13 अप्रैल, 2018 को क्विंट ने इलेक्टोरल बॉन्ड नाम के गोलमाल का खुलासा किया. सरकार ने दावा किया था कि इसमें जो चुनावी चंदा देगा उसके बारे में पता नहीं चलेगा. लेकिन हमने बताया कि असल में चंदा देने वाले के बारे में सत्तारूढ़ पार्टी पता कर सकती है और इससे ब्लैकमनी भी हमारे चुनावों में झोंकी जा सकती है.
हमने खुलासा किया कि दरअसल हर इलेक्टोरल बॉन्ड पर एक सीक्रेट अल्फा न्यूमेरिक कोड है. ये कोड खुली आंखों से नहीं दिखता है लेकिन अल्ट्रा वायलट लाइट में साफ नजर आता है. लेकिन अफसोस मेन स्ट्रीम मीडिया और विपक्ष दोनों ने हमारी स्टोरी पर तवज्जो नहीं दी.
सरकार ने 17 अप्रैल 2018 को हमारी रिपोर्ट के जवाब में बताया कि सीक्रेट अल्फा न्यूमेरिक कोड डोनर का पता ठिकाना जानने के लिए नहीं है, बल्कि एक सिक्योरिटी फीचर है. सरकार ने ये भी दावा कि कि बॉन्ड जारी करने वाला बैंक...यानी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सीक्रेट कोड का रिकॉर्ड नहीं रखता..
हमने सरकार के दावे को तीन आधार पर खारिज किया...
- हमने पूछा कि अगर सीक्रेट कोड सिक्योरिटी फीचर है तो नंबर यूनिक क्यों हैं?
- सिक्योरिटी के लिए सीक्रेट यूनिक अल्फा न्यूमेरिक कोड की जरूरत क्यों है जब ढेर सारे वॉटर मार्क वाले तगड़े सिक्योरिटी फीचर मौजूद हैं.
- जब RBI को करेंसी की सुरक्षा के लिए सीक्रेट सीरियल नंबर की जरूरत नहीं पड़ी तो इलेक्टोरल बॉन्ड के लिए ऐसे फीचर की जरूरत क्यों है?
अप्रैल 2018 में ही क्विंट ने खबर दी कि चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर आपत्ति जताई है. आयोग को डर था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए हमारे चुनावी सिस्टम में कालाधन घुस सकता है. हमने ये भी बताया कि सरकार ने चुनाव आयोग की आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया. मई, 2018 में, हमने पूर्व चुनाव आयुक्त से लेकर पूर्व RBI डायरेक्टर तक के इंटरव्यू किए. सबने यही कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड हमारे लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है.
विपक्ष ने हमारी रिपोर्ट नजरअंदाज कर दी
कुछ विपक्षी पार्टियों ने इसपर गौर किया लेकिन ज्यादा ने या तो हमारी रिपोर्ट्स को नजरअंदाज कर दिया या ये समझ ही नहीं पाईं कि उनकी नाक के नीचे इलेक्टोरल बॉन्ड नाम की गड़बड़ी चल रही है. और मेन स्ट्रीम मीडिया ने तो इस खबर पर जरा भी ध्यान नहीं दिया.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल
लोकसभा चुनाव 2019 के पहले एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म और कॉमन काउज नाम के NGO ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली. याचिका में उन्होंने क्विंट की स्टोरी के हवाले से इलेक्टोरल बॉन्ड में ट्रांसपेरेंसी की कमी और सीक्रेट सीरियल नंबर का जिक्र किया. याचिकाकर्ताओं ने चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने की मांग उठाई. याचिका के जवाब में चुनाव आयोग ने एक बार फिर इलेक्टोरल बॉन्ड का विरोध किया.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी सियासी पार्टियों को आदेश दिया कि वो 30 मई, 2019 तक चुनाव आयोग को सील्ड कवर में जानकारी दें कि उन्हें इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए कितना चंदा मिला. एक बार फिर, मेनस्ट्रीम मीडिया और ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने इस बड़ी स्टोरी को नजरअंदाज कर दिया.
अब, आरटीआई से खुलासा हुआ है कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स की शुरुआत से कुछ दिन पहले आरबीआई के अधिकारियों ने ये कहते हुए आपत्ति जताई थी कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स ब्लैक मनी खपाने का जरिया बनेंगे. लेकिन सरकार ने आरबीआई तक की नहीं सुनी.
आखिरकार संसद में उठी आवाज
आखिरकार, 21 नवंबर 2019 को संसद में विपक्षी पार्टियों ने आवाज उठाई- इलेक्टोरल बॉन्ड एक धोखा है. विपक्ष और मेनस्ट्रीम मीडिया को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कैम पर ध्यान देने में डेढ़ साल लग गया... वाकई?
पलटवार करते हुए बीजेपी के मंत्री और पार्टी के ट्रेजरार पीयूष गोयल ने विपक्ष को आड़ो हाथों लिया. उन्होंने कहा- ‘विरोध करने वाली पार्टियां इलेक्टोरल बॉन्ड के जरे ही खुशी-खुशी चंदा ले रही है.’
उन्होंने ये कहते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड्स का बचाव किया कि यूनिक हिडन कोड के जरिये ऑडिट ट्रेल उपलब्ध होगा ताकि सबकी तसल्ली हो सके. ये भी दावा किया कि इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम आरबीआई और चुनाव आयोग से सलाह-मशविरे के बाद ही शुरू की गई थी.
लेकिन कुछ ऐसा भी है जो श्री पीयूष गोयल ने नहीं बताया- और वो ये कि वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिए कितना चंदा मिला?
बीजेपी क्यों है खामोश
इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए अब तक 6000 करोड़ का चुनावी चंदा आया है और इसमें से 4500 करोड़ के बारे में चुनाव आयोग को बताया नहीं गया है. तो सवाल ये है कि क्या बीजेपी इसलिए खामोश है क्योंकि इसमें से ज्यादातर चंदा उसे ही मिला है? क्विंट इस अहम स्टोरी पर अप्रैल 2018 से ही है, हम आगे भी इसे लगातार ट्रैक करते रहेंगे और आपको हर अपडेट देते रहेंगे, जुड़े रहिए क्विंट के साथ
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