''हम स्टूडेंट्स हैं. सिर्फ पढ़ने गए थे. किसी मुद्दे या राजनीति से हमारा कुछ लेना-देना नहीं था. फिर भी उत्तराखंड के लोगों ने हमारे साथ ऐसा क्यों किया?''
ये शब्द हैं जम्मू के एक घर में बैठी हुई एक लड़की के, जिसे पुलवामा हमले के बाद कई कश्मीरी स्टूडेंट्स के साथ देहरादून छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.
हम अपने हॉस्टल में थे. बाहर रैली चल रही थी. हम स्थिति देख रहे थे. वो लोग ‘पाकिस्तान मुर्दाबाद’ और ‘कश्मीरियों को निकालो’, ये नारे लगा रहे थे. जब उनकी नजर हमारे ऊपर पड़ी तो उन्होंने इल्जाम लगाया कि हमने पाकिस्तान के लिए नारे लगाए. हम लोगों ने ऐसा कुछ नहीं किया. उन्होंने पत्थर चलाया. उन्होंने चीखना शुरु कर दिया कि इन लड़कियों को नीचे उतारो.10-15 मिनट में पुलिस भी आ गई, लेकिन फिर भी वो नारे लगा रहे थे कि कश्मीरियों को बाहर निकालो. हमने खुद को बंद करके रखा था ताकि हम सुरक्षित रहें.सायरा (बदला हुआ नाम)
सायरा ने बताया कि उनके हॉस्टल के पास पुलिस की तैनाती के बाद हिंसा तो नहीं हुई, लेकिन उनका हॉस्टल से बाहर जाना बंद हो गया.
इस मामले पर निवेदिता कुकरेती, एसएसपी, उत्तराखंड ने बताया, ''पुलवामा हमले के बाद हिंसा की आशंका थी क्योंकि राज्य में सेना, सीआरपीएफ या पैरामिलिट्री में बहुत सारे लोग हैं. जहां भी कश्मीरी स्टूडेंड थे. वहां पुलिस की भारी तैनाती थी.''
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)