मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में चुनावी माहौल के बीच पार्टियों ने सियासी चाल चलना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में बीजेपी 3 सितंबर से जन आशीर्वाद यात्रा (Jan Ashirwad Yatras) निकालने जा रही है. इस यात्रा को पांच भागों में बांटा गया है. बीजेपी की ये जन आशीर्वाद यात्रा मध्य प्रदेश में 10 हजार 643 किमी की दूरी तय करेगी. इस दौरान 678 रथ सभाएं और 211 बड़ी सभाएं होंगी. इस यात्रा के जरिए पार्टी 210 विधानसभा सीटों को कवर करेगी.
230 विधानसभा वाले मध्य प्रदेश में बीजेपी के इस कदम को बड़े पैमाने पर चुनावी मैनेजमेंट के रूप में देखा जा रहा है.
ऐसे में हम जानने कि कोशिश करेंगे कि चुनावी माहौल में इस यात्रा से बीजेपी को कितना फायदा होगा? क्या बीजेपी की यात्रा को जनता का आशीर्वाद मिलेगा? इसके साथ ही ये भी जानने कि कोशिश करेंगे कि इस यात्रा के पीछे बीजेपी की क्या सोच है? और इस यात्रा के मायने क्या हैं? लेकिन, इससे पहले इस यात्रा के बारे में जान लेते हैं.
BJP की जन आशीर्वाद यात्रा की पूरी डिटेल
पहली यात्रा 3 सितंबर को विंध्य संभाग के चित्रकूट से शुरू होगी, जो भोपाल पहुंचेगी. इस यात्रा का शुभारंभ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह करेंगे. यह यात्रा 11 जिलों के 48 विधानसभा से गुजरेगी.
दूसरी यात्रा, इंदौर संभाग के खंडवा से 4 सितंबर को प्रारंभ होगी, जिसका शुभारंभ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह करेंगे. यह यात्रा 10 जिलों के 42 विधानसभाओं से गुजरेगी. यह यात्रा 21 दिन में 2000 किमी. का सफर तय करेगी.
तीसरी यात्रा, उज्जैन डिवीजन के नीमच जिले से 4 सितंबर से शुरू होगी. ये यात्रा 11 जिलों के 44 विधानसभा सीटों को कवर करेगी. इसे भी राजनाथ सिंह हरी झंडी दिखाएंगे.
चौथी यात्रा, 5 सितंबर को महाकौशल रीजन के मंडला जिले के भीमसेन से शुरू होगी. ये जन आशीर्वाद यात्रा नौ जिलों के 46 विधानसभा को कवर करेगी. इस यात्रा को हरि झंडी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दिखाएंगे.
पांचवीं यात्रा, ग्वालियर-चंबल डिवीजन के श्योपुर जिले से निकलेगी. ये 10 जिलों के 43 विधानसभा को कवर करेगी. इसका शुभारंभ राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा करेंगे.
यह पांचों जन आशीर्वाद यात्राएं प्रदेश में 10 हजार 643 किमी की दूरी तय करेंगी. इस दौरान 678 रथ सभाएं और 211 बड़ी सभाएं होंगी. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर 25 सितंबर को इन पांचों यात्राओं का समागम भोपाल में होने वाले कार्यकर्ता महाकुंभ में होगा, जिसमें दावा किया जा रहा है कि 10 लाख कार्यकर्ता शामिल होंगे. इस कार्यकर्ता महाकुंभ को पीएम नरेंद्र मोदी संबोधित करेंगे.
बीजेपी ये यात्रा क्यों निकाल रही है?
जानकार इस यात्रा को कर्नाटक में बीजेपी की हार से जोड़कर देख रहे हैं. जानकारों का मानना है कि कर्नाटक की हार से पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने की रणनीति को झटका लगा है और अगर एमपी में भी हार का सामना करना पड़ा तो ये बीजेपी के लिए 2024 की राह को और कठिन कर देगा.
इसके अलावा जानकारों का मानना है कि बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को राज्य के कई क्षेत्रों से नेताओं की नाराजगी की रिपोर्ट मिली है. इस यात्रा के जरिए उनको भी साधने की कोशिश की जा रही है.
