ADVERTISEMENTREMOVE AD

कोरोना वायरस के शिकार मुंबई के पत्रकार, आखिर कौन है गुनहगार?  

50 से ज्यादा जर्नलिस्ट कोविड19 की चपेट में

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

कैमेरापर्सन: अजय राणा

डॉक्टर हों, पुलिस, या फिर हेल्थकेयर वर्कर्स. फ्रंटलाइन पर खड़े होकर कोरोना महामारी से जंग लड़ रहे तमाम योद्धाओं के खुद घायल आने की खबरें मीडिया ने बढ़चढ़ कर कवर कीं. लेकिन 20 अप्रैल, 2020 को एक ऐसी खबर आई जिससे तमाम लोगों, खासकर पत्रकारों और टीवी चैनलों के होश फाख्ता हो गए. वो खबर थी मुंबई शहर में एक साथ 50 से ज्यादा जर्नलिस्ट के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने की.

कथा जोर गरम है कि...

मुंबई में 50 से ज्यादा पत्रकारों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने की खबर ने देशभर के मीडिया हाउसिस में खतरे का सायरन बजा दिया है. मुंबई के अलावा चेन्नई से भी पत्रकारों के कोरोना का शिकार होने की खबर आई है. दिल्ली सरकार ने भी ग्राउंड जीरो से कोरोना की रिपर्टिंग कर रहे पत्रकारों की टेस्टिंग की कवायद शुरु कर दी है.

लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल है कि ऐसा हुआ क्यों?

  • क्या ये खुद पत्रकारों की लापरवाही है कि तमाम खतरे के बावजूद उन्होंने एहतियात नहीं बरती?
  • क्या रिपोर्टिंग के वक्त उनके पास मास्क, दस्ताने, सैनिटाइजर जैसा सामान, या सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने जैसे हालात नहीं थे कि वो चाहकर भी एहतियात बरत पाते?
  • या फिर टीआरपी की अंधी दौड़ में शामिल टीवी चैनलों ने अपने पत्रकारों को मुंबई की उन जगहों पर जाने से नहीं रोका जहां कोरोना संक्रमण का खतरा सरेआम था. मसलन धारावी, बांद्रा, वर्ली, या फिर कस्तूरबा गांधी अस्पताल जहां हर दिन सैकड़ों की तादाद में मरीज कोरोना वायरस की जांच के लिए पहुंच रहे थे.

पत्रकारों की आपबीती

कोविड19 की चपेट में आए मुंबई के ज्यादातर पत्रकारों में युवा रिपोर्टर्स, कैमरापर्सन और फोटो जर्नलिस्ट हैं जिन्हें डॉक्टरों, पुलिस या हेल्थकेयर वर्कर्स की ही तरह खतरे के बिलकुल करीब जाकर उससे आंख मिलानी पड़ती है. क्विंट से बातचीत में कोरोना पॉजिटिव पाए गए एक टीवी पत्रकार ने बताया-

हमने चैनल को कहा था कि ज्यादातर विजुअल्स WhatsApp पर वगैरह पर मिल जाते हैं. लाइव चैट स्काइप पर मैनेज हो सकता है. लेकिन धारावी में पहला केस आने के बाद दिल्ली ऑफिस से एक प्रोड्यूसर ने (एहतियात बरतते हुए)ग्राउंड रिपोर्ट करने को कहा. कहा कि, ‘धारावी ट्रेंड कर रहा है’. तो जाना पड़ा.
मुंबई के एक टीवी पत्रकार

एक मराठी चैनल के रिपोर्टर ने क्विंट को बताया

मैं 5-6 दिन से घर पर था लेकिन बांद्रा (वेस्ट) में कामगारों के स्टेशन पर आने की खबर सभी चैनलों पर हेडलाइन बन गई तो घर से निकलना पड़ा. स्टेशन पर भारी भीड़ थी और हमें तो रिपोर्टिंग करनी ही थी.
एक मराठी चैनल के पत्रकार

ऐसा नहीं है कि काम की धुन में खतरे का अंदेशा नहीं होता. लेकिन शायद उस खतरे को नापने का वक्त नहीं होता. एक रिपोर्टर ने हमें बताया कि वो धारावी में बीएमसी की स्क्रीनिंग पर रिपोर्टिंग करने गए थे. बेहद संकरी गलियों के बीच रिपोर्टिंग करनी थी. धारावी में कोरोना का केस भी सामने आ चुका था. वहां उन्हें अंदेशा हुआ कि वो भी किसी संक्रमित व्यक्ति या जगह के संपर्क में आ चुके हैं. लेकिन काम का दबाव था. सैनिटाइजर से हाथ साफ किए और फिर काम में लग गए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सुरक्षा की नजरअंदाजी!

आप कह सकते हैं कि सैनिक जंग के वक्त नहीं लड़ेगा तो कब लड़ेगा? इसी तरह पत्रकार बड़ी घटना के वक्त सड़क पर नहीं निकलेगा तो कब निकलेगा? एक पत्रकार को कवरेज के लिए कोविड19 से बड़ी स्टोरी क्या मिलेगी? ये तो लाइफटाइम स्टोरी है.

