"ये सड़क जाम किसानों की वजह से है.."
"अपनी बात मनवाने के लिए ये किसान फिर से दिल्ली को बंधक बनाना चाहते हैं.."
सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनल पर बैठे एंकर और कई नेता कुछ ऐसी ही भाषा बोल रहे हैं.. लेकिन क्या यही सच है? क्या सरकार ने पिछले किसान आंदोलन (Farmers Protest) के दौरान किए वादे पूरे कर दिए थे? क्या किसान जानबूझकर वापस दिल्ली आना चाहते हैं? ऐसे सवालों के जवाब के अलावा इस वीडियो में हम आपको ऐसे कई फैक्टस और तर्क बताएंगे, जिनसे शायद आप चौंक जाएं. इस वीडियो को देखने के बाद आप भी सवाल पूछने को मजबूर हो जाएंगे. सवाल ये भी है कि किसानों से जुड़े और किसानों की आवाज उठाने वाले सोशल मीडिया अकाउंट को कौन सस्पेंड करा रहा है? क्या किसानों पर पुलिस ने पैलेट गन चलाए? इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
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अब आप ये हेडलाइन पढ़िए..
"भारत सरकार ने ब्लॉक कराए कई लोगों के पोस्ट और अकाउंट"
"किसान आंदोलन से जुड़े कई X अकाउंट सस्पेंड, भारत सरकार के आदेश पर लिया एक्शन"
ट्विटर यानी एक्स के ग्लोबल मामलों को देखने वाले अकाउंट ने भारत सरकार के एक आदेश को लेकर बयान जारी किया है. बयान में लिखा है-
“भारत सरकार ने आदेश जारी किया है, जिसमें सोशल मीडिया एक्स के कुछ अकाउंट और पोस्ट पर कार्रवाई करने को कहा गया है. कहा गया है कि इन अकाउंट और पोस्ट को ब्लॉक किया जाए क्योंकि ये भारत के कानून के मुताबिक दंडनीय हैं."
अब आप नीचे तस्वीरों में कुछ ट्विटर हैंडल देख सकते हैं जिन्हें सस्पेंड किया गया.
क्या किसानों पर पैलेट गन चलाए गए?
किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए आंसू गैस के गोले बरसाए गए, सड़कों पर कीलें, पत्थर के बैरिकेड, कंटीले तार लगाए गए.. ये सब आपने पिछले किसान आंदोलन में भी देखा था, लेकिन इस बार किसानों को रोकने के लिए पुलिस दो कदम आगे बढ़ गई. आंदोलन कर रहे किसानों का आरोप है कि पुलिस ने उन पर पैलेट गन चलाए.
हालांकि हरियाणा के DGP ने किसानों के खिलाफ पैलेट गन के इस्तेमाल से इनकार किया है. लेकिन क्विंट को एक घायल प्रदर्शनकारी किसान की मेडिकल रिपोर्ट मिली है, उन्हें पटियाला के सरकारी मेडिकल कॉलेज और राजेंद्र अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
रिपोर्ट में दिए गए पैलेट से जुड़ी चोटों की डीटेल है.. रिपोर्ट में लिखा है-
आंतरिक और दाहिनी साइड के पेट के स्किन में मूत्राशय और जांघ के बीच और स्किन के नीचे टिश्यू में कई मेटल डेंसिटी वाली वस्तुओं के निशान हैं.
एक से अधिक मेटल डेंसिटी वाली वस्तुएं जिन्हें पैलेट्स कहा जाता है, वह चेहरे के आसपास मौजूद मोटी चमड़ी और टिश्यू में पाई गई हैं.
अब सवाल है कि कौन सच बोल रहा है डॉक्टर की मेडिकल रिपोर्ट या हरियाणा पुलिस?
सवाल ये भी है कि सरकार ने किसानों को "5 फसलों पर 5 साल तक MSP की गारंटी" का प्रस्ताव दिया है, फिर ये सब क्यों हुआ?
आंदोलन कर रहे किसानों पर NSA के तहत कार्रवाई का आदेश पहले क्यों दिया?
सरकार एक तरफ बातचीत का हवाला दे रही है दूसरी तरफ बीजेपी गठबंधन की हरियाणा सरकार किसान आंदोलन से जुड़े संगठनों और नेताओं के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करने की बात कहती है, जब मीडिया से लेकर विपक्ष सवाल उठाता है तब NSA का फैसला वापस ले लिया जाता है. आखिर ऐसे फैसले पहले लिए ही क्यों गए?
