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ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने का फैसला क्यों किया? 

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया है

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ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और वो अपने समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने के कगार पर है. अब सबके जेहन में एक सवाल है- सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने का फैसला क्यों लिया?

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इस बगावत की नींव दिसंबर 2018 में रखी गई थी, मध्य प्रदेश में बीजेपी को हराने के बाद कांग्रेस आला कमान ने सिंधिया को नजरअंदाज कर कमलनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठा दिया. राजस्थान में भी ऐसे ही हालात पैदा हुए थे और सचिन पायलट के समर्थक तो सरेआम बगावत पर उतर आए थे लेकिन उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया गया और बगावत थम गई.

सिंधिया ने खुल कर कुछ नहीं कहा, उपमुख्यमंत्री पद भी नहीं मांगा, लेकिन उनकी नाराजगी गई नहीं.

राहुल गांधी ने कहा कि ज्योतिरादित्य के लिए उन्होंने कुछ बड़ा सोचा है, लोकसभा चुनाव के लिए सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इंचार्ज बनाया गया और प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का, लेकिन लोकसभा चुनाव सिंधिया के लिए बहुत ही बुरा साबित हुआ, उन्हें अपने गढ़ गुना में हार का सामना करना पड़ा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस का सफाया हो गया.

उन्हें एक और झटका जुलाई में लगा जब राहुल गांधी ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया. राहुल, ज्योतिरादित्य सिंधिया के सबसे बड़े हिमायती थे और उनके अध्यक्ष पद छोड़ देने से कांग्रेस के ओल्ड गार्ड का हौसला और बुलंद हुआ और इनमें शामिल थे सिंधिया के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह.

इन दोनों दिग्गज नेताओं ने अपने आपसे मतभेद भुलाकर सिंधिया को पार्टी में साइडलाइन करने कि कोशिश की. इस बीच सिंधिया ने भी अपने नाराजगी के कुछ सबूत दिए, उन्होंने आर्टिकल 370 हटाए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की और अपने ट्विटर बायो से कांग्रेस को हटा दिया. उन्हें महाराष्ट्र चुनाव के लिए कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया लेकिन चुनाव खत्म होने से पहले वो देश से बाहर निकल गए. उन्हें आखरी झटका तब लगा जब कमलनाथ ने उनकी राज्यसभा सीट की मांग को ठुकरा दिया और उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने से भी इनकार कर दिया.

राहुल गांधी की गैरमौजूदगी में सिंधिया की पैरवी करने वाला कोई नहीं था, अब उनका जाना लगभग तय था. बीजेपी के लिए ये एक बहुत बड़ा मौका था और उन्होंने इसे नहीं गंवाया, सिंधिया को कांग्रेस से निकालकर वो कर्नाटक के बाद एक और राज्य कांग्रेस से छीनने की स्थिति में हैं.

अब अगर कमलनाथ कोई चमत्कार नहीं कर पाते हैं तो बीजेपी का प्लान कामयाब हो जाएगा, आने वाले दिनों में कांग्रेस को कई सवालों का जवाब देना पड़ेगा. कांग्रेस की कमान किसके हाथ में है और पार्टी किस दिशा में जा रही है? पार्टी की विचारधारा क्या है और वो बीजेपी का विरोध करने के लिए क्या कर रही है?

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