वीडियो एडिटर- मोहम्मद इब्राहीम
"मेरे पति ने कहा मारो नहीं, मैं तुम्हारा काम करूंगा, लेकिन उन्हें काट कर जला दिया. लेकिन पुलिस कहती है उनकी लाश नहीं मिली है इसलिए वो लापता हैं." ये कहते हुए 70 साल की मुख्त्यारी आपने आंसू को आंखों से निकलने से रोकती हैं. मुजफ्फरनगर दंगे को अब पांच साल बीत चुके हैं. लोगों की जिंदगी की गाड़ी अब धीरे-धीरे अपने रास्ते पर चलने लगी है, लेकिन मुख्त्यारी के पति की तरह करीब 15 लोग अब भी अपने घर को नहीं लौटे हैं. वो सरकारी आंकड़ों में लापता हैं.
27 अगस्त 2013 को एक छेड़छाड़ की घटना से मौत की तूफान में बदलने वाले मुजफ्फरनगर में 60 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. 50,000 से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे. पुलिस ने मरने वालों की लिस्ट जारी की साथ ही लापता लोगों की भी.
दंगे की पांचवीं बरसी पर द क्विंट मुजफ्फरनगर के उन लापता लोगों के घर पहुंचा. जहां इंतजार के साथ-साथ सिस्टम की नाकामी की भी कहानी सुनने को मिली.
मां और पिता दोनों को खोने का दर्द
इसी दौरान हमारी मुलाकात लिसाढ़ के रहने वाले दिलशाद से हुई. दंगे की वजह से दिलशाद को अपने परिवार के साथ लिसाढ़ छोड़ कर भागना पड़ा था. दिलशाद बताते हैं, "मुजफ्फरनगर के कवाल में पंचायत हुई, उसके बाद पता नहीं क्या हुआ कि दूसरे समुदाय के लोगों ने वहां से आने के साथ हमें मारना, काटना, लूटना, और हमारे मकानों में आग लगाना शुरू कर दिया. हम अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर वहां से भागने लगे. लेकिन हमारे मां बाप पीछे छूट गए."
मेरी मां की लाश नहीं मिली लेकिन पुलिस ने कहा तुम्हारी मां मर चुकी है. उन्होंने हमें मां का सामन दिखाया. लेकिन हमारे अब्बा का कोई पता नहीं चला. पुलिस ने उन्हें लापता बताया. हमारी मां को जिन लोगों ने मारा उन्हें आजतक सरकार ने कुछ क्यों नहीं किया.
मां हुई लापता तो पिता को सदमे ने मार डाला
हम लापता लोगों के परिवार को ढूंढते हुए शामली के जिडाना पहुंचे. जहां हमें अयूब मिले. अयूब की मां से लापता हैं. अयूब कहते हैं, पांच साल हो गया बताते बताते लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ, मां तो मां ही है. ये तो सबको पता है. इसी गम में मेरे पिता भी नहीं रहे."
“गुनहगारों को बचा रही है पुलिस”
अयूब ने पुलिस पर बड़ा आरोप लगाया है. अयूब को लगता है कि उसकी मां गायब नहीं हुई हैं बल्कि उनकी हत्या हुई है.
मेरी मां को पुलिस इसलिए मृत घोषित नहीं कर रही है क्योंकि पुलिस के सामने सब कुछ हुआ है. जो मुजरिम है उन्हें बचाने की कोशिश कर रही है. पुलिस वाले मुजरिमों को बचा रहे हैं कि वहां कुछ नहीं हुआ. वहां से सब भाग गए. अगर पकड़े जाएंगे तो पुलिस दबाव में घिरेगी. लेकिन प्रशासन चुप है. सबको पता है. इसलिए लोगों का गायब बताया जा रहा है.
घर वापस जाने की बात पूराने जख्म कुरेद देती है
हमारा अगला पड़ाव था शामली का कांधला. जहां हमारी मुलाकात रहीसुद्दीन से हुई. रहीसुद्दीन के पिता भी दंगे के बाद से गायब हैं. लेकिन रहीसुद्दीन की माने तो उनके पिता को उनके ही गांव लिसाढ़ के लोगों ने उनके सामने उनके पिता को मारा था. फिर भी किसी का कुछ नहीं हुआ. अपने घर वापस जाने के बारे में रहीसुद्दीन कहते हैं, “अब क्या करेंगे वहां, अब तो मकान भी खंडहर हो रहे. जिन लोगों ने हत्या की वही लोग हमारे सामने मिलेंगे तो क्या करेंगे, कहां जाएंगे, कैसे रहेंगे. हम अब नहीं जायेंगे.”
बता दें कि सरकार के मुताबिक मुजफ्फरनगर दंगे में 15 लोग लापता हुए. 15 लापता लोगों के परिवार को सरकार ने 15-15 लाख रुपये मुआवजा के तौर पर भी दिया. लेकिन लापता लोगों के परिवार का मानना है कि मुआवजा से उनके मां-बाप वापस नहीं आ जाएंगे. इसके अलावा इन लोगों को लगता है कि पुलिस अगर इन लापता लोगों को मृत घोषित करती है तो पुलिस को ये भी बताना होगा कि इन्हें मारा किसने. ऐसे में इन लोगों कके दर्द का वक्त के साथ भर पाना नामुमकिन है. अब बस इंसाफ की आस में और अपनों की याद में जिन्दगी बसर हो रही है.
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