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फौजी हूं, साफ बोलूंगा- कश्मीर में हो रही क्रूरता: कपिल काक

पूर्व एयर वाइस मार्शल समेत 6 याचिकाकर्ता अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के खिलाफ SC पहुंचे  

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वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दू प्रीतम, संदीप सुमन

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कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के तरीके के खिलाफ जिसने मुंह खोला, देशद्रोही करार दे दिया गया. अब वायुसेना के एक पूर्व अफसर ने इसपर खुलकर बोला है. रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल कपिल काक ने कहा है कि कश्मीर में केंद्र सरकार क्रूरता कर रही है. अपने फैसले जबरन थोप रही है. क्विंट से खास बातचीत में कपिल काक ने ये भी कहा है कि हम सारे उसूलों और मूल्यों को कुचल रहे हैं. बता दें कपिल काक उन 6 अफसरों में शामिल हैं जिन्होंने 370 हटाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी है.

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कपिल ने इस बातचीत में कहा- शेख अब्दुल्ला की बातों को उनके ही शब्दों में समझने की जरूरत है.

“उन्होंने संविधान सभा को संबोधित किया और मैं कोट करता हूं “आम तौर पर, भारत के विभाजन को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों के तहत जम्मू और कश्मीर का हमारा रियासत पाकिस्तान का हिस्सा होना चाहिए था, लेकिन हमने भारत को धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिकता और जम्मू और कश्मीर के नागरिकों के प्रति उनकी परवाह के कारण चुना” ये वो बात थी जो शेख अब्दुल्ला ने संविधान सभा से कहा था. आज जो हम देख रहे हैं वो उस भाषण और उस सार से बिल्कुल उलट है.” 
कपिल काक, रिटायर्ड एयर वाइस मार्शल

कपिल काक कश्मीरी हैं. उनकी पैदाइश और पढ़ाई-लिखाई कश्मीर में हुई है. वो 17 साल की उम्र में वायु सेना में शामिल हुए थे और लगभग 40 सालों तक सेवा दी.

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कश्मीरियों को स्पेशल स्टेटस का अधिकार क्यों मिले? इस सवाल के जवाब में कपिल कहते हैं,

लोकतंत्र, संघवाद और संविधान ने लिखित और मौखिक रूप से, कश्मीरी लोगों को गारंटी दी है. इसमें जम्मू और लद्दाख के लोग शामिल हैं. निश्चित तौर पर उनकी पहचान सुरक्षित है. कश्मीरियों में पहचान की भावना बहुत मजबूत है. आप कह सकते हैं कि ये उप-राष्ट्रवाद है, आप कह सकते हैं कि ये राष्ट्रवाद का दमन है, लेकिन उन्होंने उस समय भारत सरकार के साथ समझौते के संदर्भ में वो सब कुछ किया है, जिससे उनकी स्वायत्तता का सम्मान किया जाए.  ये स्वायत्तता इस बात की स्वीकार्यता है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों में उनकी पहचान को लेकर विशेष रुझान है. 

वो कहते हैं कि लोकतांत्रिक दृष्टि से लोगों की इच्छाओं का पता लगाने का तरीका होता है. आर्टिकल 370 को लेकर फैसला लेने का भी एक तरीका होना चाहिए था.

उनके मुताबिक,

हर पांच साल में एक सरकार का चुनाव किया जाए, एक विशेष जनमत संग्रह के जरिये कश्मीर के लोगों से पूछा जाए- जो हिस्सा हमारे नियंत्रण में है- आप अनुच्छेद 370 को जारी रखना चाहते हैं या नहीं? 

वो बताते हैं कि पिछले साल भंग विधानसभा में, 87 में से 55 विधायक जो कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी से थे, वो जम्मू-कश्मीर और देश के बाकी हिस्सों के बीच विश्वास के तौर पर अनुच्छेद 370 को जारी रखना चाहते थे. इन 55 लोगों का चुनाव, चुनाव आयोग की निगरानी में किया गया था.

लेकिन 370 का इस तरह हटाया जाना पूरी तरह से अलोकतांत्रिक, अवैध है. ये संवैधानिक रूप से खामियों से भरा है. असल में, ये एक तरह की हैवानियत है.

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