केंद्रीय कैबिनेट ने घरेलू एलपीजी (LPG Cylinder) पर सभी उपभोक्ताओं को 200 रुपये की सब्सिडी देने का फैसला लिया है. साथ ही उज्ज्वला योजना के तहत मिलने वाली 200 रुपये की सब्सिडी को बढ़ा कर 400 रुपये कर दिया गया है. इस फैसले के बाद दिल्ली में अब एलपीजी सिलेंडर की कीमत 903 रुपये हो गयी है.
ऐसे में एक सवाल उठना लाजमी है कि आखिर एलपीजी सिलेंडर का दाम तय कैसे होता है? इसकी कीमत का पहिया कहां से घूमना शुरू होता है और कहां आ कर रुकता है? कौन-कितना कमिशन लेता है? इंटरनेशनल मार्किट कैसे इसकी कीमतों को प्रभावित करता है?
बता दें कि एक 14.2 किलो सिलेंडर में 90% कीमत एलपीजी (गैस) की होती है. बाकी अन्य कीमतें जुड़ कर फिर पूरे सिलेंडर की रिटेल प्राइस तय होती है.
सबसे पहले एलपीजी की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार तय करता है, फिर भारत में आने के बाद बाकी कीमतें- जैसे डीलर का कमिशन, जीएसटी, आदी उसमें जुड़ता जाता है.
LPG की कीमत तय करने का फॉर्मूला
एलपीजी की कीमत जोड़ने के लिए इंपोर्ट पैरिटी प्राइस फॉर्मूला (IPP) अपनाया जाता है. IPP में कई तरह की कीमतें शामिल हैं.
IPP में सबसे पहले सऊदी अरब की सऊदी अरामको तेल और गैस कंपनी की कीमत जुड़ती है. सऊदी अरामको अगर गैस का दाम बढ़ाता-घटाता है तो उसका असर भारत के एलपीजी की कीमत पर पड़ेगा. एलपीजी गैस सऊदी अरामको से ही आयात की जाती है.
इसकी कीमत के अलावा इसमें फ्री ऑन बोर्ड (FOB) कीमत जोड़ी जाती है. FOB एक तरह का भाड़ा है जो गैस खरीदने वाले को भरना होता है. यह भाड़ा दरअसल गैस को कंपनी से बंदरगाह पर खड़े जहाज तक लाने के लिए वसूला जाता है.
इसके बाद IPP में समुद्र से जहाज द्वारा गैस को लाने का भाड़ा (ओशन फ्रेट - Ocean Freight), पोर्ट के चार्जेज होते हैं, आयात करने के लिए कस्टम ड्यूटी देनी होती है. ये सारी कीमत जुड़ने के बाद गैस सउदी से भारत के बंदरगाह पर पहुंचती है.
इसके बाद इस कीमत में देश में लगने वाले शुल्क जोड़े जाते हैं. जैसे लोकल फ्रेट - इसमें बंदरगाह से लेकर आपके घर तक सिलेंडर पहुंचने के अलग-अलग चार्जेज शामिल हैं.
फिर बॉटलिंग के चार्जेज (एलपीजी को सिलेंडर में भरना), मार्केटिंग की कीमत, डीलर का कमिशन, जीएसटी और आदी चार्ज लगाकर 14.2 किलो के सिलेंडर की कीमत तय हो जाती है.
डॉलर के मुकाबले कमजोर/मजबूत रुपया भी करता है कीमतों को प्रभावित
इंपोर्ट पैरिटी प्राइस में जो-जो शुल्क शामिल हैं इन सभी शुल्कों का भुगतान डॉलर में किया जाता है. जाहिर है अगर डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है तो एलपीजी की कीमत भारी पड़ेगी, वहीं रुपया मजबूत मतलब कीमतों में थोड़ी राहत मिल सकती है.
डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना मतलब, एक डॉलर में ज्यादा रुपये देना और सस्ता मतलब बिलकुल इसका उलट. मान लीजिए कि एक डॉलर 70 रुपये का है. अगर एक डॉलर के मुकाबले रुपया 70 से घट कर 60 हो जाएगा तो रुपये को मजबूत माना जाएगा. वहीं एक डॉलर के मुकाबले रुपया 70 से बढ़कर 80 हो जाएगा तो रुपया कमजोर माना जाएगा.
बता दें कि एलपीजी का दाम हर महीने की एक तारीख को बदलता है. हालांकि ऐसा जरूरी नहीं है, अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम की कीमत में महीने के बीच में ही उतार-चढ़ाव हो जाए तो एलपीजी का दाम उसी अनुसार बढ़ाया-घटाया जा सकता है.
भारत में हर राज्य में एलपीजी की कीमतें अलग-अलग हैं, क्योंकि हर राज्य में फ्रेट से लेकर अन्य शुल्क में अंतर है.
भारत की 60% से अधिक एलपीजी जरूरतें आयात के माध्यम से ही पूरी की जाती हैं. भारत ने अप्रैल-सितंबर 2022 में अपनी कुल खपत 13.8 मिलियन टन में से 8.7 मिलियन टन एलपीजी का आयात किया था.
एलपीजी एक तरह की हाइड्रो कार्बन गैस है जो प्रोपेन और ब्यूटेन गैस से मिलकर बनती है. प्रोपेन और ब्यूटेन दोनों की कीमतें अलग-अलग होती हैं.
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