ADVERTISEMENTREMOVE AD

मिट्टी के दीये बनाने वालों की फीकी दिवाली, इस रोजगार से नहीं भर पा रहे पेट

मिट्टी के दिए बनाना छोड़ मजदूरी करने को मजबूर, कहा “सरकार अगर हम लोगों पर ध्यान दे तो इसका भविष्य पूरा है”

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

रोशनी के त्योहार दीपावली (Diwali 2021) ने दस्तक दे दी है. हर घर दीयों से जगमगा रहा है. बालकनी में दीया सजाते समय क्या आपने कभी सोचा है कि ये दीये कहां बनते हैं, जो लोग उन्हें बनाते हैं वो किन हालात में हैं ? बाजार में आती चाइनीज झालरों ने उनके पुश्तैनी पेशों पर किस तरह अस्तित्व का संकट ला दिया है ? पिछले 2 साल में कोरोना महामारी और साथ आये लॉकडाउन से वो कितना प्रभावित हुए हैं ?

इन तमाम सवालों का जवाब जानने और उनके पक्ष को उन्हीं से समझने के लिए क्विंट आपको पटना के बांस घाट इलाके के कुम्हार मनोज कुमार के पास ले आया है.

पिछले 2 सालों में दीये के कारोबार पर कितना असर पड़ा है, के सवाल पर कच्चे दीये को सूखते मनोज कुमार ने बताया कि अब ये रोजगार ना के बराबर रह गया है.

“2 साल पहले चाइनीज लाइट की डिमांड ज्यादी थी. ये हमारा पुश्तैनी रोजगार है मिट्टी के बर्तनों और दीयों को शुद्ध माना जाता था और हरेक घर में उसी से पूजा होती थी. लेकिन धीरे-धीरे लोग इस परंपरा को छोड़ते जा रहे हैं.”
कुम्हार मनोज कुमार

दिवाली के बाजार पर सस्ते चाइनीज झालरों और कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के असर को जानना है तो कुम्हार मनोज का निजी अनुभव अपने आप में काफी है. पहले दिवाली में कितने दीये बना लेते थे, के सवाल पर उन्होंने बताया कि “पहले हम तीन-चार भाई सब मिलकर काम करते थे लेकिन अब मैं अकेले ही बनाता हूं और तब भी दीये नहीं बिक पाते”

“पहले हम तीन-चार आदमी मिलकर 15 हजार से ज्यादा दीये बनाते थे, लेकिन अकेले अब हम बनाते हैं तो नहीं बिक पाता. इस रोजगार से पेट नहीं भर रहा है इसलिए भाइयों ने इसे छोड़ दिया और दूसरी मजदूरी कर रहे हैं.”
कुम्हार मनोज कुमार
ADVERTISEMENTREMOVE AD

“सरकार अगर हम लोगों पर ध्यान दे तो इसका भविष्य पूरा है”

क्या कोरोना महामारी बीत जाने के बाद भी मिट्टी के बर्तन, दीयों के कारोबार का भविष्य है क्या, के सवाल पर मनोज कुमार ने कहा कि “सरकार अगर हम लोगों पर ध्यान दे तो इसका भविष्य पूरा है”.

“सरकार अगर हम लोगों पर ध्यान दे, डिस्पोजल सामान बंद करा दे फिर हमारा कारोबार अच्छे से चलेगा, हमारे घर में भी दीया जलेगा”
कुम्हार मनोज कुमार

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×