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कोविड के सैकड़ों फोन के बीच कैसा होता है एंबुलेंस ड्राइवर का दिन?

दिन में कई बार मरीजों को अस्पताल ले जाते एंबुलेंस ड्राइवर भारत के फ्रंटलाइन वर्कर्स में से एक हैं.

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वीडियो प्रोड्यूसर: पुनीत भाटिया, संदीप सुमन

कैमरा: शिव कुमार मौर्या

“दिमागी संतुलन तो हमें बना कर रखना पड़ा रहा है, अगर हमारा दिमागी संतुलन खराब होगा, तो शायद देश की स्थिति और खराब हो जाएगी.”

कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने भारत के हेल्थ केयर सिस्टम की कमर तोड़ दी है. अस्पतालों में बेड मरीजों से भरे हुए हैं और बाहर एंबुलेंस की लंबी लाइनें लगीं हैं. दिन में कई बार मरीजों को अस्पताल ले जाते एंबुलेंस ड्राइवर भारत के फ्रंटलाइन वर्कर्स में से एक हैं. कोरोना की दूसरी लहर में वो कैसे कर रहे हैं अपना काम, ये जानने के लिए क्विंट ने एंबुलेंस ड्राइवर के साथ बिताया एक दिन.

45 साल के तेज बहादुर एंबुलेंस चलाने से पहले सरकारी गाड़ी चलाते थे. बहादुर कहते हैं कि एंबुलेंस चलाना भी किसी दूसरी गाड़ी जैसा ही लगता है, लेकिन कोविड महामारी आने के बाद हालात बदल गए हैं. वो बताते हैं कि पहले जहां दिन में मरीज के लिए एक से दो फोन आते थे, वहीं अब इन कॉल्स की कोई लिमिट नहीं है.

“शुरुआत में, ये कार चलाने जैसा ही लगता था. लेकिन पिछले साल कोविड जब शुरू हुआ, देश पर इतनी बड़ी विपदा आई, फिर अभी तो देख ही रहे हैं. अब जा कर मालूम चला कि एंबुलेंस ड्राइवर सही मायनों में क्या काम करते हैं.”
तेज बहादुर, एंबुलेंस ड्राइवर

जब उनसे पूछा गया कि कोविड मरीजों के इतने फोन के बीच, क्या उन्हें घर का खयाल आता है? तो इस पर उन्होंने कहा, “हम सभी विचार घर पर छोड़कर आते हैं. जैसे ही हमें कोई कॉल आती है, हम बस देखते हैं कि लेफ्ट देखना है या राइट.”

जिस दिन क्विंट ने तेज बहादुर को फॉलो किया, उस दिन उन्हें पहला फोन मयुर विहार से लेकर लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल से फोन आया. दिन खत्म होते-होते उन्हें एलबीएस अस्पताल से फोन आया, जहां एक तीन साल का कोविड मरीज भर्ती था. मरीज को डायरिया की शिकायत पर भर्ती किया गया था, लेकिन बाद में उसका कोविड टेस्ट पॉजिटिव आया. कोविड अस्पताल नहीं होने के कारण 3 साल के सुखविंदर को जीटीबी अस्पताल शिफ्ट करना था. बहादुर का कहना है कि ये कोविड का सबसे कम उम्र का मरीज है, जिसे उन्होंने शिफ्ट किया है.

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