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दिल्ली हिंसा केस। हमारा ‘दोष’ है कि हम देश बचाना चाहते हैं: आजाद

आजाद ने कहा- पुलिस ने एक्टिविस्ट के नाम दिए, भड़काऊ भाषण देने वालों के क्यों नहीं?

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम

फरवरी में दिल्ली में हुई हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में भीम आर्मी के चीफ चंद्रशेखर आजाद का भी नाम है. पुलिस ने आजाद को आरोप नहीं बनाया है, लेकिन ‘क्रोनोलॉजी’ के हिस्से के रूप में उसका नाम आया है. पुलिस की चार्जशीट में नाम आने को लेकर आजाद ने क्विंट से की बात.

चार्जशीट में पुलिस एंटी-सीएए प्रदर्शनों को लिंक करने की कोशिश की जा रही है. आप इन प्रदर्शनों में काफी एक्टिव थे. इसपर आपका क्या कहना है?

चंद्रशेखर आजाद: आप पुलिस की क्रोनोलॉजी समझिए. ये भी समझिए ये शब्द कहां से आया है. ये हमारे देश के गृहमंत्री जी का दिया शब्द है. दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अंदर आती है, जो सरकार कहेगी वो उन्हें करना पड़ेगा. जिस शख्स ने भड़काऊ भाषण दिए, सरकार के जिन सांसदों ने दिल्ली चुनाव में नफरत की आग बोई, मीडिया के लोगों ने कोई कमी नहीं छोड़ी, उनके नाम तो नहीं होंगे? सभी एक्टिविस्ट के नाम होंगे?

दिल्ली में दंगे से एक दिन पहले, 23 फरवरी को भीम आर्मी की तरफ से भारत बंद की अपील की गई थी. इसपर आरोप लगे कि भीम आर्मी के समर्थकों ने भाषण दिया, जिससे सीएए समर्थकों से झगड़ा हुआ और हिंसा भड़की.

चंद्रशेखर आजाद: अगर ऐसा कुछ भी होता को सरकार तुरंत इन मुद्दों को सामने लेकर आती कि भीम आर्मी द्वारा या किसी प्रदर्शनकारी द्वारा भड़काऊ भाषण दिया गया है. जिन लोगों ने दिए हैं, उनके वीडियो सबूत हैं, उनका क्रोनोलॉजी में नाम नहीं है, उनका चार्जशीट में नाम नहीं है. 23 फरवरी का जो बंद था, उसपर 24 फरवरी को सवाल उठते. सरकार को जवाब देना होता, तो इंटरनेशनल मुद्दा बनता. सरकार ने बचने के लिए दंगों का सहारा लिया. सब समझते हैं.

भीम आर्मी के किसी शख्स ने किसी भी तरह से हिंसा को नहीं भड़काया?

चंद्रशेखर आजाद: इतने दिन से सीएए-एनपीआर-एनआरसी को लेकर प्रदर्शन चल रहा था, कोई भी हिंसा हुई? लेकिन हिंसा कराने का प्रयास कितना किया गया. कोई प्रदर्शनकारी पर गोली चला देता है, भड़काऊ भाषण दिए जाते हैं. कोई मुख्यमंत्री अजीबोगरीब बयान देता है, प्रधानमंत्री कपड़ों से पहचान लेते हैं. भीम आर्मी के लोग संविधान को मानते हैं और संविधान को मानने वाले लोग हिंसा का सहारा नहीं लेते.

“24-25 फरवरी को जो दंगे दिल्ली में हुए थे, वो हुए नहीं थे, बल्कि कराए गए थे, वो प्लान किए गए थे, क्योंकि अगर दिल्ली में दंगे हो रहे हैं और गृहमंत्री और प्रधानमंत्री दिल्ली में रह कर बिल्कुल चुप हैं, तो जहां लाखों की संख्या में प्रदर्शनकारियों को रोका जा सकता था, वहां दिल्ली में इतनी छूट कैसे मिल गई कि इतने लोग आ गए वो भी हथियारों के साथ?”

छात्रों और प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी पर खामोश क्यों?

चंद्रशेखर आजाद: अगर लॉकडाउन खुला होता तो हम सरकार को बता देते कि अपने साथियों के सपोर्ट में हम क्या कर सकते हैं.

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