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MP चुनाव: बीड़ी का चौपट धंधा, कहीं BJP की सेहत न कर दे खराब

सबसे ज्यादा बीड़ी बनाने वाली जगहों में से एक मध्यप्रदेश के सागर में एक छोटा सा इलाका, काकागंज

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“बीड़ी बनाते बनाते 50-55 साल हो गए, अब हाथ पांव नहीं चलते हैं, लेकिन इतने सालों में गरीबी नहीं हटी. अब तो धंधा भी बंद हो रहा है. जब चुनाव जीतते हैं आते हैं बोलते हैं एेसा करेंगे, वैसा करेंगे, लेकिन हम लोगों को कुछ नहीं मिला.”
नन्ही बाई, कारीगर 

ये बोलते हुए 70 साल की नन्ही बाई 30 रुपये रोजाना कमाने के लिए फिर से तम्बाकू को तेंदू के पत्ते में भरकर बीड़ी बनाने लगती हैं. उम्र के साथ चेहरे पर जितनी ज्यादा रेखाएं हैं उससे कहीं ज्यादा शिकन उनके बातों में है.

28 नवंबर को है विधानसभा चुनाव

मध्य प्रदेश में 28 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में हमारी चुनावी यात्रा सागर पहुंची. देश में सबसे ज्यादा बीड़ी बनाने वाली जगहों में से एक मध्यप्रदेश के सागर में एक छोटा सा इलाका है काकागंज. जहां करीब हर घर के बाहर कुछ औरतें बीड़ी बनाते दिख जाएंगी.  बीड़ी फैक्ट्री के मालिकों से लेकर बीड़ी बनाने वाले मजदूरों में सरकार को लेकर नाराजगी देखने को मिली.

“हम एक हजार बीड़ी बनाने का 60 रुपये मिलता है. मैं और मेरी मां एक हफ्ते में करीब 6000 बीड़ी बना लेते हैं. जिससे 400 रुपए हफ्ते का मिल जाता है.”
जानकी गौरी, कारीगर 

17 साल की जानकी गौरी ने अपनी पढाई 8वीं क्लास के बाद छोड़ दी क्योंकि आगे पढ़ना मुश्किल हो गया था.

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क्यों मिलते हैं इतने कम पैसे?

सबसे ज्यादा बीड़ी बनाने वाली जगहों में से एक मध्यप्रदेश के सागर में एक छोटा सा इलाका, काकागंज

दरअसल, बड़ी-बड़ी कंपनियों के ब्रांड के तहत जो बीड़ी बाजार में बिकती है वो इन्हीं घरों में बनते हैं. सबसे पहले बीड़ी बनाने वाली कंपनी सट्टेदारों को बीड़ी बनाने का ठेका देती है. सट्टेदार तेंदू के पत्ते और बीड़ी में पड़ने वाले तंबाकू खरीद कर इन इलाकों में रहने वाली औरतों को देते हैं. फिर ये लोग बीड़ी बनाकर वापस सट्टेदार को दे देते हैं. और सट्टेदार बीड़ी कंपनी को कच्ची बीड़ी दे देते हैं. जिसके बाद बीड़ी कंपनी बीड़ी की सेकाई कर इसे तैयार करती है और पैक कर अपने ब्रांडिंग के साथ बाजार में बेचती है.

अब रही बात इन औरतों को कम पैसे मिलने की तो वो है सट्टेदार और कंपनी के बीच की साझेदारी। कंपनियों का इन मजदूरों के साथ सीधा संपर्क नहीं होना इन्हें कम पैसों में काम करने को मजबूर करता है. साथ ही बीड़ी मजदूरों  की सरकार की तरफ से अनदेखी भी इनके पिछड़ेपन की बड़ी वजह है.

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GST ने बीड़ी कारोबार की तोड़ी कमर

सबसे ज्यादा बीड़ी बनाने वाली जगहों में से एक मध्यप्रदेश के सागर में एक छोटा सा इलाका, काकागंज

बीड़ी कारोबार की हालत को समझने के लिए क्विंट पहुंचा प्रदीप कुमार-संजय कुमार बीड़ी कंपनी। कंपनी के मालिक टीका राम से जैसे ही बीड़ी कारोबार का हाल पूछा उनका गुस्सा फूट पड़ा. उन्होंने कहा, जब से GST लगी है तबसे बीड़ी की 40% बिक्री कम हो गई है. बीड़ी पर 3 जगह टैक्स लग रहा है, जर्दा पर लग रहा है, पत्ती पर लग रहा है उसके बाद जो मार्केट में बिकने जाते है उसपर भी GST लग रहा है. मतलब 100 रुपए पर 18 रुपए। ठीक. और बीड़ी तैयार करके जो बेचते हैं उसपर 28% टैक्स देने पड़ते हैं. सरकार ने हमारे धंधे को बर्बाद कर दिया. सेल कम हो गया, मजदूरों को भी हटाना पड़ गया. कई बीड़ी कंपनी तो बंद भी हो गई.

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क्या इस चुनाव में GST का पड़ेगा असर?

सबसे ज्यादा बीड़ी बनाने वाली जगहों में से एक मध्यप्रदेश के सागर में एक छोटा सा इलाका, काकागंज

जब हमने एक और बीड़ी कंपनी के मुनीम से पूछा कि क्या जीएसटी का मुद्दा इसबार चुनाव में असर डालेगा? तो उन्होंने कहा, बिलकुल पड़ेगा। ऐसा कि बदलाव होना चाहिए सरकार में. मध्य प्रदेश में 15 साल से (बीजेपी सरकार) जमे हैं, मनमानी कर रहे हैं. केंद्र में भी सिर्फ तीन आदमी की चलती है.

ज्यादातर मजदूरों का एक ही दर्द था कि सागर में बीड़ी के अलावा और कोई रोजगार का जरिया नहीं है. ऐसे में इन लोगों की नाराजगी बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.

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