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पेगासस प्रोजेक्ट: सरकार जासूसी के आरोपों की जांच से क्यों बच रही है?

Pegasus Project इजरायली कंपनी एनएसओ ने कहा सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल आतंकियों के खिलाफ किया जाता है

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टेंशन की बात ये है कि भारत समेत दुनियाभर के देशों में पेगासस स्पाइवेयर के जरिए कई नेताओं, पत्रकारों और हस्तियों के फोन की जासूसी की गई है. मतलब कौन किससे, क्या और कब बात कर रहा है सब कुछ बेपर्दा. नो सीक्रेसी.. अब सवाल है कि जासूसी, फोन टैपिंग, हैकिंग हो रही है तो आखिर ये बातें सुन कौन रहा था- सरकारी बाबू, नेता, कोई प्राइवेट आदमी या देश के दुश्मन? और क्यों सुन रहा था? इन सवालों के जवाब तो छोड़िए, सवाल पूछने वालों से सवाल किया जा रहा है. इसलिए हम पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

एक इंटरनेशनल पड़ताल हुई है जिसमें दावा किया गया है कि राहुल गांधी, प्रशांत किशोर, ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा सबके सब रडार पर थे. भारत के 40 पत्रकारों के फोन में झांका गया. यहां तक कि मोदी सरकार के 2 मंत्री भी घेरे में थे.

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पेगासस प्रोजेक्ट में चौंकाने वाले खुलासे

दरअसल, इजरायल की कंपनी, NSO ग्रुप ने एक मिलिट्री ग्रेड स्पाइवेयर बनाया है, पेगासस. जिसके जरिए किसी भी फोन के मैसेज फोटो, कैमरा, लोकेशन को देखा या फोन कॉल को रियल टाइम में सुना और रिकॉर्ड किया जा सकता है. मतलब आपकी प्राइवेट बातों से लेकर बैंक पासवर्ड सब कुछ कोई और सुन रहा है. जान रहा है..

इस बात की जानकारी फ्रांस की संस्था फॉरबिडन स्टोरीज' और 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' की वजह से सामने आ सकी है. इन दोनों ने 17 मीडिया संस्थानों से यह जानकारी शेयर की और इसको 'पेगासस प्रोजेक्ट' का नाम दिया गया. लब्बोलुआब ये कि 10 देशों के 50 हजार लोग निशाने पर थे यानी इनके नंबरों की एक लिस्ट बनी थी. जिनके फोन की जांच हो पाई उनके बारे में पता चला कि असल में उनके फोन में पेगासस घुसा था या नहीं, जैसे प्रशांत किशोर...बाकी के बारे में कहा नहीं जा सकता कि उनके फोन हैक हुए या नहीं? लेकिन रिपोर्ट में किए गए दावे के मुताबिक वो टारगेट लिस्ट में जरूर थे.

इजरायली कंपनी एनएसओ का दावा है कि वो किसी निजी कंपनी को सॉफ्टवेयर नहीं बेचती और सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल आतंकवाद या राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरनाक लोगों के खिलाफ ही किया जाता है. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक जो सर्विलांस लिस्ट पर थे जरा उन्हें देखिए- राहुल गांधी, प्रशांत किशोर, गगनदीप कांग,वैज्ञानिक हैं महामारी पर काम कर रही हैं, भारत की पहली महिला हैं जो लंदन की रॉयल सोसाइटी में फेलो हैं.

पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, IT मंत्री अश्विनी वैष्णव, केंद्रीय राज्यमंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल और उनके माली, रसोइया, निजी सचिव समेत 15 लोग.

वो महिला जिन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था, और उनके पति.

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भला इन लोगों से राष्ट्र सुरक्षा को क्या खतरा हो सकता है, क्या ये अपराधी हैं? ऐन चुनाव के समय राहुल और प्रशांत किशोर की जासूसी से किसको फायदा हो सकता था?

सरकार जांच के लिए तैयार क्यों नहीं?

आईटी मिनिस्टर अश्वनी वैष्णव ने लोकसभा में कहा कि 'पेगासस प्रोजेक्ट' के आरोप "हमारे लोकतंत्र और संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश लगते हैं"

सरकार पर सवाल इसलिए उठ रहा है कि पेगासस बनाने वाली कंपनी का कहना है कि हम सिर्फ सरकारों को ये स्पाईवेयर बेचते हैं. चलिए मान लिया कि सरकार ने जासूसी नहीं कराई. लेकिन सरकार ये कैस कह सकती है कि जासूसी हुई ही नहीं? लेकिन एक परसेंट भी चांस है तो सरकार क्यों नहीं जानना चाहती कि देश के आम लोगों, खास लोगों के निजी जीवन पर किसकी टेढ़ी नजर है? NSO से क्यों नहीं पूछती कि क्या आपने ये स्पाईवेयर भारत के किसी दुश्मन को भी दिया है क्या?

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अब एक कोट याद आ गया. बस में लिखा होता है कि यात्री अपने सामान की रक्षा स्वयं करें. तो क्या ड्राइवर और कंडक्टर अपनी जिम्मेदारी से आजाद हो गए? ड्राइवर ही रैश ड्राइविंग करने लगे और कहे कि आपको तो पहले ही कहा था कि अपनी सुरक्षा स्वयं करें, हमारी कोई गारंटी नहीं होगी, तो क्या कहेंगे? ड्राइवर ऐसी रैश ड्राइविंग क्यों कर रहा है?

दूसरी बात, सरकार पर जासूसी का आरोप है तो ये देश को बदनाम करने की साजिश कैसे हो गई? हर बार सरकार मतलब देश क्यों हो जाता है. कोई आप पर आरोप लगाए तो देश का दुश्मन क्यों हो जाता है? लेखक शिवम शंकर सिंह की बात भी सुनिए. क्विंट के लिए लिखे एक लेख में आगाह कर रहे हैं कि देश के अहम लोगों की जासूसी किसने की, जानकारी किसको-किसको दी, ये नहीं बताएंगे तो राष्ट्र को खतरा होगा. तो मामला सिर्फ राइट टू प्राइवेसी का नहीं, राष्ट्र सुरक्षा का भी है. देश के दुश्मनों को बचाना, देशद्रोह होगा. इस केस की जांच नहीं कराएंगे, पारदर्शी, विश्वसनीय जांच नहीं कराएंगे, तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

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