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गुजरात जीती, पहाड़ पर फिसली, दिल्ली में भटकी BJP- बढ़ा या घटा ब्रांड मोदी?

Himachal Election में पीएम मोदी ने जहां रैलियां कीं, 75 फीसदी सीट हारी बीजेपी

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Election Results: गुरुवार का दिन चुनावी राजनीति के लिहाज से भारत में उथल-पुथल भरा रहा है. एक तरफ बीजेपी गुजरात में ऐतिहासिक बढ़त बनाने में कामयाब रही, तो दूसरी तरफ हिमाचल में कांग्रेस ने सत्ता का आंकड़ा छूने में कामयाबी पाई.

गुजरात में आम आदमी पार्टी ने भी कड़ी मेहनत की थी, पार्टी खाता खोलने में तो कामयाब रही, पर पंजाब जैसा प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई. लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए संतोषजनक यह रहा कि एक दिन पहले पार्टी बीजेपी के बीते तीन चुनावों के गढ़ दिल्ली एमसीडी को ढहाने में कामयाब रही थी.

क्या मोदी ब्रॉन्ड का असर कम हुआ?

हिमाचल में जहां PM ने प्रचार किया, 75 फीसदी सीट बीजेपी हारी

अगर ताजा तीन चुनावों को देखें, तो इनमें बीजेपी के हाथ से दो में सत्ता गई है. जबकि हिमाचल चुनाव में प्रधानमंत्री की सक्रियता साफ देखी जा सकती थी. लेकिन नतीजों के हिसाब से मोदी ब्रॉन्ड उतना कारगर साबित नहीं हुआ.

बागियों को मैनेज करने के लिए प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत कोशिश की थी. फतेहपुर के बागी कृपाल सिंह परमार को पीएम का किया गया फोन काफी वायरल हुआ था. लेकिन पीएम की रिक्वेस्ट के बावजूद परमार पीछे नहीं हटे, उल्टा इस सीट से अब बीजेपी हार भी गई.

बता दें प्रधानमंत्री मोदी ने हिमाचल जैसे अपेक्षाकृत छोटे राज्य के चुनाव में चार रैलियां की थी. 5 नवंबर को प्रधानमंत्री ने सुंदरनगर और सोलन में सभाएं कीं, जबकि 9 नवंबर को पीएम चंबा और सुजानपुर गए थे. लेकिन लगता है कि कई राज्यों में करिश्मा करने वाली पीएम की लोकप्रियता भी हिमाचल में जारी एंटी इंकमबेंसी को नहीं दबा पाई और 1985 के बाद सरकार ना दोहराने की परिपाटी जारी रही.

इतना ही नहीं, पूरे प्रदेश में प्रभाव को छोड़िए,पीएम ने जहां चार सभाएं की थीं, उनमें से तीन बीजेपी हार गई.

सिर्फ सुंदरनगर में बीजेपी के राकेश कुमार जीतने में कामयाब रहे. जबकि सोलन में बीजेपी कैंडिडेट राजेश कश्यप 3000 से ज्यादा वोट से हार गए. वहीं सुजानपुर में कांग्रेस के प्रत्याशी राजिंदर सिंह ने बीजेपी के रंजीत कुमार राणा को 399 वोट से करीबी शिकस्त दी. चंबा में तो कांग्रेस प्रत्याशी नीरज नायर ने बीजेपी की नीलम नैय्यर को 7782 वोटों से हराया.

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दिल्ली एमसीडी में ढहा बीजेपी का गढ़

दिल्ली में तीन नगर निगमों के एकीकरण और परिसीमन के बाद यह पहला चुनाव था. बीते तीन चुनाव बीजेपी मजबूती से जीतती आ रही थी. चुनावी पंडितों के मुताबिक, बीजेपी समर्थकों को आशा थी कि नए परिसीमन के बाद उन्हें बढ़त हासिल होगी. एकीकरण के बाद कुल 272 सीटों को घटाकर 250 कर दिया गया था.

लेकिन इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी से 77 सीटें छीनने में कामयाबी पाई, कुल मिलाकर आप 134 सीटें जीती और 125 के बहुमत के आंकड़े को आसानी से पा लिया. बीजेपी सिर्फ 104 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई. ध्यान रहे यह वही दिल्ली है जहां तीन साल पहले हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने सभी 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी. तब पूरे देश में मोदी लहर थी, तो माना गया कि दिल्ली का परिणाम भी इसी हवा का नतीजा था.

लेकिन लगता है अब दिल्ली का वोटर मन बना चुका है, पहले विधानसभा और अब एमसीडी के नतीजों से तो कम से कम ऐसा ही लगता है कि लोकल मुद्दों पर उसकी पहली पसंद आम आदमी पार्टी है.

लेकिन गुजरात में बीजेपी का ऐतिहासिक प्रदर्शन

इन चुनावों में बीजेपी के लिए सब बुरा नहीं रहा. गुजरात में पार्टी को ऐतिहासिक जनादेश मिला. 182 सीटों वाली विधानसभा में पार्टी ने 156 सीटें जीती. कांग्रेस सिमटकर 17 सीटों पर आ गई है. पहली बार चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी भी 5 सीटें जीतने में कामयाब रही है.

गुजरात में प्रधानमंत्री ने जिन 14 जिलों में रैलियां की थीं, उनमें 83 सीटें आती हैं, इनमें से बीजेपी 85 फीसदी मतलब, 71 सीट जीतने में कामयाब रही है. तो यहां तो मोदी प्रभावी नजर आते हैं. यहां तक कि बीजेपी मुस्लिम बहुल 10 सीटों में से 8 जीतने में कामयाब रही. लेकिन क्या यह सिर्फ मोदी ब्रांड की कहानी है.

दरअसल यहां पेंच है. गुजरात बीते दो दशकों से बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ है. लगभग सारे एग्जिट पोल में भी पार्टी की एकतरफा जीत की भविष्यवाणी कर दी गई थी. कुल मिलाकर गुजरात में पीएम मोदी के ब्रॉन्ड के अलावा भी कई दूसरी चीजें थीं, हालांकि होम स्टेट होने के चलते उन्हें वहां विशेष लोकप्रियता तो हासिल है ही.

तो कहा जा सकता है कि बीजेपी, खासतौर पर ब्रॉन्ड मोदी देश के हालिया राजनीतिक माहौल में उतना असरदार नहीं रहा है. आखिर पिछले प्रदर्शनों को देखते हुए ब्रॉन्ड मोदी से अपेक्षाएं भी ज्यादा होती हैं.

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