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दिल्ली में पॉल्‍यूशन की वजह क्‍या? किसान क्‍यों जलाते हैं पराली?

हरियाणा और पंजाब के किसान अपने खेतों में आग क्यों लगाते हैं?

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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा

पिछले कुछ दिनों से दिल्ली में कहीं भी जाएं, कुछ दिखाई नहीं पड़ता. जहां-जाएं, वहीं टॉक्सिक स्मॉग है. इतना स्मॉग कि दिल्ली में हेल्थ इमरजेंसी डिक्लेयर कर दी गई. लेकिन क्या ये एयर पॉल्यूशन पंजाब और हरियाणा के किसान जो खेत में आग लगाते हैं, सिर्फ और सिर्फ उसके कारण है? और ये किसान पराली में आग लगाते ही क्यों हैं?

दिल्ली में प्रदूषण के कई सोर्स हैं. पंजाब और हरियाणा करीब 17-44% तक इसमें योगदान करते हैं. बाकी दिल्ली के अंदरूनी कारण, जैसे इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन,वाहनों का उत्सर्जन, कंस्ट्रक्शन और मौसम भी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं.

हरियाणा और पंजाब के किसान अपने खेतों में आग क्यों लगाते हैं?

इसके पीछे कई कारण हैं. पहला, किसान मैन्युअली, मतलब अपने हाथों से फसल की कटाई करते आए थे, जिससे फसल के नीचे का हिस्सा बहुत छोटा रहता था और उसे बाद में मिट्टी के साथ मिला दिया जाता था. 1980 में कंबाइन हार्वेस्टर आया और ये मशीन कम समय और पैसों में फसल को काट देती थी, रेसीड्यू की लंबाई बढ़ गई.

सिर्फ यही नहीं, 2009 में पंजाब और हरियाणा ने भी सिंचाई का समय पीछे कर दिया, जिससे फसल का समय भी पीछे हो गया. इसका असर ये हुआ कि किसानों के पास अगली फसल यानी गेहूं या आलू के लिए बहुत कम समय बचा रहा. तब इस समस्या का सबसे सस्ता और आसान समाधान पराली को जलाना बन गया.

कुछ लोग कह सकते हैं कि सरकार ने किसानों को पराली मैनेजमेंट मशीन खरीदने के लिए 50% सब्सिडी दी हैं, इसके बाद भी फसल क्यों जलाए जा रहे?

किसानों का कहना ये है कि सब्सिडी के बाद भी ये मशीन उनके पहुंच से बाहर होती हैं. सरकार की सब्सिडी के बाद, एक हैप्पी सीडर मशीन करीब 70,000 की पड़ती है. वही मशीन मार्केट में दूसरी कंपनी 60,000 में बेचती हैं,आम किसान इसको खरीद नहीं सकता. दूसरी बात, ये हैप्पी सीडर और दूसरे मशीनों को चलाने के लिए 65-70 हॉर्सपावर का ट्रैक्टर चाहिए होता है, जिसकी कीमत 6 से 7 लाख होती है.

आम किसान के पास 40-45 हॉर्सपावर का ट्रैक्टर होता है और 70 हॉर्सपावर वाला वो खरीद नहीं सकता है. लेकिन किसान एसोसिएशन को तो 80% सब्सिडी मिलती है, वहां से क्यों नहीं ले रहे? दरअसल कोई भी गांव में ऐसा एक ही एसोसिएशन होता है, जहां पर पराली मैनेजमेंट मशीनों पर 80% सब्सिडी मिलती है, लेकिन ये भी गिने-चुने किसान ही इस्तेमाल कर सकते हैं.

किसानों को मशीनों का किराया देना पड़ता है फिर मशीन चलाने के लिए पावरफुल ट्रैक्टर का भी किराया देना पड़ता है. अब ये ट्रैक्टर चलाने के लिए डीजल की जरूरत होती है, इसका पैसा गरीब किसान नहीं दे पाता.

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पंजाब में 43,000 पराली मशीन पर सरकार ने सब्सिडी दी है, लेकिन क्या ये काफी है?

पंजाब में चावल करीब 73,88,450 एकड़ पर उगाया जाता है और अगली फसल की सिंचाई के पहले किसानों के पास 15 दिन का समय होता है. तो इस हिसाब से पंजाब को कुल मिलाकर 1,36,845 मशीनें चाहिए, लेकिन अब तक सरकार ने सिर्फ 43,000 मशीनों पर सब्सिडी दी है. मतलब पंजाब में अभी भी 93,845 मशीनें चाहिए.

पराली न जलाने का समाधान क्या है?

किसानों को 200 रुपये प्रति क्विंटल कीमत देनी चाहिए, दूसरी बात पराली के प्रोसेसिंग यूनिट्स पर जोर देना चाहिए. पराली को प्रोसेस करके सिर्फ ऊर्जा ही नहीं, बल्‍कि दूसरी चीजें, जैसे कप-प्लेट और टेबल भी बन सकता है और ये तकनीक दिल्ली के IIT के छात्रों ने विकसित की है.

छात्र इनोवेट करते हैं, सरकार MoUs साइन करती है, लेकिन अगर सरकार की इच्छाशक्ति ही न हो, तो किसानों को दोष देकर कुछ हासिल नहीं होने वाला. सरकार कितनी गंभीर है, ये इससे पता चलता है कि अब जब दिल्ली वालों का दम घुट रहा है, तो सरकार कह रही है कि हम मॉनिटर कर रहे हैं. आखिर दिल्ली-एनसीआर की हवा जहरीली होने के बाद ही प्रदूषण का समाधान क्यों खोजा जाता है?

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