तीसरी वजह, बीजेपी साल 2013 के प्रदर्शन को दोहराना चाहती है. उस वक्त बीजेपी ने हर क्षेत्रों में अच्छा प्रदर्शन किया था. साल 2013 में बीजेपी को 230 विधानसभा वाले एमपी में 165 सीटों में जीत हासिल हुई थी, जबकि साल 2018 में बीजेपी को 56 सीटों का नुकसान हुआ था और 109 सीटों के साथ सत्ता से बाहर हो गई थी.
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि...
"इस यात्रा का उद्देश्य केवल चुनावी जीत हासिल करना है. 10 हजार 643 किमी की इस यात्रा में करीब-करीब 500 से हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे. इतनी महंगी यात्रा बीजेपी केवल जीत के लिए कर रही है."अरुण दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार
दीक्षित आगे कहते हैं कि "अगर मध्य प्रदेश का हाल कर्नाटक चुनाव जैसा हो गया तो सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी की इमेज पर डेंट लगेगा. उसको बचाने के लिए ही बीजेपी इस यात्रा में इतने पैसे लगा रही है. दूसरी चीज है कि टिकट कटने से पार्टी के भीतर लोगों में नाराजगी है. इसलिए काम पकड़ाकर उन्हें साधने की कोशिश है."
अरुण दीक्षित की इस बात से पत्रकार दीपक तिवारी भी सहमत नजर आते हैं. दीपक तिवारी का भी मानना है कि...
"बीजेपी इस आशीर्वाद यात्रा के जरिए अपने नाराज कार्यकर्ताओं को कुछ काम और सम्मान देकर मनाने की कोशिश कर रही है, जिससे बूथ लेवल पर खुद को मजबूत रखा जा सके."
हालांकि, बीजेपी नेता दुर्गादास उईके का कहना है कि "बीजेपी ने जनता के सर्वांगीण विकास के लिए जो काम किए हैं, उसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए बीजेपी की तरफ से यह जन आशीर्वाद यात्रा निकाली जा रही है."
इस यात्रा में राज्य इकाई और केंद्र का तालमेल कैसा?
जानकारों का मानना है कि इस यात्रा के पीछे पूरी तरह से केंद्र का दिमाग है. राज्य इकाई को इसमें सहभागी बनाया गया है, लेकिन कमांड केंद्र के हाथ में है.
वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित का कहना है कि...
"इस यात्रा को सफल बनाने के लिए करीब-करीब पूरी दिल्ली लड़ रही है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह खुद इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं. केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव भोपाल में कोऑर्डिनेट कर रहे हैं, जबकि स्टेट यूनिट्स का सपोर्ट के अलावा इसमें कोई रोल नहीं है. यह यात्रा पूरी तरह से केंद्र ने हाइजैक की हुई है."
जानकारों का कहना है कि इस जन आशीर्वाद यात्रा में सीएम शिवराज सिंह चौहान लीड रोल में नहीं हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ बीतचीत में बीजेपी चुनाव प्रबंधन समिति के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि...
"वह (शिवराज सिंह चौहान) अकेले निकलते तो सभी विधानसभा क्षेत्रों में जा नहीं पाते थे. इसलिए इस बार अलग-अलग क्षेत्रों से यात्रा निकाली जा रही है. हालांकि, वह अधिकांश जगहों पर मौजूद रहेंगे."
इस यात्रा से बीजेपी को कितना फायदा?
बीजेपी नेता दुर्गादास उईके कहते हैं कि "यहां घाटे और फायदे का प्रश्न नहीं है. हमने जो काम किया है, उसी काम को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं. ये चुनाव विकास के आधार पर होगा. बीजेपी ने अच्छे काम किए हैं और उसका परिणाम जनता जरूर देगी."
हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार अरुण दीक्षित कहते हैं कि...
मुझे नहीं लगता है कि बीजेपी को इससे कुछ फायदा होने वाला है. जिनके बीच ये लोग यात्रा कर रहे हैं, उन्हें सब सच्चाई पता है. ये चीज बदलने वाली तो है नहीं. हाल में दलितों के खिलाफ घटनाएं राष्ट्रीय खबर बन गईं. युवाओं का परीक्षाओं से भरोसा उठ गया है. ग्राउंड रियलिटी कुछ और है और ये कुछ और दिखा रहे हैं."
वहीं, पत्रकार दीपक तिवारी का कहना है कि चुनावी साल में राजनीतिक दल इस तरह की चीजें करते रहते हैं. ये चुनावी कैंपेन का हिस्सा है. अब फायदा कितना मिलेगा, ये नहीं कहा जा सकता है. तिवारी आगे कहते हैं कि...
