एक ऐसा चुनाव जिसमें कोई पार्टी नहीं, फिर भी सियासी शोर का जोर है. मैदान में न तो नीतीश हैं और न ही मोदी. लेकिन चर्चा चारों ओर है. सोच में पड़ गए का? बिहार में ऐसन कौन सा चुनाव हो रहा है जो सर्दी में भी राजनीतिक पारा बढ़ा दिया है. ई चुनाव है शहरी सरकार मतलब निकाय का.
पहले चरण के लिए हुई वोटिंग
आखिरकार कई बार टलने के बाद बिहार में निकाय चुनाव के लिए मतदान हुआ. पहले चरण में 156 निकायों में वोट डाले गए. 3 हजार 658 पदों के लिए वोटर्स ने अपने मदाधिकार का इस्तेमाल किया. पहले चरण में 21 हजार 287 प्रत्याशी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं. अब इन प्रत्याशियों की किस्मत का पिटारा 20 दिसंबर को खुलेगा.
कई मायनों में ये चुनाव अलग
ई बार का निकाय चुनाव कई मायनों में अलग है और इसकी चर्चा भी खूब हुई. पहला कारण है आरक्षण का मुद्दा. इसको लेकर खूब हो-हंगामा हुआ. मामला हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. महागठबंधन और बीजेपी के बीच जमकर बयानबाजी भी हुई. एक बार तो चुनाव भी टल गया. दरअसल, बिहार सरकार ने निकाय चुनाव में OBC से अलग EBC यानी अति पिछड़ा समुदाय के लिए 20% आरक्षण का ऐलान किया. लेकिन यहां एक पेंच फंस गया.
दरअसल, 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने निकाय चुनाव में आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट का मानक तय किया था. और आदेश दिया था कि बिना ट्रिपल टेस्ट के निकाय चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है.
क्या है ट्रिपल टेस्ट?
ट्रिपल टेस्ट: तीन चरणों में आरक्षण के मूल्यांकण की प्रक्रिया है. पहले चरण में एक आयोग का गठन होता है. दूसरे चरण में आयोग पिछड़ेपन का विस्तृत डेटा जमा करता है. आंकड़ों के आधार पर आरक्षण प्रतिशत तय होता है. इसके बाद तीसरे चरण को अपनाया जाता है. जिसमें आरक्षण प्रतिशत में इस तरह से परिवर्तन किया कि कुल आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो.
इसको आधार मानते हुए अक्टूबर महीने में पटना हाई कोर्ट ने चुनाव पर रोक लगा दी थी. हाई कोर्ट के फैसले के बाद बिहार सरकार ने अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं और बुद्धिजीवियों को शामिल कर आनन-फानन में पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दिया. उसके बाद आयोग ने दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट बिहार सरकार को सौंप दी.
इसी दौरान ये मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया. सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश कुमार की सरकार की ओर से गठित की गई कमेटी को निकाय चुनाव के लिए समर्पित कमेटी मानने से इनकार कर दिया. लेकिन बिहार सरकार को सुप्रीम फैसले का इंतजार करना ठीक नहीं लगा. बिहार राज्य निर्वाचन आयोग ने तुरंत चुनाव की नई तारीखों का ऐलान कर दिया. जिसके बाद पहले चरण का मतदान संपन्न हुआ. लेकिन पेंच अभी खत्म नहीं हुआ है. जनवरी महीने में इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है.
इस बार चुनाव में क्या नया हुआ?
दरअसल, बिहार में अभी तक नगर निगम में मेयर और डिप्टी मेयर, जबकि नगर परिषद और नगर पंचायतों में मुख्य पार्षद और उप मुख्य पार्षद का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता था. पहले तक जनता अपने वार्ड में पार्षद चुनती थी और वो पार्षद ही मेयर या डिप्टी मेयर आदि का चुनाव करते थे.
लेकिन इस बार इसमें बदलाव किया गया है. जनता ने सीधे तौर पर मेयर, डिप्टी मेयर, मुख्य पार्षद और उप मुख्य पार्षद के लिए वोट डाला है. इसके लिए मतदान केंद्रों पर तीन तरह के EVM लगाए गए थे.
बहरहाल, पहले चरण का मतदान तो संपन्न हो गया है. दूसरे चरण में 68 निकायों के लिए 28 दिसंबर को वोटिंग होगी और 30 दिसंबर को नतीजे आएंगे. लेकिन चुनाव पर कानूनी तलवार अभी भी लटका हुआ है. निगाहें जनवरी में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी है. देखना होगा की बिहार सरकार निकाय चुनाव की 'सुप्रीम' टेस्ट पास करती है या फिर उसे फिर झटका लगता है.
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