वीडियो एडिटर: संदीप सुमन/मोहम्मद इरशाद आलम
यूपी के टप्पल में एक ढाई साल की बच्ची को अगवा कर उसकी हत्या कर दी जाती है. देशभर में जब इस घटना को एक घिनौने अपराध के तौर देखा जा रहा था, उस वक्त सोशल मीडिया का एक धड़ा इसे साम्प्रदायिक रंग देने में जुटा था. इस धड़े ने एक बेबुनियाद सवाल पूछना शुरू किया ''कठुआ गैंगरेप केस में आवाज उठाने वाले लोग मुस्लिम रेपिस्ट के खिलाफ क्यों कुछ नहीं बोलते''
ये सवाल बेबुनियाद क्यों था, उस पर भी बात करेंगे लेकिन पहले ये समझने की कोशिश करते हैं कि सोशल मीडिया पर किस तरह मुस्लिमों को अपराध से जोड़कर दिखाया जा रहा है, किस तरीके से उनके धर्म को लेकर एक तरह का डर, नफरत या पूर्वाग्रह यानी इस्लामोफोबिया पैदा करने की कोशिशें हो रही हैं.
इक्वैलिटी लैब्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में फेसबुक पर हेटस्पीच के मामलों में इस्लामोफोबिया टॉप पर है, कुल हेटस्पीच का 37%.
आलम ये है कि पिछले साल जब देश में पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों पर बहस तेज थी, तब भी सोशल मीडिया पर एक धड़ा इस्लामोफोबिया फैलाने में लगा था. इसका एक नमूना देखिए- एक यूजर ने वायरल वीडियो के कुछ स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा ''ये हैं रोहिंग्या मुस्लिम, देखो कैसे खा रहे हिंदुओं को और हिंदू तुम पेट्रोल पर रोते रहो...''
हालांकि फैक्ट चेकिंग नेटवर्क बूम लाइव ने कई दलीलों के साथ रोहिंग्याओं के खिलाफ इस वीडियो में किए गए दावे को झूठा बताया था, ऐसा ही एक और मामला है, जो पिछले साल की शुरुआत का है उस वक्त राजपूतों का एक संगठन करणी सेना देश के कई हिस्सों में फिल्म पद्मावत के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा था. इसी प्रदर्शन के बीच गुड़गांव में एक स्कूल बस पर हमला हुआ इस हमले की भी देशभर में काफी निंदा हुई, मगर यहां भी इस्लामोफोबिया फैलाने वाले अपना खेल खेलने से नहीं चूके उन्होंने एक मेसेज शेयर करना शुरू कर दिया- ‘गुड़गांव में स्कूल बस पर पथराव में करणी सेना के सद्दाम, आमिर, नदीम फिरोज और अशरफ पकड़े गए.’
इस तरह मुस्लिमों को ना सिर्फ हमले का जिम्मेदार ठहरा दिया गया, बल्कि उन्हें करणी सेना का सदस्य भी बता दिया गया. हालांकि बाद में पुलिस ने साफ किया कि इस मामले में मुस्लिम समुदाय के किसी भी शख्स को गिरफ्तार नहीं किया गया.
अब सवाल है कि कठुआ गैंगरेप केस में आवाज उठाने वाले लोग मुस्लिम रेपिस्ट के खिलाफ क्यों कुछ नहीं बोलते सबसे पहली बात टप्पल केस में बच्ची की जो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आई, उसमें रेप का जिक्र नहीं था, खुद अलीगढ़ पुलिस ने इस बात को साफ किया था.
दूसरी बात, कठुआ केस में समाज का एक धड़ा और कुछ नेता खुलेआम आरोपियों के पक्ष में आ गए थे, जबकि टप्पल केस में ऐसा देखने को नहीं मिला टप्पल केस में किसी ने भी आरोपियों के पक्ष में रैली नहीं निकाली इस केस में देशभर के लोगों ने कानून व्यवस्था से लेकर समाज की हालत तक पर सवाल उठाए मगर फिर भी इस्लामोफोबिया फैलाने वालों ने इस केस को भुनाने की पूरी कोशिश की.
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