राष्ट्रीय राजधानी में पिछले कानून के अनुसार, एक बच्चे को जाति प्रमाण पत्र केवल पिता या पैतृक पुरुष रिश्तेदार के जाति प्रमाण पत्र के आधार पर जारी किया जाता था. लेकिन गीता देवी की तीन साल की लंबी लड़ाई ने इसे बदल दिया है.
बाल विवाह, अलगाव, और सिंगल मदर का कलंक
इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश की रहने वाली गीता देवी की शादी महज 14-15 साल की उम्र में कर दी गई थी.
उनके पहले पति की मृत्यु के बाद, उनकी शादी देवर से कर दी गई, जिसने दहेज के लालच में गीतो को छोड़ दिया. उस वक्त गीता का बेटा एक-डेढ़ साल का रहा होगा.
गांव में कोई काम न होने के कारण, वह रोजगार की तलाश में दिल्ली आ गई और एक कारखाने में काम करना शुरू कर दिया, जिसमें महिलाओं को जींस के धागे काटने का काम दिया जाता है.
जाति प्रमाण पत्र के लिए एक मां का संघर्ष
अपने बेटे को मिलने वाले लाभों के बारे में जानने के बाद, गीता देवी ने स्कूल में अपना जाति प्रमाण पत्र बनवाकर योजनाओं का लाभ उठाने की कोशिश की, लेकिन अधिकारियों ने उसके पति के कागजात उससे मांगे. जो गीता के पास नहीं थे, यहां से बेटे के जाति प्रमाण पत्र के लिए गीता का संघर्ष शुरू हुआ. गीता बताती हैं कि,
सबको वजीफा मिलता था लेकिन मेरे बेटे को नहीं मिलता था. मैंने जब स्कूल में कहा तो उन्होंने जाति प्रमाणपत्र मांगा, लेकिन मेरे कागजों पर मेरे बच्चे का जाति प्रमाणपत्र नहीं बना, मैं झंडेवालान के ऑफिस में भी गई. वहां मैं दिनभर लाइन में लगी रहती थी, लेकिन अधिकारी मेरे कागज फेंक देते थे कि इसके पिता या चाचा के कागज लेकर आओ जो मेरे पास नहीं थे.गीता
इस लंबे संघर्ष को उस वक्त धार मिली जब किसी ने गीता को आप विधायक विशाल रवि के पास भेजा. उन्होंने ये मुद्दा विधानसभा में उठाया, जिसके बाद आखिरकार 4 जनवरी 2022 को दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसौदिया ने सिंगल मदर के कागजों के आधार पर गीता को जाति प्रमाण पत्र सौंपा
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