ADVERTISEMENTREMOVE AD

‘भारत में बेरोजगारी संकट जितना दिख रहा है, उससे काफी बड़ा’

क्विंट की सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) के चीफ महेश व्यास से खास बातचीत

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

देश ‘रोजगार संकट’ से जूझ रहा है. इस बेरोजगारी की समस्या का समाधान क्या है? क्या मोदी सरकार बेरोजगारी के डेटा को मानने क्यों नहीं चाहती? इन सारे सवालों पर क्विंट ने सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (CMIE) के चीफ महेश व्यास से बात की.

महेश व्यास का कहना है कि भारत में बेरोजगारी दर पिछले सालों के मुकाबले काफी ज्यादा है. पहले बेरोजगारी दर 2-3 फीसदी होता था, अब ये 8 से 8.5 फीसदी तक पहुंच गया है. ये गंभीर समस्या है.

महेश व्यास ने कहा, "न सिर्फ बेरोजगारी दर बढ़ी है बल्कि लेबर पार्टिसिपेशन रेट (कितने लोग काम करने के लिए राजी हुए) भी घट रहा है. अब अगर कम लोग काम करने के लिए राजी हैं, उसके बावजूद बेरोजगारी रेट बढ़ रहा है, तो ये समस्या और भी ज्यादा गंभीर बन जाती है. हमें लेबर पार्टिसिपेशन रेट को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए और साथ ही बेरोजगारी दर भी न बढ़ें."

बेरोजगारी की समस्या का समाधान क्या है?

महेश व्यास का कहना है कि बेरोजगारी की समस्या से अगर हमें निकलकर आना है, तो निवेश बढ़ाना होगा. निवेश ही मात्र एक तरीका है जिससे लोगों को नौकरी मिल सकती है.

सवाल ये है कि लोग निवेश क्यों नहीं करते हैं? प्राइवेट कंपनियां निवेश से अपने हाथ खींच रही हैं. इसका कारण ये है कि इकनॉमी में डिमांड काफी घट गई है. पहले से डिमांड इतनी कम हो गई है कि कंपनियों के पास स्टॉक पड़ा हुआ है. जब तक माल नहीं बिकेगा, तब तक कंपनियां निवेश नहीं करेंगी.
महेश व्यास, चीफ, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी
जरूरी है कि डॉमेस्टिक डिमांड को किसी तरह ग्रोथ मिल जाए. इसका अभी एक ही तरीका नजर आ रहा है कि सरकार को आर्थिक कदम उठाने पड़ेंगे. एक बार डॉमेस्टिक डिमांड बढ़ जाए, उसके बाद निवेश भी आने शुरू हो जाएंगे और बेरोजगार दर भी कम हो जाएगी.
महेश व्यास, चीफ, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मोदी सरकार को बेरोजगारी का डेटा पसंद नहीं ?

मोदी सरकार ने उपभोक्ता खर्च पर एनएसओ रिपोर्ट को जारी नहीं किया, जिसमें बताया गया था कि 4 दशक में पहली बार उपभोक्ता खर्च घटा है. इस पर महेश व्यास ने कहा कि सरकारी आंकड़े पब्लिक में जारी करना काफी जरूरी है, उन्हें रिजेक्ट नहीं करना चाहिए.

सर्वे के रिजल्ट को रिजेक्ट कर देना एक नई प्रथा बन गई है. ये बिल्कुल सही नहीं है. या तो हमें सर्वे करने के तरीके में सुधार करना चाहिए या उसके रिजल्ट को स्वीकार कर लेना चाहिए. ऐसा नहीं हो सकता है कि हमने सोच-समझकर एक सर्वे किया और फिर उसका रिजल्ट आ जाने के बाद उसे अस्वीकार कर देते हैं.
महेश व्यास, चीफ, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी

महेश व्यास ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि ऐसी लगता है कि अगर सर्वे हमारे ‘मन की बात’ कहेगा, तभी उसे स्वीकार किया जाएगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×