कांग्रेस की हालत पर एक कवि ने लिखा है..
हाय रे मुहब्बत की दुकान
हिमाचल में मंत्री बोल रहे भीड़ की जुबान
कभी ठेले तो कभी दुकानों पर लगाए जा रहे निशान
कांग्रेसी मंत्री, योगी मॉडल की कर रहे गुणगान
हाय रे मोहब्बत की उलटी दुकान..
कवि यहां ये कहना चाह रहा है कि कांग्रेस जिस योगी मॉडल के खिलाफ थी उसके नेता उसी प्रोडक्ट की मार्केटिंग में लगे हैं.. इसलिए मुहब्बत की दुकान से जनता पूछ रही है जनाब ऐसे कैसे?
सवाल पूछना क्यों जरूरी है इसे हिमाचल प्रदेश के जरिए ही समझते हैं. यहां बाहरी बनाम हिमाचली के बहाने एक खास धर्म के लोग निशाने पर हैं. गरीब फेरी वाले का धर्म ढूंढा जा रहा है, मस्जिदों को गिराने के लिए भीड़ सड़कों पर है.. कभी कथित लव जिहाद की कहानी बनाई जा रही है.. और इन सबके बीच कांग्रेस सरकार के मंत्री विक्रमादित्या सिंह और कुछ विधायक बीजेपी के ब्रांड एम्बेसेडर बनने की राह पर जाते दिख रहे हैं.. यानी हिमाचल में मोहब्बत की दुकान पर नफरत का सामान क्यों और कैसे बिक रहा है? बताते हैं...
पहले थोड़ा बैकग्राउंड देखिए...
जुलाई 2024 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर प्रशासन ने कांवड़ यात्रा के पहले आदेश दिया था कि सभी होटल-ढाबों, ठेलों के मालिकों को उनका नाम दुकान के बोर्ड पर लिखना होगा.
तब मोहब्बत की दुकान वाली कांग्रेस के नेताओं ने आपत्ति जताई, निंदा की और इसे विभाजनकारी कदम बताया.
मामला अदालत पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की दो जजों वाली बेंच ने कांवड़ यात्रा के रास्ते पर दुकानदारों के नाम सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश प्रशासन के आदेश पर रोक लगा दी.
लेकिन कुछ हफ्तों बाद हिमाचल के कुछ कांग्रेसी नेताओं को बीजेपी मॉडल जंच गया.
हिमाचल के शहरी विकास मंत्री विक्रमादित्य सिंह मीडिया के सामने आए और कहा,
"हमने बैठक की थी. इसमें यह फैसला लिया गया कि जितने भी स्ट्रीट वेंडर्स हैं, चाहे वो कोई सामान बेच रहे हैं खासकर खाने-पीने का, लोगों ने बहुत सारी चिंताएं और आशंकाएं व्यक्त की थी. जिस तरह से उत्तर प्रदेश में रेहड़ी-पटरी वालों के लिए यह अनिवार्य किया गया है कि उनको अपना नाम-आईडी लगानी होगी, तो हमने भी इसे यहां मजबूती से लागू करने का निर्णय लिया है."
हालांकि, बाद में जब सोशल मीडिया पर मोहब्बत की दुकान के हाईकमान राहुल गांधी से सवाल पूछना शुरू किया और बताया कि आपकी दुकान पर नफरत की फफूंद लग रही है, तब जाकर कांग्रेस को कहना पड़ा की स्ट्रीट वेंडर को अपने ठेले पर ठेले के मालिक का नाम लिखने की जरूरत नहीं है. ऐसा कोई सरकारी आदेश निकला ही नहीं है.
गोकशी के आरोप में दुकान में तोड़-फोड़
ये तो एक घटना हुई.. अब कुछ और कहानी सुनिए और देखिए कैसे हिमाचल में नफरत का कारोबार फैल रहा है लेकिन मोहब्बत वाली सरकार चेक प्वाइंट पर चेकिंग भी नहीं कर रही है.
बात है जून 2024 की. यूपी के शामली का रहने वाला जावेद हिमाचल प्रदेश के नाहन में व्यापार करता है.
15 जून को वो शामली लौटता है. बकरीद के दिन उसके व्हाट्सऐप स्टेट्स पर कुर्बानी देते तस्वीरें शेयर होती हैं.
नाहन में एक बड़ी भीड़ जावेद पर गोकशी का आरोप लगाते उग्र हो जाती है.
धार्मिक के साथ-साथ आपत्तिजनक नारे लगाती भीड़ जावेद के साथ बाहरी राज्यों से आए बाकी मुस्लिम व्यापारियों के दुकान पर तोड़-फोड़ करती है. उन्हें यहां से जाने का अल्टीमेटम देती है.
