शिवसेना के साथ जो हुआ है उसे आप इस एक जुमले में समझ सकते हैं- न घर के रहे न घाट के. महाराष्ट्र में बीजेपी ने अपना आखिरी पत्ता खोल दिया है और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है. लेकिन एक सवाल सबके मन में है कि जब राज्यपाल ने एनसीपी को मंगलवार रात 8.30 बजे तक समय दिया था तो दोपहर आते-आते उनका मन क्यों बदल गया?
शिवसेना-NCP-कांग्रेस की सेट दिख रही गोटी किसने बिगाड़ी? और अब जब महाराष्ट्र में सरकार बनाने का सियासी मैराथन समाप्ति की ओर है तो ये भी समझने की कोशिश करनी चाहिए कि इसमें कौन रहा सबसे बड़ा लूजर और क्या कोई विनर भी है?
महाराष्ट्र में मिड डे क्राइसिस
पहले बात करते हैं महाराष्ट्र में क्यों आई ये मिड डे क्राइसिस. एनसीपी के नवाब मलिक ने दोपहर तक कहा कि पार्टी ने शरद पवार को कांग्रेस से बातचीत के लिए अधिकृत किया है. कांग्रेस के सुशील कुमार शिंदे ने भी कहा कि एनसीपी से बातचीत चल रही है. लेकिन ये दोनों पार्टियां बात करती रह गईं और बात बिगड़ गई.
सवाल ये है कि क्या बीजेपी को भनक लग गई कि शायद शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस में सहमति बन जाएगी और उसने अपना पत्ता चल दिया?
हम नहीं जानते कि ट्रिगर कहां से आया. वैसे आधिकारिक जानकारी यही दी गई कि राज्यपाल को लगा कि राज्य में कोई सरकार बनाने में सक्षम नहीं है. यानी अब महाराष्ट्र में केंद्र का कंट्रोल होगा, वही केंद्र जहां बीजेपी बैठी है.
सबसे बड़ा लूजर कौन?
इस सवाल का जवाब आसान है.
शिवसेना.
कहते हैं कि उतना ही उठाओ जितना पकड़ सको. सीएम पद की डिमांड कर रही शिवसेना न सिर्फ राज्य की सत्ता से बेदखल हो गई बल्कि उसे केंद्र में अपने मंत्रीपद से भी हाथ धोना पड़ा. सरकार बन भी जाती तो आखिर-आखिर तक लगाम उद्धव ठाकरे के हाथ से निकलकर एनसीपी-कांग्रेस के हाथ में दिखाई देने लगी थी. आदित्य ठाकरे के करियर के शानदार आगाज के अरमान भी धरे के धरे रह गए.
शिवसेना सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है लेकिन उसके हक में कुछ हो जाए तो चमत्कार ही होगा!
कांग्रेस की किचकिच
शिवसेना और एनसीपी के अरमान परवान चढ़ने से पहले ही उतर गए तो इसकी वजह है कांग्रेस. ''क्या करें क्या न करें'' के संक्रमण से पीड़ित कांग्रेस ने इसी ट्रेंड को आगे बढ़ाया और फैसला ही नहीं कर पाई.
अब कांग्रेस कह रही है कि राज्यपाल ने बेईमानी की है. रणदीप सुरजेवाला पूछ रहे हैं कि बीजेपी को 48, शिवसेना को 24 और एनसीपी को 24 घंटे से भी कम समय क्यों दिया? लेकिन कोई कांग्रेस से पूछे कि उसकी टाइमिंग खराब क्यों थी?
हमारे सूत्र बताते हैं कि महाराष्ट्र के कांग्रेसी चाहते थे कि शिवसेना-एनसीपी को समर्थन दे दिया जाए. लेकिन दिल्ली नहीं मानी. इधर बीजेपी चुप बैठने वाली नहीं है. वो समर्थन जुटाने की पूरी कोशिश करेगी. तो क्या कांग्रेस में टूट फूट होगी? इस आशंका से इंकार नहीं कर सकते. एनसीपी को भी इसका डर रहेगा.
पवार के पावर का क्या होगा?
एनसीपी शिवसेना और कांग्रेस के बीच झूलती दिखाई दे रही है. उसने शिवसेना से कहा एनडीए से बाहर आओ, शिवसेना ने ऐसा किया. लेकिन एनसीपी अपनी सहयोगी कांग्रेस को ही साथ नहीं ला पाई. ये खासकर शरद पवार की साख के लिए भी अच्छी बात नहीं होगी.
सवाल ये भी है शरद पवार से मुलाकात के बाद भी उद्धव ठाकरे को पवार ने क्यों समर्थन का पत्र नहीं दिया. सूत्र बताते हैं कि पवार ने पावर शेयरिंग का जो प्रस्ताव उद्धव ठाकरे को दिया उसपर शिवसेना से जवाब अपेक्षित था लेकिन जवाब ना मिलने की वजह से पत्र नहीं दिया गया. एक खबर ये भी है कि चूंकि पवार का पत्र आगे नहीं बढ़ा इसलिए कांग्रेस ने कदम पीछे ही रखे.
दोबारा चुनाव-किसका नफा-किसका नुकसान?
अगर राज्य में मध्यावधि चुनाव हुए तो बीजेपी का मैदान सेट है. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन सरकार न बना पाई. किसके कारण- शिवसेना के कारण. विचारधारा से विपरीत जाकर किसने सरकार बनाने की कोशिश की- एनसीपी ने.
बीजेपी इस फैक्ट को चुनावों में खूब भुनाएगी. शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस मध्यावधि चुनाव और सियासी हालात को कैसे भुनाएंगी, इसका कोई प्लान इनके पास दिखता नहीं.
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