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Mundka Fire: परिवार का इकलौता कमाने वाला सहारा भी छिन गया

मुंडका में 13 मई को आग में कुल 27 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं.

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मुंडका (Mundka Fire) में 13 मई को सीसीटीवी कैमरा बनाने वाली कंपनी में लगी भीषण आग के बाद से भाग्य विहार में शोक की लहर दौड़ गई. उस अग्निकांड में मोहल्ले की कई महिलाओं की जान चली गई थी. आग में कुल 27 लोगों की मौत हो गई थी.

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कॉलोनी की गलियां परिवार के एक सदस्य को खोने वाले परिजनों के दुख-दर्द से गूंजती हैं, मरने वालो में ज्यादातर महिलाएं थीं. हर दूसरे परिवार ने एक सदस्य खोया है. कुछ ने तो परिवार में इकलौते कमाने वाले शख्स तक को खो दिया है. जबकि बच्चों ने अपनी माताओं को खो दिया है.

33 वर्षीय रंजू देवी के दो कमरे के घर के अंदर उनके पति और तीन बच्चे उनकी असामयिक मौत का शोक मना रहे हैं. उनके पति संतोष ने क्विंट को बताया , “हम शव को पहचान पा रहे थे क्योंकि वो थोड़ा कम जला था. उसने दो चूड़ियां पहन रखी थीं, एक सफेद, एक लाल. उसने नेल पॉलिश लगा रखी थी. हमने एक अंगूठी और एक पैर की अंगुली की अंगूठी को भी पहचाना. ”

कुछ ही मीटर की दूरी पर 35 वर्षीय जसोदा देवी के परिवार का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि अब वे क्या करेंगे. जसोदा देवी अब उनके बीच नहीं है. उसकी बेटी रिंकी आग्निकांड वाले दिन को याद करती है: “पड़ोस में किसी ने मुझे बताया कि मेरी मां के कारखाने में आग लग गई थी. मैंने उसे दो बार फोन किया लेकिन उसने नहीं उठाया. फिर मैं लोकेशन पर गई. मैंने कई अन्य लोगों को इमारत से बाहर आते देखा लेकिन अपनी मां को नहीं देखा.”

परिवार बिन मांओं के रह गए

उन्नीस वर्षीय निशा ने नौ लोगों के अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए नौकरी की थी. उसके पिता गुड्डू प्रसाद ने कहा, "निशा पूरे घर की देखभाल करती थी. मेरे पास आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं है. इसलिए निशा ने यह काम संभाला.'

निशा अपने पीछे छह बहनें, एक भाई और अपने माता-पिता छोड़ गई है. उसकी सबसे छोटी बहन दो माह की है.

"परिवार में वह अकेली कमाने वाली सदस्य थी. वह अपने सभी भाई-बहनों का भी ख्याल रखती थी. मेरी एक विकलांग बेटी है, निशा उसे खिलाती थी, नहलाती थी और उसकी देखभाल करती थी. हम नहीं जानते कि हम उसके बिना कैसे संभालेंगे."
निशा कुमारी के पिता

इसी तरह अपनी पत्नी को खोने वाले संतोष का कहना है कि वह नहीं जानता कि अपने बच्चों को अकेले कैसे पाला पाएंगे. "मेरे तीन बच्चे हैं, मुझे नहीं पता कि अब क्या करना है. मेरे कई रिश्तेदार आते रहते हैं लेकिन मां की जगह कोई नहीं ले सकता.'

जसोदा देवी के तीन बच्चे हैं. उनकी बेटी रिंकी ने कहा, ''मेरी मां घर संभालती थीं. मेरे पिता यहां नहीं रहते. वह हरियाणा में मजदूरी का काम करते हैं.''

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लॉकडाउन की वजह से करनी पड़ी नौकरी

इनमें से अधिकतर परिवार लॉकडाउन के दौरान आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे और तभी उनमें से कुछ ने नौकरी कर ली.

छत्तीस वर्षीय मुसरत के भाई मोहम्मद इम्तियाज ने कहा, “ उनके बहन के पति एक पेंटर हैं और लॉकडाउन के दौरान काम नहीं मिल रहा था. उसी समय उसके बच्चे बड़े हो रहे थे. इसलिए उन्होंने कंपनी ज्वाइन की."

जसोदा देवी की बेटी ने कहा कि इसी तरह उसकी मां को यह काम करना पड़ा था.

"जब मेरी शादी हुई. तो हम बहुत कर्ज में थे. मेरे पिता यह सब अकेले नहीं संभाल सकते थे. इसलिए उन्हें यह काम करना पड़ा."
रिंकी देवी

हालांकि दिन में आठ घंटे काम करने और कभी-कभी लंबे समय तक काम करने के बावजूद ज्यादातर महिलाओं को केवल 6,500 रुपये का भुगतान किया जाता था. पुराने कर्मचारियों को करीब 7,500 रुपये मिल रहे थे.

संतोष ने कहा कि उसकी पत्नी ने नौकरी इसलिए ली थी क्योंकि उसने बेहतर वेतन का वादा किया था.

उन्होंने कहा, "उससे पहले वह पास के एक गोदाम में काम करती थी. वह 3-4 हजार रुपये कमाती थी. उसने थोड़ा और पैसे के लिए नौकरी ली. वे उसे 6,500 रुपये दे रहे थे. मैं और क्या कह सकता हूं ? यही हमारे साथ हुआ है."

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