(प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 जून को ऐलान किया कि केंद्र हर व्यक्ति को फ्री कोविड वैक्सीन देगा. साथ ही पीएम ने कहा कि जो व्यक्ति प्राइवेट अस्पताल से वैक्सीन लेना चाहे, वो पैसे देकर ये कर सकता है. जनवरी 2021 में ही क्विंट के एडिटर-इन-चीफ राघव बहल ने यही रणनीति सुझाई थी.)
2021 का स्वागत है, शायद पहले कभी भी हम लोगों ने इतना इंतजार नहीं किया 2020 खत्म हो और 2021 आए, लेकिन मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं. अगर हम वाकई चाहते हैं कि 2021 बहुत खुशहाल हो, हम लोग स्वस्थ रहें तो हमारे लिए बहुत जरूरी हो जाता है कि हमारे देश की जनता के लिए कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रोग्राम (COVID-19 Vaccination Program) ठीक तरह से हो. क्योंकि इसी तरह से हम इस बीमारी को काबू में कर सकेंगे, ध्यान रखें कि अगर हिंदुस्तान को सफलतापूर्वक कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलाना है तो हमें बहुत ध्यान से पांच चीजों को इंप्लीमेंट करना होगा और तभी हम जीत पाएंगे
पहला
30 करोड़ हमारे ऐसे नागरिक हैं जो कि फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर हैं, म्युनिसिपल वर्कर हैं, सेना के जवान हैं, पुलिसकर्मी हैं, 50 साल की उम्र से ज्यादा जो भी नागरिक हैं. 50 साल से कम वाले लोग जिन्हें दूसरी बीमारियां हैं, वो इसमें शामिल हैं. ये लोग 30 करोड़ नागरिकों में शामिल हैं, जिन्हें हमें प्राथमिकता पर वैक्सीन देनी होगी और इसी की वजह से हम ये कह सकेंगे कि हमने कोविड-19 को हरा दिया है. जिस तरह से ऑक्सफोर्ड और एक्स्ट्राजेनेका की वैक्सीन, हिंदुस्तान में सीरम इंस्टीट्यूट बना रही है और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को देखकर लग रहा है कि ये दोनों बहुत प्रॉमिसिंग वैक्सीन होंगी तो मुझे लगता है कि हम लोग 6 से 7 महीने में 30 करोड़ का टारगेट पूरा कर सकते हैं.
दूसरा
हम लोग वैसे भी कोविड-19 से अलग दुनिया का सबसे बड़ा इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम चलाते हैं, हर साल चलाते हैं करीब 390 मिलियन डोज जिसमें 56 मिलियन बच्चे और गर्भवती महिलाएं टारगेट हैं, जिनके लिए ये इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम चलता है. हर साल!
कई बार हम 30% का टारगेट पूरा नहीं कर पाते, लेकिन फिर भी ये प्रोग्राम बहुत बड़ा है, बहुत कुशल है, इसको हम नजरअंदाज नहीं कर सकते...हम ये नहीं कह सकते कि हमारी सारी मेहनत, हमारा सारा फोकस कोविड-19 वैक्सीनेशन पर है, हम अभी इसे नजरअंदाज करेंगे. इसीलिए हमें देखना होगा कि हम किस तरह से दोनों प्रोग्राम को असरदार तरीके से कर पाएं.
तीसरा
अब अनुमान ये है कि कोविड-19 वैक्सीनेशन प्रोग्राम में 60 से 70 हजार करोड़ रुपये की लागत लग सकती है, अब दुविधा है कि हमारी केंद्र सरकार का जो हेल्थ बजट है, उसमें दूसरा इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम भी चलाना है जो 69 हजार करोड़ का है, आप अब समझ सकते हैं कि किस तरह से रिसोर्स की कमी है और पैसे की कमी है, जब हमें ये दोनों प्रोग्राम असरदार तरीके से चलाना हैं.