"2018 में भी शिवराज सिंह चौहान ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली थी, लेकिन बीजेपी चुनाव हार गई थी. मध्यप्रदेश की जनता बहुत पहले ही अपना मन बना चुकी है. जिस तरह से एमपी में एक निर्वाचित सरकार को अलोकतांत्रिक तरीके से हटाया गया, विधायकों की खरीद-फरोख्त हुई, उसको लेकर जनता के मन में गुस्सा है. दूसरा, मध्यप्रदेश में लगातार 18 साल से बीजेपी की सरकार है, उसको लेकर भी बीजेपी के प्रति एंटी इंकेबेंसी है."
वहीं, बीजेपी की इस जन आशीर्वाद यात्रा पर तंज कसते हुए पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा है कि मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी काठ की हांडी को बार-बार चढ़ाने की कोशिश कर रही है. 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज जी ने जन आशीर्वाद यात्रा निकाली थी, जिसका स्वागत मध्य प्रदेश की जनता ने पत्थर फेंक कर किया था. जनता ने आशीर्वाद की जगह ऐसा अभिशाप दिया कि यात्रा को बीच रास्ते में ही बंद करना पड़ा था.
"इस बार दिल्ली के शाहों ने खुद ही यात्रा को पांच हिस्सों में बांटकर इसका पंचनामा कर दिया है. इस तरह यह आशीर्वाद यात्रा टुकड़े-टुकड़े यात्रा में बदल गई है और जनता जल्द ही इसे आशीर्वाद की जगह बर्बाद यात्रा में बदल देगी."
2018 के चुनाव में क्या रहा था बीजेपी का इन क्षेत्रों में प्रदर्शन?
विंध्य क्षेत्र
साल 2018 के चुनाव में बीजेपी का विंध्य क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन रहा था. यहां कि 30 सीटों में से बीजेपी ने 24 सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 6 सीटों से संतोष करना पड़ा था. हालांकि, कांग्रेस ने इस बार विंध्य में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. रैगांव सीट पर हुए उपचुनाव में जीत से कांग्रेस का संजीवनी मिली है, इससे कांग्रेस को विंध्य में अपना परफॉर्मेंस सुधरने की उम्मीद है.
इंदौर रीजन
बीजेपी को इसी संभाग से सबसे बड़ा झटका मिला था. यहां कि 37 सीटों में से बीजेपी को केवल 11 सीटों पर जीत नसीब हुई थी, जबकि साल 2013 में बीजेपी को यहां से 29 सीटें मिलीं थी. ऐसे में इस बार बीजेपी पुराना प्रदर्शन दोहराना चाहती है.
उज्जैन रीजन
साल 2018 के चुनाव में इस संभाग से भी को मात मिली थी. साल 2018 के चुनाव में बीजेपी यहां कि 29 सीटों में से सिर्फ 17 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, जबकि साल 2013 के चुनाव में यहां से 28 सीटें मिलीं थीं.
महाकौशल रीजन
साल 2018 के चुनाव में इस रीजन से भी बीजेपी को निराशा हाथ लगी थी. यहां कि 38 सीटों में से बीजेपी को केवल 13 सीटों पर जीत नसीब हुई थी, जबकि साल 2013 में बीजेपी को यहां से 24 सीटें मिलीं थी.
ग्वालियर-चंबल रीजन
इस रीजन से भी बीजेपी को साल 2018 में निराशा हाथ लगी थी. यहां कि 34 सीटों में 26 कांग्रेस के खाते में गई थीं, जबकि बीजेपी को सिर्फ 7 सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. एक सीट बीएसपी के खाते में गई थी.
ऐस में इन चुनाव परिणाणों से साफ है कि बीजेपी फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है. साल 2018 में शिवराज सिंह चौहान के हाथ में कमान थी, लेकिन इस बार केंद्र ने कमान खुद अपने हाथ में ले ली है और वह साल 2013 के चुनाव परिणाम को दोहराना चाहती है.
आंकड़ों से साफ नजर आ रहा है कि साल 2013 के मुकाबले 2018 में बीजेपी को करीब-करीब हर क्षेत्र से मात मिली है. ऐसे में ये देखना होगा कि बीजेपी की जन आशीर्वाद यात्रा की सियासी चाल से जनता कितना प्रभावित होती है और बीजेपी को कितना आशीर्वाद देती है?
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