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‘रेवड़ी कल्चर’, Freebies, 'मुफ्त के मलीदे', भारत के लिए कितने जरूरी?

कोरोना संकट और आर्थिक संकट के बीच 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त राशन देना भी रेवड़ी है?

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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) इन दिनों रेवड़ी (Revdi) यानी फ्रीबीज, यानी ‘मुफ्त के मलीदे’ को देश के लिए खतरनाक बता रहे हैं तो केजरीवाल रेवड़ी को भगवान का प्रसाद कह रहे हैं. लेकिन क्या वेलफेयर स्टेट में जनता के वेलफेयर के काम को रेवड़ी कहना सही है? रेवड़ी कल्चर है क्या? क्या जनता को फ्री शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा देना रेवड़ी है? 80 करोड़ लोगों को सितंबर के बाद भी मुफ्त राशन देना या नहीं ये फैसला करने का वक्त आ गया है. कोरोना संकट और आर्थिक संकट के बीच 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त राशन देना भी रेवड़ी है? इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

चुनाव से पहले हर पार्टी अपना घोषणापत्र जारी करती है, कोई फ्री बिजली, फ्री पानी का वादा करती है, कोई स्कूटर, लैपटॉप, मिक्सर देने की बात कहता है.

आप ये वाला हवा-हवाई घोषणापत्र देखिए..

  • मुखिया का चुनाव जीतेंगे तो पूरे गांव को सरकारी नौकरी देंगे

  • हवाई अड्डा बनवाएंगे

  • बुजुर्गों को बीड़ी देंगे

  • लड़कियों को ब्यूटी पार्लर

अब एक और देखिए

  • 60 साल की माताओं को च्यवनप्राश के दो डिब्बे

  • भाभी को सरोजनी नगर मार्केट से सूट देंगे

अब आप रेवड़ी कल्चर बहस की शुरुआत कहां से हुई वो देखिए.

अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करने के लिए उत्तर प्रदेश के जालौन पहुंचे थे. तब पीएम ने कहा था-

‘‘ये ‘रेवड़ी कल्चर’ वाले कभी आपके लिए नए एक्सप्रेसवे नहीं बनाएंगे, नए एअरपोर्ट या डिफेंस कॉरिडोर नहीं बनाएंगे. हमे जल्द ही देश की राजनीति से इस रेवड़ी कल्चर को हटाना होगा. इन रेवड़ी कल्चर वालों को लगता है कि देश की जनता को मुफ्त की रेवड़ी बांटकर, उन्हें खरीद लेंगे. ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिय घातक है.’’

अब आते हैं इसके मतलब पर. दरअसल, राजनीति में रेवड़ी का मतलब होता है फ्रीबीज (Freebies) यानी जनता के कल्याण के लिए मुफ्त में सुविधाएं देना.

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फ्रीबीज को आप ऐसे समझ सकते हैं कि जैसे केजरीवाल की सरकार ने दिल्ली में फ्री पानी का वादा किया था, कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी की बात कही थी, बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में लड़कियों के लिए फ्री में स्कूटी देने का ऐलान किया था. तो क्या ये फ्रीबीज बुरे हैं? जवाब है, नहीं. लेकिन ये तब ही मुमकिन होगा जब सरकारों के पास इन वादों को पूरा करने के लिए धन हो.

फ्रीबीज का मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है. बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की थी. जिसमें राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त की घोषणाओं और वादों पर रोक लगाने की मांग की गई थी. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को निर्देश दिया है कि वह एक पैनल बनाए. वे इस मुद्दे पर चर्चा करें और कुछ रचनात्मक सिफारिशें करें.

क्या बीजेपी को रेवड़ी कल्चर से परहेज है?

मोदी सरकार ने गरीबों को मुफ्त राशन देने की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना कोविड के दौर में साल 2020 में शुरू की थी. इसके तहत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National food security Act) में शामिल लगभग 80 करोड़ लाभार्थियों को प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलो अनाज मुफ्त दिया जा रहा है. इस योजना को छह बार आगे बढ़ाया जा चुका है.

