ADVERTISEMENTREMOVE AD

अयोध्या पर फैसले को किसी की आस्था से जोड़कर न देखें: हिलाल अहमद

हिलाल अहमद ने कहा कि कोर्ट ने कानूनी आधार पर इतिहास और पुरातत्व विज्ञान का मूल्यांकन किया है

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

बरसों चले अयोध्या भूमि विवाद का आखिरकार निपटारा हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने जमीन हिंदुओं को देने का फैसला सुनाया है, वहीं, मुस्लिमों को मस्जिद के लिए अयोध्या में ही किसी खास जगह 5 एकड़ जमीन दी जाएगी. इसपर क्विंट हिंदी ने CSDS के एसोसिएट प्रोफेसर हिलाल अहमद से बात की, जिन्होंने बताया कि क्यों इस फैसले को किसी की आस्था के साथ जोड़कर नहीं देखना चाहिए.

‘कोर्ट ये कहता है कि ये किसी की भी आस्था के आधार पर फैसला नहीं किया गया है. ‘धर्मनिरपेक्ष कानून हमारा बुनियादी उसूल है, जिसके तहत हम इस निर्णय पर पहुंचे हैं.’ जो लोग ये कह रहे हैं कि हिंदू आस्थाओं के प्रति ये फैसला है, मुझे लगता है कि ये ठीक नहीं है. क्योंकि कोर्ट तकरीबन तीन-चार बार दोहरा चुका है कि ये फैसला आस्था के आधार पर नहीं किया गया है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों के आधार पर किया गया है.’
हिलाल अहमद, एसोसिएट प्रोफेसर, CSDS

हिलाल अहमद ने कहा कि कोर्ट ने कानूनी आधार पर इतिहास और पुरातत्व विज्ञान का मूल्यांकन किया है. बतौर अहमद, कोर्ट ने रामलला की दलील सशक्त मानी, जिसके सामने सुन्नी वक्फ बोर्ड की दलील कमजोर पड़ गई.

'फैसले के साथ एक परेशानी'

हिलाल अहमद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को एक स्थानीय जमीन का विवाद समझकर निपटारा करता, तो बेहतर होता.

‘सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को हिंदू-मुस्लिम के बीच होने वाले एक बुनियादी झगड़ा समझकर सुलझाया है. कोर्ट इसे जमीन का एक स्थानीय मुद्दा समझकर सुलझाता, तो ज्यादा बेहतर होता. भारत की आने वाली राजनीति इसे हिंदू-मुस्लिम के बीच एक विवादित द्वंद के तौर पर ही याद करेगी.’
हिलाल अहमद, एसोसिएट प्रोफेसर, CSDS

अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है, लेकिन बाबरी विध्वंस मामले में सुनवाई की तारीख अप्रैल, 2020 तय की गई है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×