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अम्पन तूफान: सुंदरबन के किसानों को कई साल सताएगी ये आपदा

यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सुंदरबन का डेल्टा, अम्पन चक्रवात से काफी प्रभावित हुआ है.

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पश्चिम बंगाल में 21 मई को अम्पन चक्रवात ने तबाही मचा दी. इस घटना में कई लोगों की जान चली गई, घर टूट गए, पेड़ उखड़ गए, हजारों करोड़ का राज्य में नुकसान हुआ है. अम्पन तूफान के बाद का दृश्य अकल्पनीय था. यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सुंदरबन का डेल्टा, इस चक्रवात से काफी प्रभावित हुआ है.

अम्पन की वजह से हुए लैंडफॉल के बाद मिट्टी के तटबंधों को तोड़ कर समुद्र का पानी गांव में प्रवेश कर गया, जिससे कृषि भूमि जलमग्न हो गए, फसल नष्ट हो गए और ताजे पानी की मछलियां मर गई. नमकीन पानी ने भूमि को बंजर बना दिया है. अब खेती योग्य भूमि के इस्तेमाल के लिए इसे कई साल लग सकते हैं.

‘करीब 25,000 लोगों की जिंदगी बुरी तरह प्रभावित हुई. हमारी खेत, फसल तबाह हो गई. मछलियां मर गईं. सब कुछ खत्म हो गया, हमने सब खो दिया.’
नोबीन,मध्य गुरगुरिया गांव निवासी

सुंदरबन दुनिया का सबसे बड़ा मैंग्रोव वेटलैंड का एक अनूठा स्थान है. सुंदरवन के डेल्टा से ही गंगा नदी समुद्र में प्रवेश करती है. ये दक्षिणी बंगाल में फैला है और इसका एक बड़ा हिस्सा पड़ोसी देश बांग्लादेश में पड़ता है. सुंदरबन की छोटे द्वीपों से बना है और करीब 45 लाख लोग इसे अपना घर मानते हैं.

अम्पन से लाखों किसानों के प्रभावित होने का अनुमान है. इससे पहले इन गांवों ने मई 2009 में चक्रवात आएला के प्रकोप का सामना किया था. उन्होंने अपने घरों, अपने कृषि जमीनों और अपनी आजीविका के स्रोत को तबाह होते देखा था, जिसके बाद अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने के लिए उन्हें एक दशक से भी अधिक समय लगा था.

'हमने सब खो दिया'

स्वराज अभियान के अध्यक्ष योगेंद्र यादव की टीम के जरिए, द क्विंट ने मध्य गुरगुरिया गांव के निवासियों की स्थिति जानी, जिन लोगों ने अम्पन के प्रकोप का सामना किया.

‘ये आएला या बुलबुल इसके सामने कुछ भी नहीं है.अम्पन तूफान में अपना खेत खो दिया. कई एकड़ जमीन अब पानी में डूबी है. खेतों में लगी सब्जियां बरबाद हो गईं. हमने सब कुछ खो दिया. हम इस नुकसान को कम नहीं कर सकते हैं.’
सुबोध, मध्य गुरगुरिया गांव निवासी

मध्य गुगुरिया गांव भारत के पश्चिम बंगाल में दक्षिण 24 परगना जिले की कुलतली तहसील में स्थित है. इस गांव के निवासी अपनी जीविका के लिए खेती और मछली पालन करते हैं. किसानों ने कहा, उनकी भिंडी, लौकी और कद्दू की फसल पूरी तरह से तैयार थी, लेकिन उनकी आंखों के सामने कुछ ही घंटों में सब कुछ बर्बाद हो गया.

‘नमकीन समुद्र का पानी कृषि भूमि और ताजे पानी के तलाबों में प्रवेश कर गया है. हमने एक एकड़ जमीन में करेला, भिंडी, कद्दू और लौकी लगाई थी. सब बर्बाद हो गया. मेरे भाई ने हाल ही में इस पर 7 हजार रुपये खर्च किए थे. फसल बड़े हो गए थे. लेकिन अम्पन के कारण सब उखड़ गया. देखिए सारी मछलियां कैसे मरी हुई हैं.’
नोबीन,मध्य गुरगुरिया गांव निवासी
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'मिट्टी से बने बैरिकेड को सुधार की जरूरत थी, लेकिन काम धीरे चल रहा'

अम्पन चक्रवात के आने के बाद समुद्र के पानी को रोकनेवाले 32 तटबंध टूट गए. ग्रामीणों ने इसकी शिकायत प्रशासन से की, उन्हें पता था कि मिट्टी की बाड़ की मरम्मत की आवश्यकता है, लेकिन काम अभी भी बहुत धीमी गति से चल रहा है.

‘प्रशासन को पता था कि बैरिकेड को मरम्मत की जरूरत है. उसे सुधारने का काम बहुत धीरे चल रहा था,जिसके कारण और देरी हुई. समुद्री पानी मिट्टी से बना बैरिकेट तोड़ कर अन्दर आ गया. खेत में 200 से 250 फीट पानी घुस गया है.’
मछली पालन करने वाला किसान, गुरगुरिया गांव निवासी

'विपत्ति की सीमा अकल्पनीय'

सुंदरबन के अंदर अम्पन से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र दक्षिण 24 परगना में घोरमारा दवेप, काकद्वीप, नामखाना और बक्खाली हैं. हालांकि इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बचाव और राहत अभियान अभी भी चल रहा है, लेकिन कई खंड ऐसे हैं जहां राहत कार्य शुरू होना बाकी है.

स्वराज अभियान के महासचिव और जय किसान अंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक अविक साहा ने बताया कि कैसे सुंदरबन एक नाजुक खंड है और आमतौर पर इस क्षेत्र में किसी भी चक्रवाती तूफान से सबसे अधिक प्रभावित होता है. उन्होंने देश के लोगों से प्रभावित क्षेत्रों के कमजोर निवासियों के साथ एकजुटता से खड़े होने की भी अपील की.

उन्होंने कहा, 'सुंदरबन सबसे बुरी तरह से प्रभावित था क्योंकि चक्रवात से यहां नुकसान वहां हुआ था. समुद्री जल ने खेती की जमीन को पूरी तरह से नष्ट कर दिया है. इन जमीनों को फिर से खेती के लिए इस्तेमाल करने के लिए कई साल लगेंगे. कई क्षेत्रों में, स्थानीय प्रशासन और एनडीआरएफ भी नहीं पहुंच पाए हैं. विपत्ति की सीमा कल्पना से परे है और कुछ तस्वीरें जो हमने देखी हैं. मैं राष्ट्र से सुंदरबन के साथ खड़े होने, संकट के इस गंभीर समय में बंगाल के साथ खड़े होने का आह्वान करता हूं.'

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