क्या सिर्फ भारत में किसान सड़क पर हैं?
एक और सवाल है कि क्या भारत अकेला देश है जहां किसान अपनी मांगों को लेकर सड़क पर हैं?
नहीं.. फ्रांस, जर्मनी, इटली, ग्रीस बेल्जियम, नीदरलैंड, पोलैंड, स्पेन में भी अलग अलग मांग को लेकर किसान प्रदर्शन आंदोलन कर रहे हैं.
फ्रांस में किसानों ने कृषि डीजल पर सब्सिडी या टैक्स को खत्म करने की योजना का विरोध किया. ग्रीस की राजधानी एथेंस में तेल और बिजली की बढ़ती कीमतों के खिलाफ किसान ट्रैक्टर के साथ ग्रीस की संसद तक पहुंच गए. ग्रीस की सरकार कह रही है कि हम किसानों की मांग को समझते हैं. बता दें कि ग्रीस ने किसानों पर ड्रोन से आंसू गैस के गोले नहीं गिराए.
सवाल ये भी है कि ये किसान अपने आप सड़क पर आ गए हैं क्या?
दरअसल, दो साल पहले तीन कृषि कानून को रद्द कराने और एमएसपी की गारंटी जैसी कई मांगों को लेकर किसान दिल्ली के बॉर्डरों पर धरने पर बैठे थे. तब 13 महीने के लंबे आंदोलन के बाद सरकार ने उनकी अहम मांगें मान ली थी. लेकिन अब फिर किसान दोबारा सड़कों पर क्यों हैं? संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनैतिक) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा,
"सरकार ने उस समय न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटी का वादा किया था. किसान आंदोलन के समय किसानों के खिलाफ जो मुकदमे किए गए थे वे वापस लिए जाएंगे. लखीमपुर-खीरी की घटना में मारे गए लोगों के परिवारों को नौकरी और घायलों को दस-दस लाख रुपये दिए जाएंगे. लेकिन सरकार ने अपना वादा पूरा नहीं किया."
अब सवाल है कि किसान कई महीने से 'दिल्ली चलो' की बात कह रहे थे फिर पहले ही उनसे बात कर कॉन्फिडेंस में क्यों नहीं लिया गया?
सड़क बंद और ट्रैफिक जाम के जिम्मेदार किसान?
सड़क पुलिस ने बंद किए ताकि किसान अपनी मांग के लिए दिल्ली न आ सके. अब कई लोग सड़क पर ट्रैफिक जाम को लेकर, सड़क बंद करने को लेकर किसानों को जिम्मेदार मान रहे हैं. लेकिन क्या इन लोगों को 1974 का जेपी आंदोलन, 1988 का महेंद्र टिकैत के नेतृत्व में लाखों किसानों का दिल्ली की सड़कों पर आंदोलन, 2011 का अन्ना आंदोलन, 2012 का निर्भया रेप केस के बाद आंदोलन की जानकारी नहीं है. तब राजनीतिक दल से लेकर विपक्षी पार्टियां सड़कों पर थीं. तब बीजेपी भी कांग्रेस की सरकार के खिलाफ सड़कों पर थी.
गुड़गांव की सड़कों पर रोज घंटों लोग जाम में फंसते हैं.. नोएडा से दिल्ली रोजाना ट्रैफिक जाम होता है. तो सवाल है कि क्या ये किसानों की वजह से है? ये सही है कि किसानों को भी आम लोगों की परेशानी को समझनी चाहिए. लेकिन सरकार की जिम्मेदारी बड़ी है.
इन सबके बीच एक तर्क ये है कि 26 जनवरी 2021 को दिल्ली के लाल किले पर किसान आंदोलन के दौरान हिंसा हुई थी, प्रदर्शनकारियों ने लाल किले पर चढ़ाई की इसलिए उन्हें इस बार दिल्ली आने से रोका जा रहा है. सही बात है. कोई भी हिंसा वाले आंदोलन को जायज नहीं ठहराएगा. 26 जनवरी 2021 को लाल किले पर जो हुआ वो गलत था.
लेकिन सवाल तब भी यही था कि ऐसी नौबत क्यों आने दी जाती है? अगर सरकार और किसानों के बीच सकारात्मक बातचीत होती तो शायद 22 साल के किसान शुभकरण सिंह की मौत नहीं होती. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?
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