प्रधानमंत्री ने नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने 15 अप्रैल 2024 को न्यूज एजेंसी ANI को एक इंटरव्यू दिया था. इस इंटरव्यू में PM मोदी ने कई मुद्दों पर बात की. प्रधानमंत्री ने इसी इंटरव्यू में इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) को लेकर भी कई दावे किए. उन्होंने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना पारदर्शिता के लिए थी, इसके रद्द किए जाने के बाद लोगों को पछतावा होगा.
इस मुद्दे पर हमने ट्रांसपेरेंसी एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज से बात की है. अंजलि ने एक-एक कर बताया कि आखिर इलेक्टोरल बॉन्ड योजना क्यों गलत थी और इसे लेकर PM मोदी के दावों की सच्चाई क्या है?
इलेक्टोरल बॉन्ड पर पीएम मोदी के बयान पर आपकी क्या राय है?
अंजलि भारद्वाज: प्रधानमंत्री जो कह रहे हैं वो बहुत ही चौंकाने वाली बात है. इलेक्टोरल बॉन्ड के डिफेंस में वो जो भी बातें कह रहे हैं, जैसे- इससे काला धन रुक जाएगा, जो लोग भी इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध कर रहे हैं वो पछताएंगे और वो कह रहे हैं कि इससे ट्रांसपेरेंसी बढ़ गई है, ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट पढ़ा ही नहीं है.
प्रधानमंत्री बार-बार इस तरह के बयान क्यों दे रहे हैं?
अंजलि भारद्वाज: मुझे तो लगता है कि वह ध्यान भटकाने के लिए ये सब बातें कह रहे हैं. वह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि ये बॉन्ड लाने के पीछे उनकी सोच सही थी लेकिन दिक्कत यह है कि इसको लेकर जो आशंका थी, वो पहले ही बता दी गई थी. अब इसके बारे में बात करने का कोई मतलब नहीं बनता है.
पीएम मोदी ने इंटरव्यू में कहा कि 16 बड़ी कंपनियां जिन पर ED और IT रेड की बातें चल रही थीं, उनकी ओर से 37 फीसदी चंदा ही बीजेपी को और बाकी 63 फीसदी विपक्षी पार्टियों को मिला है. ऐसे में सिर्फ बीजेपी पर आरोप लगाना कितना जायज है?
अंजलि भारद्वाज: देखिए ये क्यों बहुत ही भ्रामक बयान है, मैं थोड़ा सा बता देती हूं. ये जो 16 कंपनियों की बात प्रधानमंत्री कर रहे हैं जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को फंड दिए हैं, करीब 40 फीसदी फंड बीजेपी को गया है. ये ऐसी कंपनियां हैं जिनके ऊपर ईडी, सीबीआई और आईटी डिपार्टमेंट की रेड चल रही थी. ऐसी कंपनियां जिनके ऊपर रेड चल रही है, जिनके ऊपर इन्वेस्टिगेशन चल रहा है तो एक सीधा सवाल उठता है कि ये कंपनियां क्यों चंदा दे रही थीं? क्या यह पैसे एक्सटॉर्शन के लिए दे रही थी? इन कंपनियों से पैसा वसूली के लिए एक पॉसिबिलिटी हो सकती है. दूसरी पॉसिबिलिटी यह हो सकती है कि उनके खिलाफ केस चल रहे थे लेकिन वह चाहते थे कि वह केस रद्द कर दिए जाएं या ठंडे बस्ते में डाल दिए जाएं, इसलिए उन्होंने घूस के तौर पर बीजेपी को ये पैसे दिए.
प्रधानमंत्री अपने इंटरव्यू में पारदर्शिता की बात कह रहे हैं तो क्या पहले चुनावी चंदा देने में पारदर्शिता नहीं थी?
अंजलि भारद्वाज: इससे बड़ी विडंबना नहीं हो सकती कि एक इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम लाई जाए और कहा जाए कि जो भी पैसे इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दिए जाएंगे वो किसी को मालूम नहीं पड़ेगा कि किसने किस पार्टी को पैसे दिए और कहा जाए कि ये पारदर्शिता की स्कीम है तो ये कैसे हो सकता है.
इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले चंदे का क्या कॉन्सेप्ट था?
अंजलि भारद्वाज: इलेक्टोरल बॉन्ड के आने से पहले बैंकिंग चैनल्स के जरिए पैसे दिए जाते थे. चेक या ड्राफ्ट के जरिए या फिर कैश के जरिए राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता था. इनकम टैक्स और रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट में लिखा था कि अगर दस हजार से कम का चंदा कोई देता है तो उनका नाम बताने की कोई जरूरत नहीं है. अब यहां दिक्कत ये थी कि अगर कोई कंपनी 100 करोड़ का चंदा देती थी तो राजनीतिक दल 9,999 रुपये का बहुत सारा वाउचर बनवा लेते थे और कहते थे कि पार्टी को बहुत सारे शुभचिंतकों से पैसा मिला है. वो बताते नहीं थे कि किसने पैसा दिया है. गुमनाम चंदा हो जाता था. ऐसे में सिर्फ आईटी और आरपी एक्ट को बदलने की जरूरत थी और नाम को गुप्त रखने का जो प्रावधान था उसे हटाने की जरूरत थी. अगर प्रधानमंत्री मोदी वास्तव में पारदर्शिता लाना चाहते थे, तो उन्हें यही करने की जरूरत थी.
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