ये नहीं पता कि अगर फोर लेन हाईवे है तो उसमें हाईएस्ट स्पीड किसलिए है. हाईएस्ट स्पीड को ओवरटेकिंग स्पीड कहा जाता है, इसका मतलब ये नहीं होता कि आप उस स्पीड पर चल सकते हैं. आप उस स्पीड पर ओवरटेक कर सकते हैं, वो भी एक्स्ट्रीम राइट लेन से.शैलेष सिन्हा
आखिरी बात. हम इस पर नहीं जा रहे कि जुर्मानों को इतना बढ़ाना सही है या गलत, लेकिन सरकार की एक जिम्मेदारी ये भी है कि इस बात को एन्श्योर करे कि फ्यूचर में ट्रैफिक सिस्टम में करप्शन की जड़ें ना जमें. अगर सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाती तो पब्लिक यही कहेगी- सरकार का भी काटो चालान.
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