कोरोना वायरस लॉकडाउन में जब राहत दी गई और शराब की दुकानें खोलने की इजाजत मिली, तो लगभग सभी राज्य सरकारों ने इन दुकानों को खुलने दिया. इसकी वजह से दुकानों के बाहर भीड़ लगी और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ गईं. राज्यों की दलील थी कि उन्होंने ऐसा कोरोना वायरस महामारी से लड़ने के खिलाफ राजस्व जुटाने के लिए किया.
लेकिन क्या राज्यों के पास लोगों के नशे की लत के अलावा और कोई चारा नहीं था?
कांग्रेस के डेटा एनालिटिक्स चेयरपर्सन प्रवीण चक्रवर्ती का कहना है कि ऐसा नहीं है कि कोई और उपाय नहीं था. चक्रवर्ती ने कहा कि इसके पीछे कारण है मोदी सरकार का 2017 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) लाना.
GST किस तरह राज्यों को फंड जुटाने के लिए अल्कोहल पर निर्भर करता है?
राज्य सरकारों को राजस्व तीन मुख्य तरीकों से मिलता है- राज्य जो टैक्स रेवेन्यू इकट्ठा करते हैं, केंद्र जो टैक्स रेवेन्यू इकट्ठा करती है उसका एक हिस्सा और केंद्र से मिलने वाला ग्रांट. GST से पहले राज्यों को ये छूट थी कि वो गुड्स और सर्विसेज पर लगने वाले टैक्स रेट को खुद तय करते थे और उसे इकट्ठा भी करते थे.
लेकिन GST के आने के बाद राज्यों के पास से ये पावर चली गई और वो खुद टैक्स नहीं इकट्ठा कर पाते हैं.
राज्य अब पूरी तरह केंद्र पर निर्भर थे?
कोरोना वायरस महामारी के दौरान केंद्र ने राज्यों के बकाये का टैक्स का पैसा नहीं दिया है. केंद्र ने पेमेंट पर डिफॉल्ट किया है. राज्य सरकारों के पास पावर नहीं है कि वो अपने राज्य में बेचे जा रहे गुड्स एंड सर्विसेज से फंड जुटा सकें. इसके अलावा राज्यों के पास पैसे जुटाने के लिए सिर्फ तेल, अल्कोहल, जमीन और बिजली बचती है. लेकिन लॉकडाउन की वजह से इनमें से ज्यादातर विकल्प मौजूद नहीं थे और राज्यों के पास अल्कोहल के अलावा कोई और चारा नहीं बचा था.
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