वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
देश कारगिल विजय दिवस का 20वां साल मना रहा है और शहीदों के माता-पिता अपने बच्चों के लिए इंसाफ की मांग कर रहे हैं.
कारगिल युद्ध के शुरुआती दिनों में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले कैप्टन सौरभ कालिया के माता-पिता आज भी उनके हस्ताक्षर वाला एक ‘चेक’ अपने बेटे की याद में सहेज कर रखे हुए हैं. सौरभ ने करगिल के लिए रवाना होने के दिन ही इस पर हस्ताक्षर किए थे.
कैप्टन सौरभ 1999 के करगिल युद्ध के दौरान शुरूआत में शहीद हुए सैनिकों में एक थे. वो भारतीय थल सेना के उन 6 जवानों में एक थे, जिनका क्षत विक्षत शव पाकिस्तान ने सौंपा था.
सौरभ कालिया के शव की स्थिति को देखने के बाद पूरे देश में आक्रोश की लहर फैल गई थी और इसे युद्धबंदियों को लेकर जेनेवा संधि का उल्लंघन बताया गया था.
जब 1999 में कैप्टन सौरभ कालिया और उनके 5 साथियों के साथ ये कांड हुआ और उस समय की सरकार कोई कार्रवाई करती तो हमारे सैनिकों के साथ दोबारा दुर्व्यवहार नहीं होता. सेना का मनोबल भी काफी ऊंचा होता.एनके कालिया, सौरभ कालिया के पिता
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में कैप्टन सौरभ का परिवार रहता है. उनके पिता नरेंद्र कुमार कालिया और मां विजय कालिया को आज भी वो पल अच्छी तरह से याद है, जब 20 साल पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे सौरभ को आखिरी बार देखा था. वो 23 साल के भी नहीं हुए थे और अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे लेकिन ये नहीं जानते थे कि कहां जाना है.
बेटे की शहादत के बाद उनकी यही मांग रही कि उनके बेटे को इंसाफ मिले. एनके कालिया अपने बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए सरकारों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में गुहार लगा चुके हैं. लेकिन, पिछली यूपीए सरकार की तर्ज पर मोदी सरकार ने भी इस केस को आगे नहीं ले जाने का फैसला किया . एनके कालिया की ओर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सरकार का कहना है कि इसे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाना व्यावहारिक नहीं है.
ऐसे में कालिया सवाल उठाते हैं कि जब कुलभूषण जाधव के मामले को लेकर भारत अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जा सकता है, पायलट अभिनंदन के लिए जेनेवा संधि की बात ऊठाई जा सकती है तो उनके बेटे के लिए क्यों नहीं.
ये चाहते हैं कि जैसा सुलूक पाकिस्तान ने इनके बेटे के साथ किया, आगे देश के किसी जवान के साथ ऐसा न हो.
26 जुलाई 1999 कारगिल युद्ध आधिकारिक रूप से समाप्त तो हो गया, लेकिन इसके जख्म इंसाफ की आस में हरे रह गए हैं.
उस युद्ध में सैकड़ों जानें गई थी. भारत के 407 अधिकारी और जवान शहीद हुए थे, जबकि 696 पाकिस्तानी अधिकारी और जवान मारे गए थे.
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