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'हम डरे हुए हैं, हमें घर जाना है': कश्मीर में रह रहे बिहारी मजदूरों की आपबीती

"बिहार में काम नहीं, कश्मीर में सेफ नहीं, जाएं तो जाएं कहां"

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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

जम्मू-कश्मीर में हाल ही में पांच प्रवासी मजदूरों की हत्या के बाद, दूसरे राज्यों से यहां रोजी-रोटी के लिए आए लोगों में डर का माहौल है.

बिहार के रहने वाले मोहम्मद शाहिद हुसैन कहते हैं, "हम यहां काम करने आते हैं. यहां हालात खराब हो गए तो हम कैसे रहेंगे? हम रोजी-रोटी कमाने के लिए कश्मीर आते हैं." दूसरे कई लोग हैं जो हुसैन जैसे ही डरे हुए हैं.

'स्थानीय लोगों में विश्वास के साथ कश्मीर आते हैं'

प्रवासी मजदूर मोहम्मद सलाउद्दीन ने क्विंट को बताया, "हमने इस महीने कई मुश्किलों का सामना किया है. हम मजदूर हैं. हम पूरे दिन काम करते हैं और फिर इस तरह के हमलों का सामना करते हैं. हम यहां के स्थानीय लोगों में विश्वास कर के कश्मीर आते हैं. पिछले दो हफ्ते से जो हो रहा है, वो नहीं होना चाहिए था."

कुलगाम जिले के वानपोह में बिहार के तीन मजदूरों पर हुए आतंकवादी हमलों की ओर इशारा करते हुए सलाउद्दीन ने कहा, "कल की घटना के बाद हम डरे हुए हैं." आतंकियों ने दो मजदूरों की हत्या कर दी है.

सलाउद्दीन ने कहा, "हम डर से भरे हुए हैं. अगर कोई व्यवस्था की जा सकती है तो हम घर लौटना चाहते हैं."

पिछले कुछ हफ्तों में जम्मू-कश्मीर में पांच प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई है. सहारनपुर के कारपेंटर सगीर अहमद, बिहार के मूल निवासी वीरेंद्र पासवान, राजा रेशी, जोगिंदर रेशी और अरविंद कुमार साह की हमले में मौत हो गई है.

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'इकलौता कमाने वाला था'- गोलगप्पे बेचने वाला अरविंद का परिवार

बिहार के रहने वाले अरविंद कुमार साह कश्मीर में गोलगप्पे बेचकर अपना गुजारा कर रहा था. 16 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर में आतंकियों ने उसपर गोली चला दी.

बिहार के बांका में साह के परिवार के एक सदस्य ने कहा, "वो वहां गोल-गप्पे बेचते थे. वो परिवार का इकलौता कमाने वाला था. हमारे पास और कुछ नहीं है."

जम्मू-कश्मीर में हाल ही में पांच प्रवासी मजदूरों की हत्या के बाद, दूसरे राज्यों से यहां रोजी-रोटी के लिए आए लोगों में डर का माहौल है.

बिहार के रहने वाले मोहम्मद शाहिद हुसैन कहते हैं, "हम यहां काम करने आते हैं. यहां हालात खराब हो गए तो हम कैसे रहेंगे? हम रोजी-रोटी कमाने के लिए कश्मीर आते हैं." दूसरे कई लोग हैं जो हुसैन जैसे ही डरे हुए हैं.मारे गए प्रवासी मजदूर के पिता देवेंद्र साह ने क्विंट को बताया, "उन्होंने उसका आधार कार्ड चेक किया और उसे गोली मार दी."

आतंकियों द्वारा की गई हत्याओं ने बड़े पैमाने पर हिंदुओं और सिखों को निशाना बनाया है, जिससे घाटी में अल्पसंख्यक समुदायों में भय पैदा हो गया है.
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मृतक के भाई सचिरानंद साह ने कहा, "आर्टिकल 370 को खत्म हुए इतने दिन बीत चुके हैं. केंद्र सरकार का वहां सुरक्षा का पूरा नियंत्रण है. इसके बावजूद, आतंकी आधार कार्ड की जानकारी के आधार पर लोगों को मार रहे हैं."

कोविड की खतरनाक दूसरी लहर में अपने एक और बेटे को खोने वाले देवेंद्र साह अपने परिवार की आर्थिक हालत को लेकर चिंता में हैं.

उन्होंने कहा, "हमें नौकरी चाहिए और परिवार के लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा चाहिए. मैं परिवार का पेट कैसे भरूं? मेरे बड़े बेटे की छह महीने पहले कोविड से मौत हो गई थी."

सहारनपुर के रहने वाले सगीर अहमद को पुलवामा में हुए हमले में गोली लग गई, जिसके बाद उनकी मौत हो गई. उनके एक रिश्तेदार ने न्यूज एजेंसी ANI को बताया कि वो कोविड महामारी के कारण पिछले एक साल से काम के लिए कश्मीर में रह रहा था.

अपनी चार बेटियों, एक बेटे और अपने परिवार को छोड़कर उन्हें कश्मीर जाना पड़ा था.

अहमद के भाई ने ANI को बताया, "पहले हमें कश्मीर पुलिस से फोन आया था. उन्होंने हमें वहां पहुंचने और अहमद के शव को लेने के लिए कहा था, लेकिन हम गरीब लोग हैं, हम कश्मीर कैसे जाएंगे?"

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बिहार में अपनों को वापस बुला रहे हैं लोग

बिहार के रहने वाले नीरज कुमार साह, जिनका भाई अपने शहर में नौकरी नहीं मिलने के कारण जम्मू-कश्मीर में बस गया है, ने क्विंट को बताया कि वो अब अपने भाई से वापस आने के लिए कह रहे हैं.

उन्होंने कहा, "मैंने अपने भाई को वापस आने के लिए कहा है. अगर सरकार ने यहां नौकरी दी होती, तो वो वहां नहीं जाते. वहां भी, वो सुरक्षित नहीं हैं. अब मजदूरों को निशाना बनाया जा रहा है, पहले आतंकवादी सुरक्षा बलों को निशाना बनाते थे."

नौकरी के लिए बिहार से कश्मीर जाने वाले दूसरे मजदूरों के परिवार भी अपनों की सुरक्षा के लिए परेशान हैं.

बिहार से महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, "मेरी बहू और पोता वहां हैं. हमने कल रात से कुछ नहीं खाया है. हमने कल रात उन्हें फोन किया और उन्हें वापस आने के लिए कहा."

बिहार के प्रवासी मजदूरों में अब आर्थिक संकट से ज्यादा डर अब अपने जीवन को लेकर है. चंद्रशेखर ने कहा, "हम डर में हैं. हम चाहते हैं कि हमारा परिवार वापस घर आ आए. हम किसी तरह नमक और रोटी पर जिंदा रह लेंगे."

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