चौथा
हमारी जो कंपनियां वैक्सीन बनाती हैं वो एक्सपोर्ट बहुत करती हैं, उससे फॉरेन एक्सचेंज में हमारी काफी कमाई होती है और करीब 100 करोड़ वैक्सीन हम लोग एक्सपोर्ट करते हैं हर साल, जिसमें हमारी 10,0000 करोड़ रुपये की कमाई डॉलर में होती है. जो हमारी एक्सपोर्ट की कमाई है अब इसमें देखिए एक बहुत ही क्रिटिकल सवाल आता है कि हम किस तरह से ऐसा प्रोग्राम बनाएं, जिसमें हमारे गरीब लोग हैं, उन्हें हमें बचाना है, उन्हें हम वैक्सीन दे पाएं, लेकिन ये जो दशकों से हमने अपनी एक्सपोर्ट से कैपेबिलिटी बनाई है. उसको भी हम बचा कर रखें प्रोटेक्ट करें, क्योंकि उससे हमारे देश की डॉलर में इनकम होती है जो बहुत जरूरी है.
पांचवा
कोविड-19 वैक्सीन को हमें सिर्फ हेल्थ का इंस्ट्रुमेंट नहीं देखना है, हमें इसे देखना चाहिए कि ये किस तरह से हमारी पूरी अर्थव्यवस्था को दोबारा से मजबूत कर सकती है, आपको ध्यान होना चाहिए कि इस साल हमारे देश की पूरी इकनॉमी 10% से सिकुड़ जाएगी इसका मतलब आप जानते हैं? इसका मतलब ये कि 20 लाख करोड़ रुपये की जो आय, उत्पादन है, वो आय और उत्पादन खत्म हो जाएगी, जिसकी वजह से हजारों-लाखों नौकरियां खत्म हो गईं. बहुत जरूरी है कि हम इस वैक्सीन को इस तरह से इस्तेमाल करें कि हमारे लोगों की हेल्थ तो बची रहे, लेकिन साथ ही हमारी इकनॉमी को सहारा मिले और वो फिर से खड़ी हो सके और दौड़ने लगे.
कुछ उदाहरण
जैसे होटल, बार, एयरलाइन, मॉल अगर यहां पर जो लोग काम करते हैं उन्हें जल्दी वैक्सीन मिल जाती है, तो लोगों में भरोसा आ जाएगा क्या हम सिनेमा हॉल में जा सकते हैं? हां, हम रेस्तरां में जा सकते हैं, होटल में जा सकते हैं, इस तरह से उनका जो बिजनेस है, दब गया है, पूरी तरह वो फिर उठ पाएगा. होटल और एयरलाइन तो ये भी कह सकते हैं कि 'आप हमारे रेगुलर कस्टमर हैं. आप हमारे पास वापस आइए, हमारे साथ रहना शुरू कीजिए. हमारे साथ सफर कीजिए तो हम आप के टिकट के साथ एक फ्री इनॉक्यूलेशन भी करा देंगे.' तो इस तरह से लोगों का कॉन्फिडेंस बढ़ेगा और जिन लोगों का बिजनेस बंद हुआ वो वापस शुरू हो जाएगा, एक और उदाहरण देखिए
इतनी बड़ी-बड़ी जो फैक्ट्री हैं, कारखाने हैं जिनमें आज सारे वर्कर्स एक साथ काम नहीं कर सकते क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग का नॉर्म है, उसके हिसाब से फैक्ट्री फ्लोर आधा ही भरा होता है, सिर्फ आधे कर्मचारी काम कर रहे होते हैं, लेकिन इन्हीं बड़ी कंपनियों को इजाजत मिल जाए कि आप जल्दी से अपने कर्मचारियों को वैक्सीन दिलवा दें. ताकि सारे वर्कर्स आराम से वापस काम पर आ जाएं. तो इंडस्ट्री का या फैक्ट्री का जो प्रोडक्शन है वो फिर पहले की तरह अच्छे से चलने लगेगा.
ऐसे कितने ही उदाहरण है, जहां- कोविड-19 की वैक्सीन सिर्फ हेल्थ इंस्ट्रुमेंट नहीं, एक आर्थिक हथियार भी है. जिससे हम अपनी अर्थव्यवस्था को दोबारा मजबूती दे सकते हैं, तो इसमें क्या पांच चुनौतियां हैं?
- 30 करोड़ नागरिकों को हमें वैक्सीन देना है, लेकिन इसके साथ ये भी जरूरी है कि जो हमारा हिंदुस्तान का वैक्सीनेशन प्रोग्राम है, वो भी साथ ही साथ चलता रहे.
