उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद के लोनी में मदरसा जामिया रशीदीया की स्थापना वर्ष 1999 में केवल 59 छात्रों के साथ की गई थी, जिसका उद्देश्य आर्थिक रूप से गरीब मुस्लिम बच्चों को शिक्षित करना था. दिल्ली से करीब 25 किलोमीटरदूर इस मदरसे में अब 800 से ज्यादा छात्र 22 शिक्षकों के स्टाफ के साथ पढ़ते हैं.
केंद्र की मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत नियुक्त होने के बाद राम खिलाड़ी पिछले 15 साल से मदरसे में हिंदी पढ़ा रहे हैं.
"मदरसों में पढ़ाने में कुछ भी गलत नहीं है और मैं इसका एक उदाहरण हूं. हम मदरसे में वही शिक्षा देते हैं जो आप दूसरे स्कूलों में देते हैं. हमारे बच्चे यहां नकाब पहनते हैं, हम प्रार्थना या कलमा पढ़ते हैं. जैसे हर स्कूल के अपने नियम होते हैं, हमारे मदरसे के भी नियम होते हैं. यहाँ क्या अलग है?"राम खिलाड़ी,प्रिंसिपल, मदरसा जामिया रशीदीया
राम खिलाड़ी पिछले 25 सालों से अलग-अलग स्कूलों में पढ़ा रहे हैं. मदरसे के छात्रों द्वारा प्यार से 'पंडित प्रिंसिपल सर' कहे जाने वाले खिलाड़ी का कहना है कि उन्होंने कभी भी कोई धार्मिक अंतर या कोई बाधा महसूस नहीं की. उनका कहना है कि मदरसा और उसके कर्मचारी एक परिवार की तरह हैं.
"जो हम सुनते हैं वह झूठ हो सकता है, जो हम देखते हैं वह भी झूठ हो सकता है। जांच करना सही तरीका है."राम खिलाड़ी,प्रिंसिपल, मदरसा जामिया रशीदीया
मदरसे में कुरान की शिक्षाओं के अलावा हिंदी और अंग्रेजी जैसी भाषाएं भी पढ़ाई जाती हैं. पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा 1994 में शुरू की गई आधुनिकीकरण योजना के तहत गणित, सामाजिक अध्ययन और विज्ञान जैसे विषयों की शुरूआत ने भी छात्रों को प्रतियोगी प्रवेश परीक्षाओं और नौकरियों की तैयारी में मदद की है.
हाशिए पर और गरीब पृष्ठभूमि के मुस्लिम बच्चों के लिए निजी स्कूलों की पहुंच से बाहर, मदरसा अक्सर शिक्षा का एकमात्र स्रोत होता है. शिक्षकों का कहना है कि यहां के छात्रों के बड़े सपने हैं, सेना में शामिल होने का लक्ष्य, शिक्षक, डॉक्टर, वकील, आईएएस अधिकारी और भी बहुत कुछ.
छात्र देश के वर्तमान परिदृश्य और इसके प्रति अपने दृष्टिकोण पर भी विचार व्यक्त करते हैं .
"यहां हमारा समाज मिश्रित है. यहां मुस्लिम और गैर-मुसलमान हैं. कोई मतभेद नहीं हैं. अचानक, पूरे देश में बड़े मुद्दे सामने आते हैं. केवल तब ही अंतर महसूस होता है."मिज्बा नाज, 16, साइंस स्टूडेंट
पहली नजर में आपको सांप्रदायिक सौहार्द की एक मजेदार कहानी नजर आती है. लेकिन ज्यादातर कहानियों की तरह यहां भी सब कुछ ठीक नहीं है. मदरसा आधुनिकीकरण योजना के तहत नियुक्त राम खिलाड़ी व अन्य शिक्षकों को केंद्र सरकार द्वारा पिछले पांच साल से वेतन नहीं दिया गया है.
वह केवल 3,000 रुपये पर जीवित है, जिसे राज्य सरकार द्वारा उसके कुल मासिक वेतन 15,000 रुपये का भुगतान किया जाता है. उन्हें केंद्र सरकार से लगभग 7 लाख रुपये के अपने बकाया का इंतजार है.
खिलाड़ी विधुर हैं और उनके दो बच्चे हैं- जिन्होंने एक ही मदरसे में सातवीं कक्षा तक पढ़ाई की है. इस वेतन पर जीवित रहना मुश्किल हो गया है और कभी-कभी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना भी मुश्किल हो जाता है, राम खिलाड़ी अफसोस जताते हैं.
लेकिन चेहरे पर मुस्कान के साथ राम खिलाड़ी का कहना है कि वह अपने आसपास के लोगों के प्यार पर जिंदा है.
"मुझे यहां लोनी में बहुत सम्मान मिलता है. मैं जहां भी जाता हूं, वे मुझे बधाई देते हैं. वे मुझे अपने घर ले जाते हैं. कितना प्यार है. अब आप मुझे बताएं, इस सब प्यार के बीच अगर कोई नफरत के बीज बोने की कोशिश करेगा तो हम इसे कैसे बर्दाश्त करेंगे? आप हमसे इसे कैसे स्वीकार करने की उम्मीद करते हैं?"राम खिलाड़ी, प्रिंसिपल, मदरसा जामिया रशीदीया
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