मजदूरी करने वाले स्थानीय निवासी गुलाम हसन मीर कहते हैं
"विंटर के तीन-चार महीने के लिए दाल, आटा, तेल, शक्कर सब लाकर रख लेते हैं और फिर जब बर्फ पड़ जाती है तो घर में बैठ कर खाते हैं. घर में दो लोग कमाते हैं एक की कमाई 6 महीने खर्च करते हैं, दूसरे की बाकी के 6 महीने, दुकानदार से पहले ही राशन ले लेते हैं."
एक परिवार की महीने की औसत कमाई 5,000 रुपये होती है. 6 महीने लॉकडाउन में रहने को इनके पास होते हैं 30 हजार रुपये. इतने में ही राशन, जलावन के लिए लकड़ी और मवेशियों के चारे का इंतजाम करते है, बर्फबारी के दौरान तबीयत खराब होने पर अस्पताल जाना भी मुश्किल हो जाता है. रोड तो बंद होता है, लेकिन चार पांच लोग मिलकर चारपाई पर मरीज को डालकर अस्पताल तक ले जाते हैं.
गांव में पढ़ाई के लिए स्कूल की सुविधा नहीं है.
हमें पढ़ने की बहुत शौक है और बर्फबारी बहुत होती है इस वजह से हम स्कूल नहीं जा पाते हैंरुकसाना, स्कूल की छात्रा
1200 लोगों की आबादी वाले इस गांव में ज्यादातर लोग पर्यटन से होने वाली आमदनी पर ही निर्भर होते है. पर्यटन के क्षेत्र होने के बाद भी गांव मे कोई ATM नही है. गांव मे बिजली की भी समस्या है. लोकल पंच जुल्फिकार अहमद कहते है
"हमारे यहां पावर का दिक्कत है मैंने प्रशासन को सारी समस्या बताई. हाईटेंशन वायर पर हमारा गुजारा होता है. हमारे बच्चे कैसे पढ़े उनको लाइट ही नहीं मिलती."
क्षेत्र के बीडीओ मोहित शर्मा कहते है "यहां जो भी समस्या है हम कोशिश कर रहे हैं सही करने की. कुछ समय लगेगा,उम्मीद है सब ठीक हो जाएगा. फिर यहां के लोग 12 महीने यहीं रह पाएंगे."
कश्मीर में ऐसे कई और भी गांव हैं, जो मुसीबतों का सामना कर रहे हैं.
नोट: यह स्टोरी स्वतंत्र पत्रकारों के लिए नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया की मीडिया फेलोशिप के तहत रिपोर्ट की गई है. मल्टीमीडिया पब्लिशिंग पार्टनर: क्विंट हिंदी
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