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भागवत जी, मान भी लें कि ‘लिंचिंग’ विदेश से आया, हमने क्यों अपनाया?

संघ की राय में भारत की मुख्य प्राथमिकता क्या है

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विजयादशमी के मौके पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) स्थापना दिवस के रूप में भी मनाता है. विजयादशमी के दिन RSS के सर संघचालक के भाषण की पुरानी रवायत रही है. इसमें वो देश और खास तौर पर हिंदू समाज के मौजूदा हालात पर अपनी राय रखते हैं. संघ के लिए इस विजयादशमी की खास अहमियत है. ये 2019 के चुनावों में नरेंद्र मोदी की शानदार जीत और आर्टिकल 370 के हटाए जाने के बाद मनाया जाने वाला संघ का स्थापना दिवस है. जाहिर है, इस वजह से सरसंघचालक मोहन भागवत के भाषण पर सबकी निगाहें टिकी हुई थीं.

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आज के भाषण के दो पहलू हैं-

  • पहला, क्या संघ की विचारधारा में कोई तब्दीली आई है क्या?
  • दूसरा, संघ की राय में भारत की प्राथमिकता क्या है?

पहले पहलू पर आते हैं..

हाल ही में मोहन भागवत ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी से मुलाकात की. मुलाकात के बाद मौलाना मदनी ने कहा कि संघ हिंदू राष्ट्र के उद्देश्य से हटने को तैयार है. लेकिन आज के भाषण में मोहन भागवत ने काफी साफ लफ्जों में कहा कि 'हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है'. इस्लाम के बारे में कहा, कि वो 'आक्रमण के जरिए भारत आया है'.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्होंने कहा कि ‘लिंचिंग’ एक वेस्टर्न कंस्ट्रक्ट है. दरअसल, उन्होंने सिर्फ ये नहीं कहा. उनका बयान इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक है. उन्होंने कहा था कि ‘लिंचिंग’ बाहर से आने वाले धार्मिक ग्रंथों से निकलता है.

ये किन ग्रंथों का जिक्र कर रहे थे वो भी साफ हो गया, जब उन्होंने लिंचिंग को लेकर ईसा मसीह का एक वाक्या बताया. इसका मतलब मोहन भागवत की राय में, न सिर्फ लिचिंग क्रिश्चियनिटी और इस्लाम से निकलता है, उन्होंने ये भी कह दिया कि ये धर्म बाहर के हैं, भारत के नहीं. इस बात से ये साफ हो गया कि मौलाना से मुलाकात के बावजूद, इस्लाम और ईसाइयत को लेकर संघ की धारणा में कोई बदलाव नहीं आया है.

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दूसरा पहलू: संघ की राय में भारत की मुख्य प्राथमिकता क्या है...

अपने भाषण में सरसंघचालक ने सबसे ज्यादा फोकस भारत की इकनॉमी पर रखा. आज के भाषण का थीम इकनॉमी होगा, इसी बात का अंदाजा तो इसी से लग ही गया था कि स्थापना दिवस के चीफ गेस्ट थे इंडस्ट्रिस्ट शिव नाडार. भाषण में मोहन भागवत ने कहा कि आर्थिक मंदी और ग्रोथ रेट में गिरावट आती जाती रहती है और इनपर ज्यादा चर्चा करके निराशा का माहौल बनाने की जरूरत नहीं.

उन्होंने फिर संघ के स्वदेशी इकनॉमिक्स का मॉडल बताया और कहा कि जो चीजें भारत में उपलब्ध हैं, उन्हें बाहर इंपोर्ट नहीं करना चाहिए. सरसंघचालक का मंदी का जिक्र करना और इकनॉमी पर फोकस करना काफी अहम बात है. इससे वो ये सिग्नल देना चाह रहे थे कि संघ के लिए भी इकनॉमी का मुद्दा है. और नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक सलाह है कि अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ किया जाए.

इकनॉमी की बात करके और गुरू नानक, गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी का नाम लेकर, मोहन भागवत संघ को एक फॉरवर्ड लुकिंग संगठन की तरह प्रोजक्ट करना चाह रहे हैं. लेकिन इस राह पर संघ का सबसे बड़ा चैलेंज है संघ की अपनी सोच, जो अब भी इस्लाम और ईसाई धर्म को बाहर से आया हुआ मानती है. और जो लिंचिंग की हकीकत को न सिर्फ जुटलाती है बल्कि उसके लिए इन धर्मों को जिम्मेदार ठहराती है.

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