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Bihar में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया पर बवाल, विरोध के पीछे असल कारण क्या है?

Bihar Teacher Vacancy: BPSC ने 1 लाख 70 हजार 461 पदों पर शिक्षकों की भर्ती निकाली है.

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क्या बिहार (Bihar) में दूसरे राज्य के लोग सरकारी स्कूलों में शिक्षक बन सकते हैं? क्या शिक्षकों में भी शहरी और बाहरी देखा जाना चाहिए? दरअसल, बिहार में सड़क से सदन तक हंगामा, बवाल और लाठीचार्ज हुआ. मुद्दा शिक्षक भर्ती नियमावली और उसमें बदलाव का है. बिहार सरकार इस साल राज्य में स्कूली शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में बड़ा बदलाव करते हुए नई शिक्षक भर्ती नियमावली लेकर आई थी. जिसके बाद विपक्ष से लेकर शिक्षक अभ्यर्थी इसका विरोध करने लगे. नियोजित शिक्षक भी इसके खिलाफ हैं.

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अब सवाल है कि आखिर शिक्षक भर्ती नियमावली में ऐसा क्या है जो बवाल हो रहा है? सरकार ने इसमें क्या बदलाव किया है? इसका बिहार के शिक्षक अभ्यर्थियों और नियोजित शिक्षकों पर क्या असर पड़ेगा?

13 जुलाई को प्रदेश के शिक्षकों के मुद्दे पर बीजेपी ने पटना के गांधी मैदान से लेकर विधानसभा तक मार्च निकाला था. पुलिस ने बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को डाक बंगला चौराहे पर रोक दिया और जमकर लाठियां भांजी. इससे पहले 1 जुलाई को शिक्षक अभ्यर्थियों ने भी नियमावली में बदलाव का विरोध करते हुए मार्च निकाला था. उनपर भी डाक बंगला चौराहे पर लाठियां चली थी.

शिक्षक भर्ती नियमावली है क्या?

अप्रैल 2023 में नीतीश कैबिनेट ने बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक नियमावली, 2023 को मंजूरी दी थी. जिसके तहत राज्य में अब इंटरमीडिएट तक के शिक्षकों की भर्ती की जिम्मेदारी 'बिहार लोक सेवा आयोग' यानी BPSC के पास होगी. BPSC इसके लिए परीक्षा आयोजित करेगी.

इससे पहले साल 2006 से शहरी इलाकों में शिक्षकों की बहाली विभिन्न नगर निकाय करता था, जबकि ग्रामीण इलाकों में इस बहाली की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद के पास थी. सरकार के नए आदेश के बाद अब जिन शिक्षकों को नौकरी दी जाएगी, वो राज्य सरकार के कर्मचारी होंगे. इससे पहले शिक्षकों को स्थानीय निकाय कर्मी का दर्जा हासिल था.

अब आपको बताते हैं कि शिक्षक अभ्यर्थी और नियोजित शिक्षक इस नियमावली का क्यों विरोध कर रहे हैं? इसके पांच बड़े कारण हैं:

पहला कारण- डोमिसाइल

BPSC ने 1 लाख 70 हजार 461 पदों पर शिक्षकों की भर्ती निकाली है. ये भर्ती प्राइमरी स्कूल में क्लास 1 से 5, मिडिल स्कूल में क्लास 9वीं-10वीं और हाइयर सेकेंड्री स्कूल में 11वीं और 12वीं के शिक्षकों के लिए निकाली गई है. 30 जून को विज्ञापन निकला था. 15 जून से ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया शुरू हुई. इसके 12 दिन बाद यानी 27 जून को नीतीश कैबिनेट ने शिक्षक भर्ती नियमावली में संसोधन करते हुए डोमिसाइल की बाध्यता को खत्म कर दिया. इसके तहत दूसरे राज्यों के अभ्यर्थियों को भी बिहार में आवेदन करने की छूट दी गई. मतलब देश का कोई भी योग्य नागरिक बिहार में सरकारी शिक्षक की नौकरी के लिए आवेदन कर सकता है. आवेदक के राज्य का स्थायी निवासी होने की जरूरत नहीं है.

बता दें कि पहले राज्य में शिक्षक के पद पर नियुक्ति के लिए बिहार राज्य का स्थायी निवासी होना अनिवार्य था.

जब इसका विरोध शुरू हुआ तो शिक्षा मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर ने कहा था,

जिसके बाद शिक्षक अभ्यर्थी पटना के सड़कों पर उतरे और डोमिसाइल नीति को लागू करने की मांग की. अभ्यर्थियों का कहना है कि बिहार में वैसे ही इतनी बेरोजगारी है. ऐसे में डोमिसाइल नीति हटाकर उनके अवसर को इस तरह क्यों सीमित किया जा रहा है?

क्विंट हिंदी से बातचीत में राष्ट्रीय छात्र एकता मंच के अध्यक्ष दिलीप कुमार ने कहा,

"क्लास 6 से 8वीं के शिक्षकों की वेकेंसी नहीं निकाली गई है. जबकि अधिकतर अभ्यर्थी CTET सेकेंड पेपर पास हैं. जो 6-8 की बहाली में ही शामिल हो सकते हैं. एक और बात कि 2011 के बाद से 11वीं-12वीं आर्ट्स सबजेक्ट के लिए STET परीक्षा हुई ही नहीं है. तो उसके लिए अभ्यर्थी कहां से मिलेंगे. इसमें बिहार से बाहर के अभ्यर्थी भी शामिल नहीं हो पाएंगे."

