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निजामुद्दीन का दर्द- ‘जो साथ में खाते थे, अब कहते हैं भाई दूर रहो’

राशन की दुकानों से अस्पताल तक, हर जगह महसूस कर रहे बहिष्कृत

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

कोरोना वायरस महामारी के दौरान जहां सभी को साथ मिलकर इस लड़ाई के खिलाफ लड़ने की जरूरत है, तो वहीं की जगहों पर COVID-19 मरीजों और उनके परिवारों के साथ भेदभाव की खबरें आ रही हैं.

दिल्ली की निजामुद्दीन बस्ती में भी लोग भेदभाव का शिकार हो रहे हैं. निजामुद्दीन मरकज में कोरोना वायरस के केस आने और निजामुद्दीन के कई इलाकों को सील किए जाने के बाद, अब यहां के लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.

लंबे समय तक कंटेनमेंट जोन घोषित निजामुद्दीन को 7 जून को डी-कंटेन किया गया. निजामुद्दीन गांव के लोगों की परेशानी को देखते हुए RWQ ने डीएम (साउथईस्ट) हरलीन कौर को नोटिस भेजा था, जिसके बाद इसे खोला गया.

भेदभाव का शिकार निजामुद्दीन के लोग

स्थानीय लोगों का कहना है कि मरकज की घटना के बाद से उन्हें हर जगह 'संक्रमण फैलाने वाले' की नजरों से देखा जा रहा है.

असलम (बदला हुआ नाम) की हाल ही में शादी हुई है. लॉकडाउन में उसकी नौकरी चली गई. जब दूसरी नौकरी के लिए उसका इंटरव्यू अच्छा गया, तो उसे उम्मीद थी कि वहां से कॉल आएगा, लेकिन कंपनी ने फोन नहीं किया.

“जब मुझे कॉल नहीं आया, तो मैंने उनसे संपर्क किया. उन्होंने मुझसे पूछा, “निजामुद्दीन मरकज से कितना दूर है?” तब मुझे लगा कि ये इसे मरकज से जोड़ना चाह रहे हैं, और तभी मना कर रहे हैं.”
असलम

राशन की दुकानों से अस्पताल तक, हर जगह महसूस कर रहे बहिष्कृत

“हाल ही में, मेरा बेटा और बहु अस्पताल गए थे. बहू प्रेग्नेंट है, इसलिए वो रूटीन चेक-अप के लिए गए थे. उन्होंने उनसे पूछा कि वो कहां से आए हैं और जब इन्होंने कहा कि निजामुद्दीन, तो अस्पताल का पहला रिएक्शन था, “ओह, हमसे दूर खड़े हों”.”
स्टीफन, निजामुद्दीन बस्ती के निवासी

मीडिया को ठहराया जिम्मेदार

निजामुद्दीन में कई लोगों का मानना है कि इस टैग के लिए मीडिया जिम्मेदार है.

“मीडिया ने निजामुद्दीन को गलत तरीके से पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया. इसे गलत नाम दिया गया. और मरकज, टोपी, और दाढ़ी और बदनाम हो गई हैं.”
मोहम्मद वकील गुलजारी, दुकान मालिक

इस इलाके में दुकानें और बिजनेस टूरिस्ट पर निर्भर हैं, जो दरगाह और मरकज देखने आते हैं. लोगों को अब डर है कि लोग अब यहां आएंगे भी या नहीं.

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