बात बिलकुल सही है लेकिन मुद्दा एहतियात और हिफाजत का है. यूनिसेफ से लेकर CPJ यानी Committee to Protect journalists ने कोविड19 की कवरेज कर रहे पत्रकारों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं. इनमें से कई बुनियादी हैं जो सब पर लागू होते हैं और कई खासतौर पर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों के लिए. मसलन-

  • हर रिपोर्टिंग के बाद हाथ धोना और एल्कोहल बेसड सैनिटाइजर से अपने मोबाइल फोन को सैनिटाइज करना
  • दूर से इंटरव्यू लेना. यानी सोशल डिस्टेंसिंग का नियम काम के वक्त भी निभाना
  • इंटरव्यू के लिए लेपल माइक, यानी शर्ट में लगने वाले छोटे माइक (एंकर अपने माइक पर इशारा करके दिखाता है) का इस्तेमाल ना करना
  • शूटिंग की गाड़ी में दो से ज्यादा लोगों का ना होना
  • शूटिंग के वक्त भी अपने कैमरे वगैरह को फर्श पर ना रखना
  • अपने माइक्रोफोन्स को लगातार सैनिटाइज करना
  • रिपोर्टिंग के दौरान हर वक्त.. जी हां.. हर वक्त मास्क पहनना. वो भी अच्छी क्वालिटी का
  • खांसते या छींकते वक्त अपने मुंह और नाक को कवर करना
अब जरा ये बताइये कि हमारे देश में कितने टीवी चैनल इन नियमों को सख्ती से लागू करते हैं. ग्राउंड पर जाने वाली टीम को चैनल ने मास्क दिए हैं तो उनकी क्वालिटी का पता नहीं. कहीं मास्क की क्वालिटी सही है तो ग्लव्स नहीं दिए. कहीं दोनों हैं तो गाड़ी में 3-4 लोग बैठे हैं. और घर पर रहने का तो विकल्प ही नहीं है.

कोरोना आउटब्रेक के बाद एक नेशनल चैनल के बड़े एडिटर का ऑडियो क्लिप लीक हुआ था जिसमें वो अपने स्टॉफ को कह रहे थे कि अगर ऐसे वक्त में घर बैठना है तो नौकरी छोड़ दो.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इंटरनेशनल मीडिया के कायदे अलग

लेकिन इंटरनेशनल मीडिया में तो ऐसा नहीं होता. दुनिया के एक नामचीन मीडिया हाउस के कर्मचारी ने मुझे बताया कि कोरोना आउटब्रेक के बाद उनके यहां कवरेज का पूरा स्टाइल बदल गया.

हर आइडिया का पहले रिस्क असेसमेंट होता है. यानी स्टोरी करने में खतरा कितना है? ये आकलन करने वालों में सिर्फ पत्रकार नहीं बल्कि डॉक्टर और सिक्योरिटी से जुड़े लोग भी शामिल रहते हैं. और अगर वो स्टोरी रिस्क असेसमेंट के इम्तेहान में पास ना हुई तो उसे कवर करने से मना कर दिया जाता है. फील्ड में केयरफुल डेप्लोयमेंट होती है. यानी ग्राउंड पर गए भी तो गाड़ी से ही शॉट्स लेंगे. इंटरव्यू वीडियो कॉल के जरिए करेंगे वगैरह वगैरह.
एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया हाउस का कर्मचारी

चीन, यानी जहां से कोरोना की शुरुआत हुई थी वहां के इंग्लिश चैनल CGTN के दिल्ली में तैनात एक रिपोर्टर ने बताया कि

पिछले कुछ दिनों से उन्हें भारत में ग्राउंड रिपर्टिंग करने से रोक दिया गया है. चैनल कुछ दिनों में उन्हें पीपीई किट भेजेगा उसी के बाद ग्राउंड रिपोर्टिंग होगी. CGTN ने कोरोना के गढ़ वुहान में रिपोर्टिंग करने वाले अपने रिपोर्टर्स को भी Hazardous materials suit (ये PPE की तरह ही होते हैं), गोग्लस और क्वालिटी ग्लव्स जैसी चीजें मुहैया करवाई थीं.
चीन के CGTN चैनल के दिल्ली रिपोर्टर
ADVERTISEMENTREMOVE AD

खतरा उठाना पत्रकार की ड्यूटी!

अब जरा वापिस मुंबई के पत्रकारों पर आते हैं. खास बात ये है कि इन तमाम पत्रकारों में से ज्यादातर को कोरना के लक्षण नहीं थे. यानी टेस्ट ना होते वो यूंही ड्यूटी पर आते रहते और परिवारवालों से भी सामान्य मेल-मिलाप बना रहता.

मुझे अप्रैल, 2015 में नेपाल में आए खतरनाक भूकंप की कवरेज याद आती है. जब दिल्ली से मैं काठमांडू पहुंचा तो एयरपोर्ट के डिपार्चर पर सैंकड़ों लोगों की भीड़ जमा थी और एराइवल पर बस मेरे जैसे चंद जर्नलिस्ट. नेपाल में हर दिन, लगातार भूकंप के झटके महसूस किए जा रहे थे और हर कोई नेपाल छोड़कर भागना चाहता था. लेकिन उस वक्त हम वहां रहने गए थे, कवरेज के लिए.

डॉक्टर को मेडिकल इमरजेंसी के वक्त खतरों से जूझना पड़ता है, फौजी को जंग के वक्त, पुलिसवालों को लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने पर या डिसास्टर मैनेजमेंट से जुड़े लोगों को किसी प्राकृतिक आपदा के वक्त.

लेकिन पत्रकार एक ऐसी कौम है जिसे इनमें से हर वक्त ग्राउंड पर उतरना पड़ता है. लिहाजा उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी बड़ी होनी चाहिए. मीडिया ऑर्गेनाइजेशन की भी और सिस्टम की भी.

तो मुंबई में पत्रकारों के साथ हुए हादसे को भले ही कोई हालात की विडंबना कह ले लेकिन उनका गुनहगार सिर्फ हालात नहीं.. कोई और भी है.

उम्मीद है कि मीडिया हाउस और सिस्टम इस संवेदनशीलता को समझेंगे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×