- साथ ही हमें ये भी देखना होगा कि 10,00,00 करोड़ रुपये की वैक्सीन जो एक्सपोर्ट करते हैं वो भी हम करते रहें, क्योंकि अगर वो नहीं करेंगे तो हमने जो इतनी बड़ी कैपेबिलिटी बनाई है इतने दशकों में वो खत्म हो जाएगी
- हमें ये भी देखना है कि ये हमारी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का एक जरिया भी है
- सरकार का हेल्थ बजट सिर्फ 69000 करोड़ रुपए है, उसमें सिर्फ इतने पैसे में तो ये नहीं हो सकता और हम ज्यादा पैसे भी खर्च नहीं कर सकते हैं
- हमें ये देखना है कि किस तरह से एक ऐसा प्रोग्राम बनाया जाए जिससे ये जो पांच ऑब्जेक्टिव हैं, पांचों पूरे हो जाएं
कैसे होगा मुमकिन
हो सकता है आप कहें कि ये नहीं हो सकता, ये मुमकिन नहीं है पांचों एक साथ, नहीं हो पाएगा. आपको किसी एक को नजरअंदाज करना ही होगा. इस साल के लिए नजरअंदाज करते हैं, इसको जाने देते हैं. लेकिन मेरा कहना ये है कि ऐसा करना ठीक नहीं होगा, एक ऐसा मॉडल है जिससे ये संभव है और अगर हम वो मॉडल अपनाते हैं तो जो हमें ये लगता है कि हम ये पांचों ऑब्जेक्टिव एक साथ पूरे नहीं कर सकते. नामुमकिन नहीं रह जाएगा. तो इसे करने के लिए हमें दो डिस्ट्रीब्यूशन प्लान का इस्तेमाल करना होगा.
पहला जो ट्रैक है उसमें जो भी गरीब हैं जो भी जरूरतमंद हैं, उसके लिए तो सरकार को वैक्सीन एकदम मुफ्त कर देनी चाहिए. लेकिन साथ में मैं एक और ट्रैक रखता हूं कि जो केवल 10% वैक्सीन डोज है, यानी अगर सरकार के पास एक करोड़ वैक्सीन है तो उसमें से सिर्फ 10 लाख वैक्सीन ऐसे लोगों के लिए दे दीजिए जो बाजार से जाकर वैक्सीन खरीदें और उस पर 10 हजार का एक सुपर टैक्स लगा दीजिए.
जैसा कि आप जानते हैं, आप ने रेलवे में कई बार तत्काल टिकट वाला सिस्टम देखा होगा तो इसी तरह से मेरा कहना है कि वैक्सीन प्रोग्राम में भी तत्काल एलिमेंट जोड़ दीजिए, ये भी सिर्फ 10% के लिए सिर्फ 10% वैक्सीन पर ये टैक्स लगा दीजिए तो इससे सरकार को सुपर टैक्स से एक लाख करोड़ रुपये की टैक्स वृद्धि होगी और उसकी वजह से जो 90% फ्री वैक्सीन उन्हें देना है. उसका पूरा खर्चा, उस सुपर टैक्स से निकल आएगा.
5 बातें जो लग रहा था कि नामुमकिन हैं, तो इस 2 ट्रैक डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम से पांचों चीज हासिल कर सकते हैं, लेकिन अब जो लोग कहते हैं कि मान लीजिए, ये ट्रैक डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम नहीं करना है, तो मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या उन्होंने सोचा है कि ये जो हम तत्काल स्कीम वैक्सीनेशन में नहीं करते हैं तो क्या होगा? हजारों लाखों की तादाद में कई हिंदुस्तानी परिवार ऐसे हैं जो देश से बाहर जाएंगे बाहर जाकर डोज लेंगे, दुबई जाएंगे, लंदन जाएंगे, सिंगापुर जाएंगे वहां जाकर वैक्सीन लेंगे और हमारा जो लाखों करोड़ों रुपए खर्च हो रहा है, वो पैसा हमारी इकनॉमी से बाहर जाकर बर्बाद हो जाएगा. किसी दूसरे देश की इकनॉमी में इन्वेस्ट हो जाएगा.
