वीडियो एडिटर: विशाल कुमार
लंबे लॉकडाउन के कारण इकनॉमी बेपटरी हो चुकी है. बेरोजगारों की फौज खड़ी हो गई है. ऐसे में इंफ्रा सेक्टर और आर्थिक नीतियों के बड़े एक्सपर्ट विनायक चटर्जी ने एक बड़ा सुझाव दिया है. चटर्जी का कहना है इन्हें ठीक करना है तो कम से कम 30 लाख करोड़ का एक फंड बनाना होगा. इसे उन्होंने NRF का नाम दिया है. सुनिए फीडबैक इंफ्रा के चेयरमैन विनायक चटर्जी से क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया की खास बातचीत.
UNLOCK की राह के रोड़े
विनायक का कहना है कि लॉकडाउन में राहत के बाद से कारोबार खुल रहे हैं लेकिन विकास के काम भी हो रहे हैं लेकिन सिर्फ 40-50% काम हो पा रहे हैं. लेबर की कमी, पूंजी की कमी और लॉकडाउन-अनलॉक के असमंजस में दिक्कत हो रही है. इसके साथ ही स्थानीय प्रशासन से मंजूरी मिलने में भी दिक्कत हो रही है. विनायक का मानना है कि सरकार मदद की मंशा रखती है लेकिन ग्राउंड पर अफसरों की मानसिकता नहीं बदली. आज इंफ्रा प्रोजेक्ट का मकसद सिर्फ विकास नहीं रोजगार देना भी है.
लॉकडाउन खत्म होने के बाद इकनॉमी में थोड़ी रफ्तार नजर आ रही है लेकिन ये इसलिए है क्योंकि तीन महीने तक सबकुछ बंद रहा और काम शुरू हो रहा है. लेकिन ये रफ्तार इतनी धीमी है कि कुछ खास फायदा नहीं होगा.विनायक चटर्जी, चेयरमैन, फीडबैक इंफ्रा
सरकारी खर्च बढ़ाना ही एकमात्र उपाय
''इस वक्त सरकारी खर्च से ही इकनॉमी में तेजी आ सकती है और सरकार को इंफ्रा पर खर्च करने की जरूरत है. क्योंकि इस वक्त न तो विदेशी पैसा लगाना चाह रहे हैं और न ही निजी सेक्टर पैसा लगाना चाह रहा है. जिन विदेशियों को आप पैसा लगाते देख रहे हैं वो पुराने प्रोजेक्ट में पैसा लगा रहे हैं, और फिलहाल वो भी बंद है.
सरकारी खर्च से राहत का आइडिया कोई नई बात नहीं है. 18वीं शताब्दी में लखनऊ के नवाब ने अपने खजाने से बड़ा इमामबाड़ा बनाया और इससे हजारों लोगों को रोजगार मिला.विनायक चटर्जी, चेयरमैन, फीडबैक इंफ्रा
विनायक का कहना है - ''ये युद्ध काल है. जो इनकॉमी 6% की रफ्तार से बढ़ रही थी अब इस साल अगर 10% निगेटिव चली गई तो क्या होगा. कोरोना से पहले भी रोजगार की दिक्कत थी, तो सोचिए जब इनकॉमी में 16% का नुकसान हो जाएगा तो कैसी मुसीबत आएगी? मैंने सरकार से कहा कि आज वित्तीय मदद का वक्त खत्म हो गया. अब लोक निर्माण की जरूरत है. सरकार इसपर सुनवाई भी कर रही है'
तो क्या है बिग आइडिया
‘मैंने सरकार को सुझाव दिया है कि बजट से बाहर 30 लाख करोड़ का नेशनल रिन्यूअल फंड बनाइए. ये लंबी योजना होनी चाहिए. ये रकम जीडीपी के 14% के बराबर होनी चाहिए. इस पैसे को न सिर्फ इंफ्रा पर खर्च कीजिए, बल्कि बाकी सेक्टर्स और गरीबों की मदद के लिए भी खर्च कीजिए. जैसे MSME, वित्तीय क्षेत्र और तंगहाल राज्य सरकारों को भी मदद दीजिए. और इसके लिए पैसा आ सकता है. 60% पैसा आरबीआई से आए और 40% पैसा मित्र देशों से लॉन्ग टर्म लोन के तौर पर आए. जैसे जापान ने मेट्रो के लिए लंबी अवधि का लोन दिया.
सरकार इस बात पर विचार कर रही है कि डेवलपमेंट सेक्टर में काम करने वाले सरकारी वित्तीय संस्थानों को मिलाकर एक कर दिया जाए या फिर एक नया DFI खड़ा किया जाए. अभी इसपर विचार चल रहा है. केंद्रीय सचिवों की समिति इसपर विचार कर रही है.विनायक चटर्जी, चेयरमैन, फीडबैक इंफ्रा
चटर्जी का मानना है कि जब तक सरकार जीडीपी का 8% इंफ्रा पर खर्च नहीं करेगी तब तक विकास और रोजगार की राह मुश्किल है.
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