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भारत में कितने गरीब?

इस योजना से एक सवाल उठता है कि भारत में कितने लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं?

योजना आयोग द्वारा गरीबी के आंकड़े आखिरी बार 2011-12 के लिए जारी किए गए थे. उस समय जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में गरीबों की संख्या 26.98 करोड़ या कुल जनसंख्या का 21.9 फीसदी आंकी गई थी. तब से लेकर अब तक 10 साल गुजर चुके हैं लेकिन भारत में गरीबी का कोई आधिकारिक अनुमान जारी नहीं किया गया है.

यही नहीं अब से 10 साल पहले यानी साल 2012 में भारत में गरीबी रेखा के लिए नए मानक तैयार करने के लिए रंगराजन समिति बनाई गई थी. इस समिति ने 2014 में अपनी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी लेकिन उस पर सरकार ने अभी तक कोई फैसला नहीं किया है. फिर कैसे पता चलेगा कि फ्रीबीज सही है या गलत? और जब गरीबी है तो ऐसी योजना को एक्सटेंशन क्यों न दिया जाए?

लेकिन सवाल ये भी है कि क्या फ्रीबीज के नाम पर कुछ भी वादे कर लिए जाएं? जवाब है नहीं. सरकारी खजाने देखने होंगे, आय का सोर्स, राज्य पर कर्ज कई सारे पैरामीटर हैं.

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हालांकि आपके सामने कथित रेवड़ी का एक और बढ़िया एग्जैमप्ल है. मनरेगा. हां, वही जिसे 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने "विफलता का स्मारक" कहा था. इसके जरिए लोगों को रोजगार की गारंटी दी जा रही है. मनरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा जैसी योजना लाखों लोगों की कुछ बुनियादी जरूरतों की पूर्ति करती हैं.

अब बात बीजेपी के घोषणापत्र की. उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 में बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में लिखा-

  • 2 करोड़ टैबलेट या स्मार्टफोन बांटेंगे

  • कॉलेज जाने वाली हर महिला को मुफ्त स्कूटी

  • होली और दीपावली में 2 मुफ्त एलपीजी सिलेंडर

जब बीजेपी यूपी में फ्रीबीज की बात करती है तो फिर दूसरी पार्टियों की फ्रीबीज की घोषणा पर आपत्ति क्यों? जनकल्याण की योजनाएं चलाना सिर्फ एक पार्टी का एकाधिकार क्यों हो? फिनलैंड, स्वीडेन, डेनमार्क जैसे देशों में फ्री एजुकेशन और फ्री हेल्थ सर्विस है.

गरीबी दूर करने और बराबरी के लिए फ्रीबीज क्यों न हो? रेवड़ी, फ्रीबीज, मुफ्त के मलीदे, जैसी बहस कर कहीं हम बेरोजगारी और गरीबी जैसे मूल समस्याओं से कन्नी तो नहीं काट रहे? 80 करोड़ को मुफ्त अनाज को ही गरीबी का पैमाना मानें तो देश में कम से कम 80 करोड़ लोग गरीब हैं.

तो मूल सवाल ये है कि लोगों को इन फ्रीबीज की जरूरत ही क्यों पड़ती है. क्योंकि आज भी सरकारें इस देश में सबको भरपेट खाना, पूरी शिक्षा और सेहत जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं दे पाए हैं. सरकारें आम आदमी को सस्ती शिक्षा और अच्छा और सुलभ इलाज ही दे दें तो कोई हिंदुस्तानी हाथ नहीं फैलाएगा, वो खुद को सबल बना लेगा. आप ये बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं करेंगे और फ्रीबीज पर सवाल भी उठाएंगे तो हम पूछेंगे जरूर, जनाब ऐसे कैसे?

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