वही पैसा हमारे देश की इकनॉमी में यहीं पर इन्वेस्ट होगा अगर हम 2 ट्रैक डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम चलाते हैं तो दूसरा नुकसान देखिए, डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम को ना लागू करने से एक काला बाजार शुरू हो सकता है, क्योंकि लोग डॉक्टर के पास आएंगे उनसे कहेंगे कि हमारे लिए प्रिसक्रिप्शन लिख दीजिए हमें प्रायॉरिटी पर दे दीजिए तो कई डॉक्टर हैं जो इतने ईमानदार नहीं हैं. वो पैसा ले लेंगे और प्रिसक्रिप्शन दे देंगे, तो एक काला बाजार शुरू हो जाएगा. इसी तरह से जो लोग कानूनी तौर पर पैसा लगाना चाहते हैं जो पैसा देना चाहते हैं, काम लीगली करना चाहते हैं. वो पैसा अंडरवर्ल्ड में चला जाएगा, क्रिमिनल्स के हाथ में चला जाएगा.
कई लोगों का एक ऑब्जेक्शन और है कि हम समझ रहे हैं डिस्ट्रीब्यूशन प्रोग्राम का फायदा होगा. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी शायद नहीं कर पाएंगे. क्योंकि लोग कहते हैं कि वो तो अमीरों के लिए काम करते हैं, सूट-बूट वाली सरकार वाला विवाद फिर शुरू हो जाएगा, मेरा मानना ये है कि ये जो विवाद है, व्यर्थ है, क्योंकि जो मैं तत्काल स्कीम की बात कर रहा हूं, सरकारी अस्पतालों में इंप्लीमेंट नहीं होगी, सिर्फ प्राइवेट अस्पतालों में होगी जैसे आज भी आप किसी बीमारी के लिए सरकारी अस्पताल भी जा सकते हैं, प्राइवेट अस्पताल भी जा सकते हैं. ये जो प्रोग्राम है, तत्काल वाला, ये सिर्फ प्राइवेट अस्पतालों में लागू करेंगे
इससे ये होगा कि लोग अपने आप ये डिसाइड करेंगे क्यों नहीं प्राइवेट अस्पताल में जाकर डोज लेना है, इसमें सरकार का कोई इंवॉल्वमेंट नहीं होगा. इसमें वो वैक्सीन भी नहीं लगेगी, जो सरकार ने खरीदी है गरीबों के लिए मान लीजिए. फाइजर, मॉडर्ना की वैक्सीन है, ये वैक्सीन महंगी हैं, हमारी सरकार ने नहीं खरीदी है. तो उसको जो सरकार ने नहीं खरीदी है उसे प्राइवेट अस्पतालों के लिए इजाजत दे दीजिए, इसे फाइजर को सीधे इंपोर्ट करके प्राइवेट अस्पतालों में लोगों को लगाने की अनुमति दी जा सकती है. इससे ये होगा कि सरकार का जो प्लान है, गरीबों के लिए और बाकियों के लिए उसमें कोई बदलाव नहीं होगा उस पर कोई असर नहीं होगा. वो उतने लेवल पर उतनी ही स्पीड में चलेगा जैसे सरकार ने उसको प्लान किया है.
2 ट्रैक डिस्ट्रीब्यूशन प्लान से एक प्राइवेट इनीशिएटिव शुरू हो जाएगा और ऐसे प्राइवेट अस्पताल में चलेगा जो सरकार के प्लान का हिस्सा ही नहीं है. जिसमें वो वैक्सीन लगेगी पर इस वैक्सीन पर एकदम 10 हजार का सुपर टैक्स लगा दीजिए, हर डोज पर और वो पैसा और वो टैक्स सरकार के पास जाएगा, इसकी वजह से सरकार को 1 लाख करोड़ रुपये की आमदनी होगी, वैक्सीन फंड में भी वो जाएगा और इससे गरीब लोगों को जो सरकार की इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम में हिस्सा लेना चाहते हैं. उन्हें वैक्सीन एकदम मुफ्त में मिलेगी. प्रधानमंत्री मोदी तो बड़ी आसानी से देश को मना सकते हैं कि ये मेरा प्रोग्राम बिल्कुल गरीबों के हित में है.
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