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CAA का विरोध कर रहे लोगों के कपड़े नहीं, अंदर के इंसान को देखिए

15 दिसंबर को पीएम ने झारखंड के दुमका की रैली में कहा -ये आग लगाने वाले कौन है ये उनके कपड़ों से ही पता चल जाता है.

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

15 दिसंबर को पीएम मोदी ने झारखंड के दुमका की रैली में कहा - 'ये आग लगाने वाले कौन है ये उनके कपड़ों से ही पता चल जाता है.'

ये बात उन्होंने नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन को लेकर कही. हुकूमत की रवायत है कि वो अपने खिलाफ, अपने फैसलों के खिलाफ उठने वाली आवाजों को कम आंकता है, उसे कमतर बताता है. एक रंग देकर उस आवाज को बेरंग करने की कोशिश करता है. लेकिन इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन की जो तस्वीरें देश भर से आ रही हैं, जिन-जिन लोगों के और जैसे-जैसे बयान आ रहे हैं, वो कुछ और ही तस्वीर बना रहे हैं.

अब ये जानते हैं कि किस-किसने प्रदर्शन किया है, किसने नागरिकता कानून के खिलाफ क्या कहा है? वीडियो को आखिर तक देखिएगा और खुद तय कीजिएगा कि क्या इन तस्वीरों में हर तरह के रंग नहीं हैं? बयान देने वाले हर ढंग के लोग नहीं हैं? सोचिएगा कि ये प्रदर्शन क्या सिर्फ एक धर्म विशेष के लोगों का है?

अगर किसी को लगता है कि नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन सिर्फ जामिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी जैसी जगहों पर हो रहा है तो जहां-जहां प्रोटेस्ट हुए हैं उनके नाम सुन लीजिए...मद्रास यूनिवर्सिटी, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी, कोच्चि यूनवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, बीएचयू, लखनऊ यूनिवर्सिटी, IIT मुंबई, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइसेंसज जैसी यूनिवर्सिटी और संस्थान भी जामिया में हुई पुलिसिया कार्रवाई और नागरिकता कानून के विरोध में उतर आए हैं यानी हर जगह से छात्र युवा प्रदर्शनों की तस्वीरें सामने आ रही हैं.

कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस पार्टी जैसे विपक्षी पार्टियां भी इसके खिलाफ सड़क पर उतरी हैं.इ नके नेताओं के तीखे बयान भी बयान भी आए हैं..ममता ने कहा कि मेरी लाश पर गुजरकर नागरिकता कानून लागू होगा. प्रियंका गांधी ने कहा - देश गुंडों की जागीर नहीं. सोनिया गांधी ने कहा - मोदी सरकार लोगों की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है...लेकिन ये सब तो वो लोग हैं, जिन्हें सरकार इस प्रदर्शन का क्रेडिट या अपने अंदाज में दोषी बता रही है..लेकिन नागरिकता कानून के खिलाफ आवाज उठाने वालों में सिर्फ कांग्रेस और TMC नहीं है.

उद्धव ठाकरे ने जलियांवाला बाग कांड से की छात्रों पर कार्रवाई की तुलना

नागरिकता कानून के खिलाफ सबसे मुखर रूप में सामने आए उद्धव ठाकरे..वही उद्धव जो कहते हैं कि वो कभी हिंदुत्व का साथ नहीं छोड़ने वाली पार्टी शिवसेना से हैं...उद्धव ठाकरे ने तो छात्रों पर हुई कार्रवाई की तुलना जलियांवाला बाग कांड से कर दी. उद्धव ने कहा, जामिया में जो हुआ, वह जलियांवाला बाग जैसा है. छात्र एक 'युवा बम' की तरह हैं. इसलिए हम केंद्र सरकार से अनुरोध करते हैं कि वो छात्रों के साथ ऐसा न करें."

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा है - जब संसद में हमारे पास जबरदस्त बहुमत होता है तो हमें लगता है कि हम सब कुछ कर सकते हैं लेकिन यहां हम गलत होते हैं. लोगों ने पहले कई बार ऐसे नेताओं को सजा दी है

कमल हासन कहते हैं-“ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये लोग जब युवा थे जो सत्ता में हैं, उन्होंने भी ठीक यही काम किया था. उन्होंने अपनी आवाज उठाई. युवाओं को राजनीतिक रूप से जागरूक होना होगा और नेता बनना होगा. इसमें कुछ भी गलत नहीं है.उन्हें ये समझना होगा, सवाल उठाने ही होंगे, राजनीति में दखल देना ही होगा, और जब इन सवालों का गला घोंट दिया जाएतो लोकतंत्र खतरे में है, आईसीयू में है.”

बॉलीवुड का एक हिस्सा हमेशा से सरकार को लेकर क्रिटिकल रहा है लेकिन इस बार कुछ नया हो रहा है. कुछ नई आवाजे उठी हैं. बॉलीवुड के युवा सितारे आयुष्मान खुराना कहते हैं - छात्रों के साथ जो हुआ उसे देखकर वो परेशान हूं और इसकी निंदा करता हूं. वो कहते हैं कि हम सभी को विरोध करने का अधिकार है.

एक ऐसे ही युवा सितारे राजकुमार राव कहते हैं, ‘छात्रों के मामले में पुलिस ने जिस तरह की हिंसा का सहारा लिया, मैं उसकी निंदा करता हूं. लोकतंत्र में नागरिकों शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार है. इसके साथ ही मैं किसी भी तरह की सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने की भी निंदा करता हूं. किसी भी समस्या का समाधान हिंसा नहीं है.

परिणीति चोपड़ा ने कहा है - ‘देश में जुबां खोलने वालों के साथ ये होगा तो यहां लोकतंत्र नहीं’. ये बयान और तस्वीरें दिखाती हैं कि नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन महज किसी एक धर्म, एक कॉलेज- यूनिवर्सिटी, एक खास तरह के कपड़े पहनने वालों का नहीं है. पैन इंडिया का प्रदर्शन है. जो युवा प्रदर्शन कर रहे हैं वो हमारे अपने हैं, कल के भारत की बुनियाद हैं...तो उनपर डंडे बरसाने के बजाय उनसे बात करने की जरूरत है...आज के कई नेता जो खुद छात्र आंंदोलनों की देन हैं, उन्हें छात्रों को डिस्क्रेडिट करने के बजाय उनकी बात सुनने की जरूरत है.

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