फिर शामली पुलिस पाती है कि दरअसल जावेद ने जो कुर्बानी दी वो परमिटेड जानवर की दी गई. लेकिन हिंसक भीड़ ने कानून को ताक पर रख दिया था.. क्यों नहीं हिंसक भीड़ पर कोई एक्शन हुआ?
मस्जिद के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन
एक और घटना देखिए... हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में 11 सितंबर 2024 को हिंदूवादी संगठन ने संजौली मस्जिद को अवैध बताते हुए गिराने के लिए प्रदर्शन किया. नफरती नारे लगे.. हिंदू जागरण मंच ने दावा किया कि मस्जिद को सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बनाया गया है और “बाहरी लोगों” को वहां शरण दी जा रही है. हालांकि मस्जिद में बने तीसरे और चौथे फ्लोर को लेकर मामला कोर्ट में है.. न कि पूरी मस्जिद पर विवाद है.
यही नहीं शिमला की संजौली मस्जिद के बाद मंडी में भी मस्जिद को लेकर हंगामा शुरू हो गया. 13 सितंबर को 'अवैध ढांचे' के विरोध में हिंदू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. मस्जिद के बाहरी इलाके में सड़कों पर हनुमान चालीसा का जाप करने लगे. प्रदर्शनकारी भीड़ को रोकने के लिए पुलिस ने वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया.
आप खुद सोचिए अगर कोई अवैध कंसट्रक्शन है तो नगर निगम या सरकार समझेगी.. लेकिन हिमाचल में हिंदूत्वादी संगठन फैसला करने पर आमादा हैं..
इस मामले में मंडी नगर निगम आयुक्त की अदालत ने अवैध संरचना को 30 दिनों के भीतर हटाने का आदेश दिया था. जिसके बाद मस्जिद समिति के सदस्यों ने विवादित संरचना को खुद से तोड़ दिया.
एक और घटना देखिए...
16 सितंबर को हिमाचल के सोलन में व्यापार मंडल व हिंदू संगठनों ने विरोध रैली निकाली. मुसलमानों की दुकान पर लाल निशान लगाए. मुसलमानों से लेनदेन करने वाले हिंदुओं के भी बहिष्कार का ऐलान किया.
नारे लगे-
"मुल्ले सुल्ले नही चलेंगे."
"भारत में रहना होगा, जय श्री राम कहना होगा..."
ऐसी ही घटना कुल्लू में देखने को मिली.
लेकिन ऐसे भड़काऊ नारा लगाने वालों पर कोई एक्शन नहीं हुआ. मोहब्बत की दुकान की सरकार ऐसे नफरती भीड़ पर धार्मिक भावना भड़काने से लेकर हिंसा की कोशिश को लेकर कानून का सहारा क्यों नहीं लेती?
हिमाचल में मुसलमानों को कैसे निशाना बनाया जा रहा है कुछ और घटनाएं देखिए.
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिले के नगरोटा में 26 सितंबर को शिवलिंग तोड़ने की घटना सामने आई. खबर फैली... फिर क्या था हिंदूत्ववादी संगठन को मौका मिला, हंगामा शुरू हुआ. बिना जांच मुस्लिम समुदाय पर दुकान मकान खाली करने का दबाव बनने लगे.
अब पुलिस बता रही है कि जांच से पता चला है कि शिवलिंग निशा देवी ने तोड़ा है. निशा पहले भी ऐसा कर चुकी है. लेकिन सवाल है कि पुलिस ने अफवाह फैलाने वालों पर एक्शन क्या लिया? क्यों अफवाह और नफरत फैलाने वाले जेल के पीछे नहीं पहुंच रहे?
सुर्खियों में कांग्रेस नेताओं के बयान
अब बात कांग्रेस की. हिमाचल में कभी कांग्रेस की सरकार से इस्तीफा देने की चाहत रखने वाले और लोकसभा चुनाव में बीजेपी की कंगना रनौत से हार का सामना करने वाले विक्रमादित्या सिंह वक्फ पर बीजेपी की लाइन पर बयान दे रहे हैं, तो कभी हिमाचल की विधानसभा में खड़े होकर कांग्रेसी विधायक अनिरुद्ध सिंह कथित लव जिहाद और रोहिंग्या जैसे मुद्दे की एंट्री करा रहे हैं.
क्या कांग्रेस की यही लाइन है? अगर कांग्रेस मोहब्बत बांटने निकली है फिर हिमाचल सरकार नफरत फैलाने वाले कुछ उपद्रवियों की भीड़ पर कड़ा एक्शन क्यों नहीं लेती? इसलिए मोहब्बत चाहने वाली दुनिया पूछ रही है जनाब ऐसे कैसे?
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