दूसरा कारण- राज्य कर्मचारी का दर्जा

बिहार में 4 लाख से ज्यादा नियोजित शिक्षक हैं. लेकिन नई नियमावली में उन्हें राज्यकर्मी का दर्जा देने के लिए अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है. नई नियमावली के तहत राज्यकर्मी का दर्जा पाने के लिए नियोजित शिक्षकों को भी BPSC की परीक्षा में बैठना पड़ेगा.

डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने 10 अप्रैल 2023 को खुद इसको लेकर ट्वीट किया था. अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा था, "पूर्व के जो नियोजित शिक्षक है वो भी BPSC के माध्यम से एक परीक्षा पास कर नियमित शिक्षक बन सकते हैं."

हालांकि, नियोजित शिक्षक इसका विरोध कर रहे हैं. उनकी मांग है कि उन्हें बिना परीक्षा और शर्त के ही राज्यकर्मी का दर्जा दिया जाए.

तीसरा कारण- फुल पे स्केल

BPSC ने शिक्षकों की जो बहाली निकाली है, उसके मुताबिक 1 से 5वीं के शिक्षकों का मूल वेतन 25,000 रुपये प्रति माह, 9वीं-10वीं के शिक्षकों का मूल-वेतन 31,000 रुपये और 11वीं-12वीं के शिक्षकों का मूल वेतन 32,000 रुपये और सबको अनुमान्य भत्ता तय किया गया है. नियोजित शिक्षकों का विरोध है कि BPSC की परीक्षा पास करने के बाद भी उन्हें फुल पे स्केल देने की बात नहीं कही गई है.

चौथा कारण- पुरानी सेवा मान्य नहीं होगी 

नई नियमावली के मुताबिक, BPSC की परीक्षा पास करके आने वाले नियोजित शिक्षकों की राज्य कर्मचारी के रूप में नई सेवा की शुरुआत मानी जाएगी. उन्हें दो साल का प्रोबेशन भी सर्व करना होगा. नियोजित शिक्षक के रूप में उनके पुराने कार्यकाल को समाप्त माना जाएगा. इससे नियोजित शिक्षकों को सैलरी में खासा नुकसान होगा.

नियम के मुताबिक, कोई कर्मचारी जो पहले से बिहार सरकार की सेवाओं में कार्यरत है, अगर वो परीक्षा देकर दूसरे विभाग में जाता है तो लेंथ ऑफ सर्विस जोड़ा जाता है. लेकिन नई शिक्षक भर्ती नियमावली में ऐसा प्रावधान नहीं है.

इसे ऐसे समझ सकते हैं- अगर कोई नियोजित शिक्षक 12 साल से कार्यरत है तो उसे हर साल के हिसाब से 12 इंक्रीमेंट मिला. इससे उसके मूल वेतन में हर साल 3% की बढ़ोतरी हुई. लेकिन जब वह BPSC द्वारा आयोजित शिक्षक भर्ती परीक्षा पास करके राज्य कर्मचारी बनेगा तो उसे पिछला लाभ नहीं मिलेगा और भर्ती में तय मूल वेतन और अनुमान्य भत्ता ही दिया जाएगा.

पांचवां कारण- आरक्षण

शिक्षक भर्ती में आरक्षण का मुद्दा भी अहम है. मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने साफ किया था कि दूसरे राज्यों के अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. आरक्षण सिर्फ बिहार के स्थायी निवासियों को ही मिलेगा. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जो दूसरे राज्य के अभ्यर्थी आएंगे वो जनरल कैटेगरी में माने जाएंगे तो फिर बिहार के जनरल कैटेगरी के अभ्यर्थियों का क्या होगा? उनके लिए तो कॉम्पिटिशन और टफ हो जाएगा.

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बिहार में 2.5 लाख शिक्षकों के पद खाली

चलिए अब आपको बिहार की शिक्षा व्यवस्था का हाल बताते हैं. बिहार में फिलहाल प्राइमरी से 12वीं तक के करीब ढाई लाख शिक्षकों के पद खाली हैं. इनमें करीब 90 हजार पद उच्च माध्यमिक शिक्षकों के हैं.

नीति आयोग की स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स के दूसरे संस्करण के आंकड़ों के मुताबिक, बड़े राज्यों की सूची में बिहार 19वें पायदान पर है. वहीं शिक्षा मंत्रालय की 2020-21 की परफॉर्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स में बिहार 773 प्वाइंट के साथ 27वें पायदान पर है.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी यानी CMIE के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में अप्रैल में बेरोजगारी दर 17.6 फीसद रही. जो कि राष्ट्रीय औसत 7.5 फीसदी से बहुत ज्यादा है.

बहरहाल, बिहार में बेरोजगारी और बेहतर शिक्षा मिल पाना एक बड़ी समस्या है और इसे दूर करना सरकार के लिए उससे भी बड़ी चुनौती है.

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