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किसानों का सवाल: त्वाडी भूख- ‘भूख’, साडा खाना- ‘पिज्जा पार्टी’? 

सोशल मीडिया से लेकर सत्ता के खेत में वोटों की खेती करने वाले नेता किसानों को लेकर उट-पटांग लॉजिक दे रहे हैं

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

पिज्जा (Pizza), फुट मसाजर, जिम, ओपन थिएटर.. अरे ये किसानों का आंदोलन (Farmers Protest) है या पिकनिक स्पॉट? आखिर ये चाहते क्या हैं? हद ही हो गई. भूखे, नंगे, सर पर गमछा बांधे, चेहरे पर झुर्री, आसमान की तरफ बारिश की आस में तकते, सूखे खेत में दरार पड़ी जमीन के बीच बैठा किसान.. ये सब जब तक हम देखेंगे नहीं तब तक मानेंगे नहीं कि ये किसान हैं. जी हां. सोशल मीडिया से लेकर सत्ता के खेत में वोटों की खेती करने वाले नेता किसानों (Farmers) को लेकर ऐसे ही उट-पटांग लॉजिक दे रहे हैं.

3 कृषि कानूनों (3 Agriculture Laws) के विरोध में दिल्ली की सरहदों (Delhi Borders) पर हजारों किसान डटे हुए हैं. किसानों के समर्थन में कोई पिज्जा ला रहा है, तो कोई लंगर लगवा रहा है, लेकिन कमाल तो ये है कि अपने पसीने से देश की भूख मिटाने वाले किसानों के पिज्जा खा लेने से कुछ लोगों के मुंह और मन का स्वाद खराब हो रहा है और तो कुछ का हाजमा. इसलिए ऐसे बेतुके सवाल वालों से किसान से लेकर आम इंसान पूछ रहा है जनाब ऐसे कैसे?

जनाब ऐसे कैसे?

3 नए कृषि कानून को रद्द कराने की मांग को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं, उन्हें डर है कि इन कानूनों से कॉर्पोरेट का खेती पर कब्जा होगा, किसानों के आंदोलन का सबसे बड़ा कारण नए किसान कानून की वजह से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के खत्म होने का डर है. लेकिन किसानों की मांग से ज्यादा चर्चा इस बात पर हो रही है कि वो क्या खा रहे हैं.

पहले किसानों के बिरयानी खाने के नाम पर कुछ कथित पत्रकारों से लेकर नेताओं के पेट में दर्द शुरू हुआ, दर्द ऐसा कि बिरयानी से सीधा पाकिस्तान कनेक्शन निकाल लिया गया. और अब किसानों के पिज्जा खाने पर आंदोलन को पिकनिक स्पॉट बताया जा रहा है.

चलिए ऐसे लोगों को थोड़ा आंकड़ों से भी किसान की जिंदगी सॉरी मौत की कहानी बताते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के मुताबिक 2019 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,281 लोगों ने आत्महत्या की है. मतलब हर दिन करीब 28 किसानों ने मौत को गले लगाया है. वहीं 2018 में कृषि क्षेत्र से जुड़े करीब 10357 लोगों ने जान दी थी. मतलब दो साल में 20 हजार से ज्यादा मौतें. लेकिन अफसोस किसानों की मौत पर नहीं बल्कि चर्चा खाने पर हो रही है.

जिस कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं, उसे लेकर सरकार और किसानों के बीच कई राउंड बातचीत हुई है, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर गृह मंत्री अमित शाह ने किसान संगठनों से मुलाकात की है. किसानों को सरकार ने प्रस्ताव भेजा है, जिसे किसानों ने ठुकड़ा दिया है. लेकिन इन सबके बीच किसानों को बदनाम करने का खेल बदस्तूर जारी है.
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चलिए आपको इस खेल की पूरी क्रोनोलोजी समझाते हैं. किसानों के आंदोलन और उनकी मांगों पर चर्चा से पहले ही बदनामी की फील्डिंग सेट की गई. शुरुआत फिल्म एक्ट्रेस कंगना रनौत ने किया. कंगना ने किसान आंदोलन में शामिल होने आ रहीं बुजुर्ग दादियों को सौ रुपये दिहाड़ी पर धरना देने वाली बताया. लेकिन इस खेल में उन्हें पंजाबी स्टार दिलजीत दोसांझ ने पछाड़ दिया. लेकिन बदनामी का खेल जारी रहा.

कभी हरियाणा के सीएम मनोहर कहते हैं कि केंद्र सरकार के कृषि कानूनों का विरोध राजनीतिक दलों द्वारा समर्थित है और इनका लिंक खालिस्तान से भी है. बीजेपी के सांसद मनोज तिवारी वही पुराना राग अलापते हुए नागरिकता संशोधन कानून, शाहीन बाग और टुकड़े-टुकड़े गैंग का नाम लेते हैं. यूपी में योगी सरकार के वन और पर्यावरण मंत्री अनिल शर्मा किसानों के प्रदर्शन पर कहते हैं कि ये लोग किसान नहीं, बल्कि गुंडे हैं.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने नक्सली एंगल वाले पुराने बयानों को नए पैकेजिंग के साथ उतारा. कहा कि अगर प्रदर्शन को नक्सलियों और माओवादियों से मुक्त किया जाता है तो हमारे किसान जरूर समझेंगे कि ये कानून उनके और देश के हित में हैं.  

यही नहीं मालेगांव बम धमाकों की आरोपी और बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने थोड़ा वर्ड्स को ट्विस्ट किया और वामपंथ पर पहुंच गईं. कहा-

ये किसानों के वेष में वामपंथी छिपे हैं. जो देश विरोधी लोगों को इकट्ठा करके किसानों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे लोगों को जल्द से जल्द जेलों में डालना चाहिए. कृषि कानूनों पर किसी भी तरह के सुधार की जरूरत नहीं है.

अब इन्हें शायद किसी ने बताया नहीं कि इनके पार्टी से आने वाले कृषि मंत्री कृषि कानून में संशोधन की बात कर रहे हैं.

लेकिन इन सबके बीच ये समझ नहीं आ रहा है कि अगर आंदोलन पर बैठे किसान खालिस्तानी, गुंडे, विदेशी ताकतों के हाथ की कटपुतली हैं, तो सरकार इनसे बात क्यों कर रही है? क्यों इन लोगों को प्रस्ताव दिए जा रहे हैं?

इसका मतलब ये हुआ कि या तो किसानों के आंदोलन को बदनाम करने वाले झूठ बोल रहे हैं या फिर कोई और?

आखिर में एक बात ये किसान पिज्जा, बिरयानी के लिए नहीं बल्कि इसलिए लड़ रहे हैं, ताकि कल को ये भी बिहार के किसानों की तरह गरीब किसान न बन जाएं. और हो सके तो थोड़ी अकल लगाईए, किसानों के उगाए गेंहू, बाजरे, मक्के से बने पिज्जा को आप डकार सकते हैं, तो जिसने उगाया है वो क्यों नहीं खा सकता? और फिर भी आपको दिक्कत है तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

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