देश की राजधानी दिल्ली का आनंद पर्वत औद्योगिक क्षेत्र अपनी खास पहचान रखता है. ये खासियत इसे चमकती दमकती दिल्ली से अलग बनाती है, ये खासियत इसकी नींव में दफ्न स्याह सपनों की खासियत है, जरूरतों के लिए खर्च किए गए अरमानों की खासियत है, ये खासियत दरअसल एक पीड़ा है जिसे आनंद पर्वत औद्योगिक क्षेत्र सालों से कराह रहा है मगर इस पीड़ा को सुनने वाला कोई नहीं है, इस पीड़ा को समझने के लिए क्विंट हिंदी की टीम ग्राउंड पर पंहुची.
आमदनी कम, महंगाई ने बढ़ाया गम
दिल्ली में करीब एक दशक से रह रहीं रुकमिना गौड़ घर पर चार्जर असेंबलिंग का काम करती हैं. रुकमिना गौड़ बढ़ती महंगाई और आमदनी न बढ़ने से बेहद परेशान हैं. रुकमिना कहती हैं
आमदनी कहां बढ़ी है? महंगाई बढ़ी है. लेकिन इस महंगाई को देखते हुए हमें मजबूरी में अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना पड़ रहा है. मजबूरी के कारण ही सरकारी में पढ़ा रहे हैं.रुकमिना गौड़, चार्जर असेंबलिंग वर्कर
अजय कुमार गौड़ तीन बच्चों के पिता हैं. सालों पहले दिल्ली आ गए थे और और दिल्ली में इलेक्ट्रिक वेल्डिंग का काम कर रहे हैं. संकरे से जीने अजय के किराए के कमरे की तरफ ले जाते हैं. पहले किराए पर दो कमरे ले रखे थे मगर कोरोना के बाद अब रक ही कमरे में परिवार के साथ गुजर बसर कर रहे हैं.
महंगाई के सवाल पर अजय कहते हैं-
एक आदमी कमाने वाला बारह आदमी खाने वाले अगर 15 घण्टे काम नहीं करेंगे तो घर कैसे चलेगा?अजय कुमार गौड़, इलेक्ट्रिक वेल्डर
कोरोना ने बढ़ाया कर्ज का बोझ
वर्किंग पीपल कोएलिशन की रिपोर्ट दावा करती है कि करीब 74% वर्कर 500 रुपए प्रतिमाह से भी कम की बचत कर पाते हैं.
बचत के सवाल पर अजय कहते हैं कि बचत की तो बात बहुत दूर है उल्टा हमें कर्ज लेकर गुजारा करना पड़ रहा है.
अजय कहते हैं
कोरोना में हालात ऐसे थे कि कोई चेन गिरवी रख रहा था तो कोई झुमके गिरवी रख रहा था, क्या करें मजबूरी है खाना तो पड़ेगा. अब पता चला है कि जितनी कीमत का सामान नहीं था उससे ज्यादा ब्याज हो गया है.अजय कुमार गौड़, इलेक्ट्रिक वेल्डर
बचत का जिक्र करते ही जावेद आलम उदास हो गए. जावेद 5 बेटियों के पिता हैं, जावेद बेहद उदास होकर बोलते हैं कि बचत होने के बजाय हमें कर्ज लेना पड़ रहा है. अब तो भीख मांगने की नौबत है.
15 घण्टे काम, आराम हराम
रोज की जद्दोजहद से ये वर्कर टूट जाते हैं मगर इस जद्दोजहद को वे अपनी जिंदगी का हिस्सा बना चुके हैं. अजय बताते हैं कि कभी-कभी 14-15 घण्टे काम करते हैं अगर मौका मिल जाए तो रात में काम करके दिन में भी काम करते हैं.
शोषण का दंश, डर के माहौल में काम
वर्किंग पीपल कोएलिशन की रिपोर्ट दावा करती है कि 95% श्रमिकों को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित वैधानिक न्यूनतम मजदूरी का भुगतान नहीं किया जा रहा है.
प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करते हुए जावेद बीमार पड़ गए. कई महीने से अब वो काम पर नहीं जा पा रहे हैं. वो बताते हैं कि किन परिस्थितियों में वर्कर फैक्ट्री में काम करने को मजबूर हैं.
मालिक बोलता है 15,000 में साइन करवा लो और मिलेगा 8,000-9,000. कोई देख तो रहा नहीं है. बड़े आदमी शिकायतकर्ताओं तक पहुंचने भी नहीं देते हैं.
क्यों हुए पलायन को मजबूर ?
गांव में जो परिस्थितियां हैं वो यहां से भी खतरनाक हैं. गांव में खाने पीने की भी समस्या है और हम गरीब हैं. साइकल लाइट बनाने का काम करने वाली पुष्पा नायक ओडिशा से हैं और दिल्ली में रहकर काम कर रही हैं.
पुष्पा नायक के पति पूर्णचन्द्र नायक अपने पलायन की दास्तां सुनाते हुए भावुक हो जाते हैं. पूर्णचन्द्र कहते हैं
गांव में रोजगार था ही नहीं. यहां आने पर कुछ रोजगार मिला दो पैसे घर भेजने लगे. आज भी गरीबी है कल भी गरीबी थी बहुत कुछ खास बदल नहीं.पूर्णचन्द्र नायक, मार्केटिंग वर्कर
देश के तमाम हिस्सों से पलायन करके दिल्ली आए ये मजदूर अपनी जिंदगी में सुबह से शाम तक जद्दोजहद कर रहे हैं. असुरक्षा और अभाव में जीवन जीने को मजबूर ये मजदूर दरअसल व्यवस्था और किस्मत से मजबूर हैं.
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