एक तो प्रवासी मजदूर होने के चलते पैदल घर पहुंचने का दर्द ऊपर से सांप्रदायिक उन्माद की मार अलग से. मोहम्मद माजिद अंसारी हैदराबाद में मजदूरी करते थे, लॉकडाउन में वो वहां से घर झारखंड के मांडू लौटने के लिए किसी तरह सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करने को मजबूर थे. लेकिन लौटते हुए रास्ते में वो मजहबी नफरत का शिकार भी बन गए. माजिद ने क्विंट को अपनी आपबीती बताई.
19 साल के मोहम्मद माजिद अंसारी और उनके दो भाइयों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब होने के कारण पढ़ाई नहीं कर सके. काम के सिलसिले में माजिद छोटी सी उम्र में हैदराबाद पहुंचे. जहां उन्हें कृष्णा कंस्ट्रक्शन में हेल्पर के तौर पर काम मिला. वहीं हाल ही में उन्होंने पोपलेन ऑपरेट करना सीखा और मार्च में उनको पोपलेन ड्राइवर का काम उसी कंपनी में मिल गया, जिसके लिए माजिद को 15,000 रूपये वेतन के रूप में हर महीने मिलने वाले थे.
काम बंद होने के कारण माजिद को घर लौटना पड़ा
लॉकडाउन लगने के बाद काम बंद हो गया. जो पैसा जमा था वह भी खत्म हो रहा था. इधर दो महीने का वेतन नहीं मिला और लॉकडाउन आगे बढ़ता देख माजिद 12 मई को घर के लिए पैदल ही निकल गए. लगभग 50 किलोमीटर पैदल चलने के बाद पहले नागपुर, फिर झांसी , उसके बाद 16 मई कानपुर के लिए ट्रक पकड़ा. 17 मई को दिन के 2 बजे कानपुर सिटी के बाहर ही चेकपोस्ट पर पुलिस ने ट्रक से प्रवासी मजदूरों को उतार दिया. उतरने के बाद वह 4 अन्य लोगों के साथ पैदल आगे बढ़ने लगे.
ड्राइवर ने कहा- आधार कार्ड दिखाओ
क्विंट से बात करते हुए माजिद ने कहा- ‘आगे एक एम्बुलेंस ड्राइवर ने कोरोना टेस्ट की बात करवाने की बात कहते हुए एम्बुलेंस में बैठा लिया. लखनऊ रुट पर लगभग 30 मिनट एम्बुलेंस आगे बढ़ी. सुनसान जगह पर ड्राइवर ने कहा कि सभी अपना आधार कार्ड दिखाइए. हम सबने अपना अपना आधार कार्ड दे दिया. ड्राइवर ने सभी के कार्ड देख कर बाकी चार लोगों को बुला कर कार्ड वापस कर जाने के लिए कह दिया, लेकिन मुझे वापस नहीं किया’
“ड्राइवर मेरे मजहब को टारगेट करते हुए अपशब्द कहते हुए बोला कि तुम यहां कोरोना फैलाने आए हो. उसके बाद उन लोगों ने मेरे साथ मार पीट शुरू कर दी. मेरा पर्स छीन लिया. मोबाइल भी पॉकेट से निकालने की कोशिश की लेकिन टाइट पैंट होने और मेरे विरोध करने पर वो पॉकेट से मोबाइल नहीं निकाल सके. इस पर वह और उग्र हो गए और एक अंगौछा से गर्दन दबाने लगे. इस बीच हो रही हाथापाई की वहज से शीशा टूटा और मैं बाहर निकल कर जंगल की तरफ बेतहाशा भागने लगा”मोहम्मद माजिद, पीड़ित
माजिद के भाई साजिद ने कहते हैं कि
“असल में 17 तारीख को 4 बजे मेरे भाई ने कॉल कर घटना की जानकारी दी. उसके बाद उसका मोबइल बंद हो गया. हम सभी मांडू थाना गए और थानेदार को ये घटना बताई. वो बोले यह केस मेरे स्टेट का नहीं है. मैंने कहा कि सर उसके मोबइल की लास्ट लोकेशन के हिसाब से सबंधित क्षेत्र के थाना की मदद से उसे तलाशा करवाया जाए. इस पर वह वह बोले भाई के लापता की कम्पलेन दो .”मोहम्मद साजिद अंसारी
वहीं रामगढ़ के मांडू थाना प्रभारी राम ब्रिज प्रसाद का कहना है कि मोहम्मद साजिद अपने भाई के साथ हुई घटना को लेकर आये थे, लेकिन उनका इंटेंशन आवेदन देने से ज़्यादा कानपुर जाने के लिए पास मांगने पर था.
प्रशासन की मदद से पहुंचा घर
मोहम्मद माजिद बताते हैं कि वो भूखे प्यासे पैदल लखनऊ पहुंच तो गए, लेकिन उनके पास पास पैसे नहीं थे. एक मोबाईल था वह भी स्विच ऑफ हो चुका था. आखिर में लखनऊ में कुछ पुलिस वालों ने मदद की और माजिद को बिहार बॉर्डर तक बस पर बिठा दिया. वहां से माजिद किसी तरह अपने घर झारखंड के मांडू पहुंचे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)