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नागरिक संशोधन विधेयक: धर्म न पूछो नागरिकता के लिए!

अमित शाह ने ऐसी बातें भी कही जिससे ऐसा लगा कि क्या अपने उन्होंने पाक और जिन्ना को दी क्लीन चिट दे दी.

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वीडियो ए़डिटर: संदीप सुमन

अपने देश में इस वक्त एक इतिहास लिखा जा रहा है. इतिहास के इस चैप्टर का नाम है- नागरिकता संशोधन विधेयक.... लोकसभा में ये बिल पेश किया गया है और झमाझम बहस हो रही है.

विवाद किस बात पर है? इस प्रावधान पर- पड़ोसी देश यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगानिस्तान से आए हैं, रिफ्यूजी हैं और हिंदू हैं, बौद्ध हैं, जैन हैं, ईसाई हैं, सिख हैं या पारसी हैं तो भारत की नागरिकता मिल जाएगी लेकिन अगर मुस्लिम हैं तो नहीं मिलेगी. बिल में वैसे तो कई बातें हैं लेकिन बस इसी एक बात पर बवाल खड़ा हो गया है.

सबसे पहले बिल की बड़ी बातें जान लेते हैं...

  • पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले गैर-मुस्लिम अप्रवासी भारतीय नागरिकता ले पाएंगे.
  • इस विधेयक में नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन किया गया था. नागरिकता अधिनियम 1955 के मुताबिक, भारत की नागरिकता के लिए आवेदक का 11 साल तक भारत में निवास करना जरूरी था.
  • अब इस संशोधन में इन तीन देशों से आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाई समुदाय के लोगों के लिए इस 11 साल की अवधि को घटाकर छह साल कर दिया गया है.
  • ये बिल उन्हीं लोगों को नागरिकता देगा जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत में बसे हैं...

अब ये जान लेते हैं कि बिल किन राज्यों और क्षेत्रों में लागू नहीं होगा- अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड में लागू नहीं होगा सिटिजन अमेंडमेंट बिल.. वहीं त्रिपुरा, असम और मेघालय के कुछ हिस्सों में ये लागू नहीं होगा. पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में इसका बड़े पैमाने पर विरोध भी हो रहा है.

स्थानीय लोगों की आपत्ति ये है कि इससे कई इलाकों में बाहर से आए लोगों का दबदबा बढ़ जाएगा. स्थानीय भाषा, संस्कृति, जमीन को नुकसान पहुंचेगा और रोजगार के अवसर स्थानीय लोगों के लिए कम हो जाएंगे.

विपक्ष का क्या कहना है?

कांग्रेस इस बिल का पुरजोर तरीके विरोध कर रही है.. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर का सिटिजन अमेंडमेंट बिल पर कहना है कि धर्म क्या हमारे देश का आधार हो सकता है? जिन्हें धर्म के आधार पर देश चाहिए था, उन्होंने पाकिस्तान बनाया.

लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा- यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 5, 14 और 15 की मूल भावना के खिलाफ है. आर्टिकल 13, आर्टिकल 14 को कमजोर किया जा रहा है.

AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं कि कि सेक्युलरिज्म देश के बेसिक स्ट्रक्रचर का हिस्सा है. ये बिल मौलिक अधिकारों का हनन करता है.

बिल का विरोध कर रही कुछ पार्टियों का ये भी कहना है कि श्रीलंका, म्यांमार और तिब्बत बिल से बाहर क्यों हैं जबकि इन देशों में भी हिंदुओं, मुसलमानों और बौद्धों को प्रताड़ित किए जाने की खबरें आती रहती हैं.

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आर्टिकल 14 कहता है कि देश में कानून के मुताबिक सब बराबर हैं और ये नागरिकों गैर-नागरिकों और यहां तक की विदेशी शरणार्थियों पर भी लागू होता है.

“बिल अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं”

उधर बिल को पेश करते वक्त अमित शाह ने कहा कि ये बिल .001% भी देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नहीं है. बिल में कहीं भी, एक बार भी मुस्लिम समुदाय का जिक्र नहीं किया गया है. नागरिकता संशोधन विधेयक, संविधान के किसी भी अनुच्छेद का खंडन नहीं करता है.

वो कहते हैं कि अगर इन तीनों देशों (अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश) से कोई भी मुस्लिम कानून के मुताबिक नागरिकता के लिए आवेदन करता है, तो हम इस पर विचार करेंगे. लेकिन इस विधेयक का लाभ उन लोगों को नहीं मिलेगा जो धार्मिक प्रताड़ना का शिकार नहीं हुए हैं...

अमित शाह ने अपने इसी संबोधन में दो ऐसी बातें भी कही जिससे ऐसा लगा कि क्या अपने उन्होंने पाक और जिन्ना को दी क्लीन चिट दे दी.

कुल जमा सवाल ये उठ रहा है कि वसुधैव कुटुंबकम और विश्वगुरू बनते-बनते कहीं हम ट्रैक से भटक तो नहीं गए हैं....कहीं हमारा धर्मनिरपेक्ष देश धर्म विशेष के खिलाफ तो नहीं जा रहा है? यकीन नहीं होता कि ये अपने देश में हो रहा है. नागरिकता मिलेगी, पहले धर्म बताओ के स्टाइल में अब कानून बनने जा रहा है...

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