अजय यादव और गयासुद्दीन सिद्दीकी दोनों बचपन के दोस्त है. गयासुद्दीन, अजय को अपना छोटा भाई बताते है. दोनों साथ में कॉलेज की पढ़ाई की और अब अपने-अपने व्यवसाय में व्यस्त हैं. अक्सर दोनों की मुलाकात होती रहती है. हर पर्व-त्योहार एक दूसरे के साथ मिलकर मनाते है.
किसी भी परेशानी में किसी एक को घर से दूर होने पर दूसरा उनके घर जाकर मदद करते हैं.
गयासुद्दीन कहते है "बनारस के मोहल्ला में कुछ लोग उस तरह के मानसिकता के होंगे लेकिन हम लोगों को कभी कुछ पता ही नही चला. जहां हमलोग रहते है वहां कभी मंदिर-मस्जिद को लेकर कोई तनाव नही हुआ.
1992 में जब बाबरी मस्जिद टूटा था तब शहर में थोड़ा तनाव था लेकिन हम लोगों को वैसा कुछ महसूस नही हुआ.अजय यादव
गयासुद्दीन आगे कहते हैं ज्ञानवापी के मुद्दे पर बस टीवी और पेपर में दिख रहा है, जमीनी हकीकत में कुछ नही है. सब अपने-अपने काम मे व्यस्त हैं, रोजी-रोटी में लगे हैं.
मीडिया में चल रहा हिन्दू-मुस्लिम टॉपिक से तंग आकर अजय एक साल पहले टीवी देखना छोड़ दिए.
कोरोना में सभी धर्म के लोग साथ थे. भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सभी धर्म के लोगों को चाहिए. मुझे नही लगता कि ज्ञानवापी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण मुद्दा है.अजय यादव
मन्दिर-मस्जिद का मुद्दा 2024 की तैयारी
द क्विंट से गयासुद्दीन कहते है ये सब 2024 के चुनाव के लिए है. थोड़े दिन पहले यूपी चुनाव में हिजाब का मुद्दा था. चुनाव होते ही हिजाब का मुद्दा गायब हो गया.
अजय और गयासुद्दीन दोनों दोस्त ज्ञानवापी मुद्दे को कोई जरूरी मुद्दा नही मानते हैं. दोनों का कहना है कि नेता राजनीति के चक्कर में माहौल बिगाड़ रहे हैं.
रोजगार खत्म हो रहा है. लोगों को समझना चाहिए. दो साल से कोरोना के दौरान सब लोग बैठ कर जमापूंजी खा रहे थे. अब अर्थव्यवस्था सुधर रही थी और फिर ये मुद्दा ला दिया. आखिर लोग देश को कहाँ ले जाना चाहते है.गयासुद्दीन सिद्दकी
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