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‘इकनॉमी को सुधारने के लिए वाजपेयी और मनमोहन से सीखे मोदी सरकार’  

महेश व्यास के मुताबिक इकनॉमी को पटरी पर लाने के लिए मोदी सरकार को वाजपेयी और मनहमोहन सरकार से सीख लेनी चाहिए.

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सरकार ने लॉकडाउन के कारण पस्त इकनॉमी को बूस्ट देने के लिए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. लेकिन CMIE के चीफ महेश व्यास का कहना है कि इससे फायदा नहीं होने वाला. महेश व्यास के मुताबिक इकनॉमी को पटरी पर लाने के लिए मोदी सरकार को वाजपेयी और मनहमोहन सरकार से सीख लेनी चाहिए. महेश व्यास ने ये बातें क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से एक खास बातचीत में की.

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इकनॉमी को 'लोन' नहीं, डिमांड की जरूरत

महेश व्यास कहते हैं कि इस वक्त इकनॉमी की सबसे बड़ी समस्या ये है कि लोगों की जेब में पैसा नहीं है, लिहाजा ग्राहक नहीं हैं. ग्राहक नहीं हैं तो डिमांड नहीं है. और जब ग्राहक नहीं हैं तो कोई फैक्ट्री क्यों उत्पादन करेगी. सरकार ने आर्थिक पैकेज में उद्योगों को लोन की व्यवस्था दी है लेकिन जब ग्राहक ही नहीं हैं तो कोई क्यों लोन लेकर कारोबार बढ़ाना चाहेगा.

वाजपेयी सरकार के समय भी कम डिमांड की समस्या हुई थी, तब उन्होंने हाईवे प्रोजेक्ट शुरू कर इकनॉमी में जान फूंकी. इसी तरह 2004 में मनमोहन सरकार के समय SEZ नीति लाकर सरकारी खर्च बढ़ाकर इकनॉमी को चालू किया गया.

कंपनियां मुनाफा कमा रहीं लेकिन निवेश नहीं

महेश व्यास के मुताबिक- 'बड़े उद्योगों की हालत बहुत खराब है. तीन चार साल से हालत खराब है. 2008-09 में इन कंपनियों का नेट फिक्स्ड एसेट ग्रोथ रेट 23 फीसदी के आसपास था. लेकिन उसके बाद ये गिरने लगा. 2015-16 में थोड़ी ग्रोथ फिर मिली. 2018-19 में ये दर 5.5 फीसदी रह गई. ये तब भी हुआ जब कंपनियों का मुनाफा अच्छा था, लेकिन कंपनियों में भविष्य को लेकर इतनी चिंता थी कि उन्होंने नई कैपिसिटी खड़ा करने का जोखिम नहीं उठाना चाहा.

कंपनियां मुनाफा तो बना रही हैं लेकिन निवेश नहीं कर रही हैं. 2008-09 में 26-27 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव थे, अब वो गिरकर 11 लाख करोड़ रह गए हैं. आप इससे समझ लीजिए कि इकनॉमी कहां जा रही है.

CMIE का अनुमान है कि जीडीपी ग्रोथ रेट माइनस 6 फीसदी तक गिर सकती है. इतना ही नहीं ये इससे नीचे भी जा सकती है.
महेश व्यास, CMIE चीफ

'लोगों के हाथ में दें पैसा'

सरकार टैक्स में राहत दे रही है लेकिन आज समस्या टैक्स को लेकर नहीं है. आज समस्या डिमांड को लेकर है. आसान उपाय है कि गरीबों के हाथ में पैसा दें लेकिन सरकार ये क्यों नहीं कर रही है, ये वही बता सकती है. एक परंपरा बन गई है कि वित्तीय घाटा नहीं होने देंगे. जब लॉकडाउन लगाकर हमने खुद इकनॉमी को बंद किया तो इसे हमें ही स्टार्ट करना होगा. इसके लिए सरकार को खर्च करना होगा. कर्ज लेना हो तो लें, नए नोट छापना हो तो छापें. विदेशी एजेंसियां रेटिंग घटाएं तो घटाने दें.

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